8 नवंबर को नोटबंदी की बड़ी घोषणा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से इस बात का भरोसा दिया गया था कि पचास दिन बाद तकलीफें दूर हो जाएंगी.
उस वक्त इस कदम को कालेधन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की संज्ञा दी गई थी और सरकार का दावा था कालेधन के खत्म करने में यह कदम मील का पत्थर साबित होगा.
अब पचास दिन की मियाद खत्म होने को है. तो बहस इस बात को लेकर शुरू हो गई है कि क्या जो वादे देश की जनता से किए गए थे, उन वादों पर सरकार खरी उतरी? क्या पचास दिन बाद नोटबंदी के साइड इफेक्ट से हो रही तकलीफों से निजात मिल पाई?
इस मुद्दे पर सबकी राय बंटी हुई है. लेकिन नोटबंदी के मुद्दे पर शुरू हुई सियासत एक बार कमजोर होने के बाद और जोर पकड़ रही है.
नोटबंदी को प्रधानमंत्री ने सीधे कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम के तौर पर छेड़ रखा है. लेकिन विपक्ष ने इस मुद्दे को लेकर सीधे प्रधानमंत्री पर वार कर दिया है.
मोदी अपने विरोधियों को भ्रष्टाचार के साथ खड़े दिखाने में लगे हैं तो अब विपक्ष ने सहारा डायरी के मुद्दे को उठाकर सीधे मोदी पर हमला कर रहा है.
राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक सहारा डायरी मामले को लेकर सीधे अब प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांगने लगे हैं.
आरोप है कि मोदी खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो दूसरों को कालेधन और भ्रष्टाचारियों का साथ देने वाले कैसे कह सकते हैं.
पचास दिन की मोहलत खत्म होने को है तो मोदी विरोधी एक बार फिर से सक्रिय हैं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो इन दिनों कोलकाता में कम और दिल्ली में ज्यादा डेरा डाले हैं. हालांकि पूरा विपक्ष एक साथ नहीं होने से राहुल और ममता की मुहिम को झटका भी लगा है.
विपक्ष की बैठक में एसपी, बीएसपी, जेडीयू और लेफ्ट के नहीं आने से सरकार को घेरने की विपक्षी कोशिश थोड़ी कमजोर जरूर हुई, फिर भी राहुल और ममता ने आगे की कहानी की एक झलक पेश कर दी है.
मंगलवार को विपक्ष के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी और ममता बनर्जी दोनों ने प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग कर साफ कर दिया कि अगले साल भी नोटबंदी पर लड़ाई चलने वाली है.
राहुल गांधी ने कहा कि ‘जैन डायरी केस में नाम आने के बाद हमारे मंत्रियों ने इस्तीफा दिया था, सहारा डायरी में ऐसा क्यों नहीं हो रहा है. प्रधानमंत्री को इस्तीफा देकर मिसाल पेश कर देनी चाहिए.’
लेकिन, सरकार और प्रधानमंत्री पर यह एकतरफा वार नहीं है. यह वार चौतरफा हो रहा है. बीएसपी के खातों में 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की रकम मामले से तिलमिलाई मायावती का कहना है कि ‘दलित की बेटी होने के चलते उन्हें परेशान किया जा रहा है. जनता चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाएगी.’
उधर, प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि ‘मेरी चौकीदारी से वो लोग परेशान हो रहे हैं.’
दरअसल, नोटबंदी की टाइमिंग ही ऐसी है कि इसमें कोई भी अपनी सियासत चमकाने से पीछे नहीं रहना चाहता.
यूपी समेत पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं और जल्द ही इसकी घोषणा भी होने वाली है. लिहाजा लोगों की तकलीफों पर मरहम लगाने का इससे सही वक्त भला और क्या हो सकता है.
विरोधी लोगों के हमदर्द बन रहे हैं तो बीजेपी कालेधन के खिलाफ लड़ाई को सीधे नोटबंदी से जोड़ कर लोगों से वोट की उम्मीद लगाए बैठी है.
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