'सब तरफ हाहाकार, ये है मोदी सरकार'
संभव है कि यह नारा इस बार चुनाव के दौरान पूरी यूपी में गूंजे. इसकी वजह यह है कि आने वाले चुनावों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक विरोधी एनडीए सरकार की नोटबंदी योजना के खिलाफ जनमत संग्रह में बदलने की कोशिश में हैं.
एक महीने पहले मोदी ने ऊंची कीमत की नोटों को बंद करके पूरे देश को अचंभे में डाल दिया था. विपक्षी दलों के बीच इस फैसले को लेकर भ्रम था. ममता बनर्जी जैसे लोग इसे पूरी तरह वापस लेने की मांग कर रही थे. कांग्रेस और एसपी इस फैसले जुड़ी तैयारी की कमी पर बात करना चाहते थे. नीतीश कुमार और नवीन पटनायक इसे काले धन पर हमला मानकर समर्थन कर रहे थे.
करीब आए एसपी और कांग्रेस
लेकिन जमीनी तौर पर हर दिन लोगों के बदलते मूड को देखकर विपक्ष यूपी चुनाव को सिर्फ नोटबंदी से जुड़े मसले पर लड़ना चाह रहा है. कुछ खबरों और पार्टी के सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस और एसपी के बीच गठबंधन हो सकता है ताकि मोदी की इस योजना से उपजे गुस्से का लाभ उठाया जा सके. डीएनए के मुताबिक इस गठबंधन के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के अध्यक्ष नीतीश कुमार हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार मोदी-विरोधी मतों में विभाजन रोकने के लिए कांग्रेस पहले इस गठबंधन में जितनी सीटें चाह रही थी, उससे कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है. अखबार के मुताबिक अब 70 से 75 सीटों पर समझौता हो सकता है. कांग्रेस पहले अपने लिए 100 से अधिक सीटें मांग रही थी.
इस साल की जुलाई तक कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ना चाह रही थी. उसे यह लग रहा था कि वह सम्मानजनक सीटें जीतेगी और किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वह ‘किंग मेकर’ की भूमिका निभाएगी. बढ़त बनाने के लिए कांग्रेस इन चुनावों में प्रियंका गांधी को मुख्य चुनाव प्रचारक के तौर पर और ब्राह्मण वोटों को अपनी तरफ खींचने के लिए शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रही थी. लेकिन राहुल गांधी की ‘खाट यात्रा’ की असफलता ने कांग्रेस के इस सपने को चकनाचूर कर दिया.
इसी तरह एसपी का भविष्य भी मुलायम परिवार के आपसी झगड़े के सार्वजनिक हो जाने से अधर में है. अखिलेश, रामगोपाल, शिवपाल और अमर सिंह के आपसी झगड़ों की वजह से पार्टी गुटों में बंट गई है.
यूपी चुनाव का मुख्य मुद्दा, नोटबंदी
इसी बीच विपक्ष के आपसी मतभेदों और नियंत्रण रेखा के उस पार किए गए ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से पैदा उत्साह से बीजेपी को लगातार बढ़त मिल रही थी. 8 नवंबर को जब प्रधानमंत्री ने काले धन पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की घोषणा की तो यह लग रहा था कि बीजेपी को यूपी चुनाव में बड़ी जीत मिलेगी.
हालांकि यह बढ़त अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. फिर भी ‘नोटबंदी’ की लागू करने में हो रही समस्याओं के कारण यह बढ़त तेजी से खत्म हो रही है. लोग कैश के लिए जूझ रहे हैं. असंगठित क्षेत्र में रोजगार खत्म हो रहे हैं. बिक्री घट रही है और अर्थव्यवस्था संकट में हैं. जमीन पर लोगों का मूड बदल रहा है.
यूपी चुनाव होने में अभी कुछ महीने और बचे हैं. इस वजह से विपक्ष को लगता है कि सरकार की जमीन अभी और खिसकेगी क्योंकि जल्दीबाजी में लागू किए गए ‘नोटबंदी’ के दुष्परिणामों ने निपटने में सरकार सक्षम नहीं है.
यूपी चुनावों को देखते हुए लिया गया यह फैसला हो सकता है कि बीजेपी को हमेशा भूत की तरह सताए. पुराने नोटों को वापस लेने का फैसला शादियों के सीजन के बीच में लिया गया. इसी वक्त किसान अपनी फसलों को बेचने का इंतजार कर रहे
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