सरकार ने नोट बंदी के फैसले की समीक्षा और निगरानी के लिए मुख्यमंत्रियों की एक कमेटी बनाई है. इस कमेटी में एक नाम का न होना चौंकाने वाला है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले के बड़े समर्थक हैं. ऐसे में उनका नाम जब कमेटी में शामिल नहीं किया गया, तो सवाल उठने लाजिमी हैं.
लेकिन चंद्रशेखर राव को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. वैसे भी उनकी ऐसी कमेटी का सदस्य होने में कोई दिलचस्पी नहीं, जिसके अगुवा उनके सियासी विरोधी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू हों.
नोटबंदी पर राव की निराशा
जब मोदी सरकार ने नोट बैन का ऐलान किया तो चंद्रशेखर राव ने इस फैसले पर निराशा जताई थी. उन्होंने राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन से मिलकर इससे तेलंगाना को होने वाले नुकसान के बारे में आगाह किया था. के चंद्रशेखर राव का कहना था कि नोटबंदी से तेलंगाना को हर महीने हजार से दो हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा.
इसके अलावा निर्माण के क्षेत्र में गिरावट आएगी. जिसमें तेलंगाना के करीब दस लाख लोगों को अकेले हैदराबाद और आस-पास के इलाकों में रोजगार मिलता है. साथ ही तेलंगाना के पोल्ट्री उद्योग को भी नोटबंदी से तगड़ा झटका लगा है. तेलंगाना पोल्ट्री के मामले में देश में नंबर वन है. यहां नोटबंदी से इस कारोबार में सत्तर फीसद तक की गिरावट आई है.
पीएम से मिलकर बदला स्टैंड
नोटबंदी के शुरुआती दौर से ही विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हो उठे थे. इसकी अगुवाई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कर रही थीं. संसद से लेकर सड़क तक विपक्षी दल, सरकार के फैसले का विरोध कर रहे थे. सूत्रों के मुताबिक इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने के चंद्रशेखर राव से बात की. पीएम मोदी को लगा कि कुछ गैर एनडीए मुख्यमंत्रियों का साथ मिलने से उनके नोटबैन के फैसले को बल मिलेगा.
चंद्रशेखर राव ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री मोदी से करीब चालीस मिनट तक बातचीत की. इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि उनकी पार्टी, नोटबंदी के विपक्षी खेमे में शामिल नहीं होगी. के चंद्रशेखर राव की पार्टी, एनडीए की भी सदस्य नहीं है. इसीलिए उनके सामने पीएम मोदी के हर फैसले के समर्थन की मजबूरी भी नहीं है. लेकिन उन्होंने राजनैतिक फायदे के लिए नोटबंदी के फैसले का समर्थन करने का फैसला किया.
चंद्रशेखर राव को तेलंगाना के लिए केंद्र की मदद चाहिए. उन्हें ये भी डर है कि अगर उन्होंने मोदी सरकार का विरोध किया तो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू इसका फायदा उठा सकते हैं. इसीलिए दिल्ली के अलावा भी चंद्रशेखर राव ने पीएम मोदी से दो बार मुलाकात की. पहली तो तब, जब प्रधानमंत्री मोदी, डीजीपी की कांफ्रेंस के लिए हैदराबाद आए. इसके बाद जब वो अगले दिन दिल्ली रवाना हुए तब भी राव ने पीएम मोदी से मुलाकात की.
अब कर रहे नोटबंदी की तारीफ
इन मुलाकातों के बाद से ही चंद्रशेखर राव, प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ के गीत गाने लगे हैं. वो नोट बंदी को काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बताते हैं. देश के लिए कैशलेस होने को जरूरी बताते हैं. बीजेपी के लिए भी चंद्रशेखर राव का साथ अहम है. उसे कम से कम ये दिखाने का मौका मिल रहा है कि गैर एनडीए राज्य भी नोट बैन के मुद्दे पर मोदी सरकार के साथ हैं, जैसे कि नवीन पटनायक या फिर नीतीश कुमार और अब चंद्रशेखर राव.
कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव, दोनों ही मोदी का साथ और सहयोग चाहते हैं. दोनों की इच्छा है कि उनके राज्य में विधानसभा की सीटों की संख्या बढ़े. आंध्र प्रदेश में नायडू चाहते हैं कि विधानसभा की सीटें 175 से बढ़ाकर 225 कर दी जाएं. वहीं तेलंगाना में चंद्रशेखर राव विधानसभा सीटों की संख्या 119 से बढ़ाकर 153 करना चाहते हैं. इसमें मोदी सरकार का सहयोग जरूरी है.
शायद ये लेन-देन की राजनीति ही नोटबैन के फैसले को चंद्रशेखर राव के समर्थन की वजह है. ताकि वो टीडीपी और कांग्रेस से अपनी पार्टी में आए सभी नेताओं को चुनाव लड़ा सकें. यही जरूरत चंद्रबाबू नायडू की भी है, जिन्हें वाईएसआर कांग्रेस से अपनी पार्टी में आए नेताओं को खयाल रखना है.
कैशलेस अर्थव्यवस्था का शोर मचाकर चंद्रशेखर राव जैसे नेता खुद को बदलते वक्त वाला नेता साबित करना चाहते हैं. वो जताना चाहते हैं कि वो आधुनिक विचारों और खयालों के साथ हैं. इसीलिए चंद्रशेखर राव की पुरानी विधानसभा सीट सिद्दीपेट को राज्य का पहला कैशलेस विधानसभा क्षेत्र बनाने का ऐलान भी कर दिया गया.
बिखरे विपक्ष से अच्छा मोदी का साथ
चंद्रशेखर राव को पता है कि बिखरे हुए विपक्ष के साथ होने से बेहतर है मोदी सरकार के साथ होना. क्योंकि विपक्ष में कांग्रेस भी है, जो तेलंगाना में उनकी सबसे बड़ी विरोधी पार्टी है. वहीं तेलंगाना में बीजेपी की पहुंच न के बराबर है.
नोटबैन को लेकर तेलंगाना में हालात मिले जुले हैं. लोगों को नकदी हासिल करने में दिक्कत हो रही है. बहुत से लोगों को तो इसके लिए मीलों का सफर तय करना पड़ रहा है. चंद्रशेखर राव को पता है कि इस परेशानी के लिए लोग उन्हें नहीं मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराएंगे. इस मौके पर जनता की मदद करके वो उसका दिल जीतने की कोशिश भी करेंगे. यानी उनके दोनों हाथों में लड्डू हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तेलंगाना राष्ट्र समिति, मोदी कैबिनेट में शामिल होगी. हालांकि चंद्रशेखर राव की पार्टी तो चाहेगी कि ऐसा हो, मगर फिलहाल मोदी सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है, इसलिए बीजेपी के लिए चंद्रशेखर राव को कैबिनेट में जगह देने की मजबूरी नहीं.
हां, उत्तर प्रदेश के चुनाव के नतीजे, राव और मोदी की दोस्ती को नई दिशा देंगे. यानी ये तो तय है कि बीजेपी और टीआरएस के बीच कुछ पक रहा है, मगर ये क्या है, इसके बारे में सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते हैं.
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