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नोटबंदी: ऐसी शॉक थेरेपी जिसमें ईमानदारों को इनाम

आप एक आर्थिक फैसले को भावनात्मक तर्कों से सही नहीं ठहरा सकते हैं...

Updated On: Nov 20, 2016 03:50 PM IST

K Yatish Rajawat

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नोटबंदी: ऐसी शॉक थेरेपी जिसमें ईमानदारों को इनाम

हालिया नोटबंदी ने सरकारी योजनाओं पर आम तौर पर होने वाली बहस की खराब स्थिति को उजागर किया है. चिल्लाने वाले टीवी चैनलों के एंकरों और सोशल मीडिया पर बनाए जा रहे रायों ने स्वस्थ्य बहस को खत्म कर दिया है.

यह हमारे बौद्धिक वर्ग के खोखलेपन को दिखाता है, अगर टीवी एंकरों को भी इसमें शामिल माना जाए तो. यह किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं जहां भीड़ को किसी भी योजना का पंच बना दिया जाए.

आम बहस के बड़े हिस्से को आसानी से इसके तर्कों के आधार पर बांटा जा सकता है और इन्हें आसानी से खांचों में बांटा जा सकता है.

नोटबंदी पर अतिवादी नजरिए

ऐसे लोगों के एक समूह में, जिसमें टीवी चैनल के एंकर और वे जो अपनी सूचनाओं के लिए केवल टीवी चैनलों और व्हाट्सअप पर निर्भर हैं, वैसे लोग शामिल हैं.

टीवी चैनलों ने या तो बहुत बड़ा राष्ट्रवादी रुख अपनाया या आम लोगों को हो रही दिक्कत के कारण नोटबंदी को खारिज कर दिया. यह दोनों तर्क आर्थिक फैसले पर एक अतिवादी नजरिया हैं, जिसका दूरगामी असर होगा.

यह कोई तर्क नहीं है कि लोगों को होने वाली कठिनाई के कारण यह अस्थायी नोटबंदी नहीं करनी चाहिए थी. यहां यह ध्यान देना चाहिए कि यह एक अस्थायी नोटबंदी है.

अगर लोगों की कठिनाई ही कारण है, तब भी सरकार का यह कदम लोगों की लंबे समय के लिए लोगों की हित में है.

इस कठिनाई को टैक्स अदायगी में भी देखा जा सकता है. लेकिन वास्तव में यह कठिनाई उन निम्न आय वर्ग के लोगों को हो रही है, जिनके पास कोई बैंक खाता नहीं है और जिन्हें आपात स्थिति में नकद की जरूरत पड़ रही है.

यह दुखद समस्या है और इसने समाज को भावनात्मक रूप से प्रभावित किया है. इस दर्द को तार्किक या भावनात्मक होकर सही नहीं ठहराया जा सकता है. एक भावनात्मक दर्द को तर्क से सही नहीं कहा जा सकता, न ही एक आर्थिक फैसले को भावनात्मक तर्कों से.

इसमें भावनात्मक तर्क के आने का मुख्य कारण यह है कि एक आर्थिक फैसले को राष्ट्रवादी उत्साह या रंग दे दिया गया.

राष्ट्रवादी या देशभक्ति की लाइन भी गलत है और यह इस बात को दिखाता है कि टीवी चैनल इन दिनों बौद्धिक दिवालिएपन से गुजर रहे हैं. सरकार के फैसले की बड़ाई करने के चक्कर में इन्होंने मूर्खता और बेहूदेपन की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. हालांकि इस लाइन का समर्थन वे भी कर रहे हैं जो सरकार में हैं और यह भविष्य में किसी भी आर्थिक फैसले पर नुकसानदेह प्रभाव डालेगा. लोग मूर्ख नहीं हैं कि ऐसे बहाव में बह जाएं.

दूसरे समूह का तर्क है कि यह अस्थायी नोटबंदी भ्रष्टाचार को खत्म या कम नहीं करेगी. यह तर्क बहुत दिया जा रहा है और विपक्षी नेताओं का यह पसंदीदा वाक्य है. खासकर उस स्थिति में जब सरकार ने उच्च मूल्य वाले 2000 के नए नोट जारी किए और 1000, 500 के नोट फिर से जारी किए.

नोटबंदी ने टैक्स चोरों में पैदा किया डर

समझदारी के लिए, अस्थायी नोटबंदी अपने आप काले धन को समाप्त नहीं कर देगा या इससे हमें छुटकारा मिल जाएगा.

पहला, यह बैंकिंग सिस्टम में और लोगों को शामिल करेगा और वे कैश पर भरोसा करना बंद कर देंगे, खासकर व्यापारी और ज्वेलर्स.

दूसरा, शेयर के रूप में करेंसी कहीं गायब नहीं होने जा रही, 500 और 1000 के नोट भी वापस आ रहे हैं. यह कदम सिस्टम को शॉक थेरेपी है.

यह उन लोगों के दिमाग में डर पैदा करने के लिए है जो टैक्स नहीं देते हैं और कैश के रूप में अपनी गैरकानूनी आय को छिपाते हैं.

चतुर राजनेता यह भी कहने की कोशिश कर रहे हैं कि काला धन अब कैश में नहीं बल्कि सोना और रियल एस्टेट में जमा है.

यह एक तरह से ईमानदारी से टैक्स अदा करने वालों के लिए इनाम है क्योंकि उन्हें अपनी कैश जमाओं पर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

एकाएक ईमानदारी से टैक्स जमा करने वाले सुविधाजनक स्थिति में आ गये हैं जो बहुत कम बार ही होता है और उनके लिए यह आश्चर्यजनक है.

नोटबंदी एक आर्थिक फैसला है

2000 RS SOLARIS IMAGES

झटके के लिए अचरज की जरूरत होती है, और अचरज को गोपनीयता की, इसका मतलब यह है कि यह बहुत लोगों की जानकारी में न हो. हालांकि सिस्टम अभी तैयार नहीं है. इसी वजह से दिक्कत पैदा हुई है.

फिर भी गोपनीयता का तर्क कठिनाई को सही ठहराने के लिए नहीं दिया जा सकता, जबकि यह घोषणा हो गई थी कि बैंकों को एक साथ काम करने की जरूरत है. खासकर तब जब एक बड़े काम के आड़े एटीएम जैसी एक छोटी सी चीज आ रही है.

परेशानी सचमुच में है, लेकिन इसे अस्थायी नोटबंदी के खिलाफ एक तर्क के रूप में नहीं पेश किया जा सकता. लोगों को हो रही परेशानी पर आधारित राय खुद एक जकड़न है.

राष्ट्रवादी और वैचारिक रूप से कट्टर देशभक्त इससे कुछ अलग नहीं हैं. दोनों तथ्यों को नहीं देख रहे हैं, वे सिर्फ हर फैसले को राजनीतिक तौर पर देख रहे हैं. वे इसलिए इस कदम कि आलोचना कर रहे हैं क्योंकि यह भारत से काले धन को खत्म नहीं करेगा.

आलोचना करना आसान, समाधान देना मुश्किल

सभी आलोचनाओं की तरह यह आसान है. अभी तक कोई एक कदम या पहलकदमी भारत से काले धन को दूर करने के लिए ली गई है. भले ही राजनेता और कल्पना में रहने वाले अर्थशास्त्रियों की नस्ल कुछ भी कहें. काला धन होने के पीछे कारण यह है कि सिस्टम इसे पकड़ पाने में सक्षम नहीं है. कोई भी देश इसे सफलतापूर्वक नहीं पकड़ सकता.

इसी वजह से टैक्स हैवन देशों का अस्तित्व है. अस्थायी नोटबंदी इसके बहुत ही सीमित हिस्से को प्रभावित करेगी, लेकिन सिर्फ इस वजह से यह कदम नहीं लेना, सही नहीं होता.

क्या हमें तब तक इंतजार करते रहना चाहिए जब तक कि हमें काले धन को खत्म करने वाला कोई ब्रम्हास्त्र न मिल जाए. अगर कोई कदम इस दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है तो यह लिया जाना चाहिए.

आलोचना हमेशा बौद्धिकता का सबसे निचला रूप है क्योंकि यह बिना किसी भी समाधान को सुझाए बिना दिया जाने वाला तर्क है. सिर्फ इसलिए कि कई तरह के राय होते हैं, इन्हें सही नहीं कहा जा सकता.

आज सोशल मीडिया ने सभी लोगों को उनके विचार को प्रकट करने का मंच प्रदान कर दिया है. लेकिन अगर आपके पास राय के साथ-साथ समाधान भी हो तो यह और अधिक लाभकारी हो सकता है. नहीं हो यह सिर्फ एक और ऊंची आवाज है.

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