एमसीडी चुनाव में बीजेपी को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद बीजेपी गदगद है. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी तक जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों की वाहवाही कर रहे हैं.
लेकिन, इस वाहवाही और जीत के शोर के बीच एक सवाल दब गया है कि आखिर पिछले दो सालों में बीजेपी ने आखिर क्या कर दिया जिसने उसे फिर से एमसीडी की सत्ता पर ला कर बैठा दिया. दो साल पहले बीजेपी को बुरी तरह से पछाड़कर दिल्ली की सत्ता पर केजरीवाल काबिज हुए थे.
दो साल पहले 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम आया था तो उस वक्त दिल्ली वाले दिल खोलकर अरविंद केजरीवाल पर मेहरबान दिखे. दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीटें आप की झोली में डाल दी गई थीं. लेकिन, अब बीजेपी के विजय के बाद जीत के मायने निकाले जा रहे हैं.
दिल्ली में बीजेपी के दांव
दरअसल, विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी से कई ऐसी गलतियां हुई थीं जिसको बीजेपी ने काफी हद तक सुधारा. उस वक्त बीजेपी अतिआत्मविश्वास से लबरेज थी. लोकसभा चुनाव में मिली जीत और फिर महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में एक के बाद एक मिली जीत के बाद बीजेपी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक सबको यह लगने लगा था कि दिल्ली भी हमारी है.
उस वक्त पार्टी के भीतर का असंतोष चरम पर था. केजरीवाल के मुकाबले अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने और न करने को लेकर उहापोह में फंसी बीजेपी ने आखिर में पार्टी के तमाम नेताओं को दरकिनार कर किरण बेदी को सामने कर दिया. लेकिन, इसका भी असर उल्टा पड़ गया.
पार्टी के भीतर गुटबाजी चरम पर थी. बंटी हुई बीजेपी दिल्ली में पूरी तरह से बिखर गई और पार्टी के विजयी रथ को केजरीवाल ने थाम लिया था.
लेकिन, पिछले दो सालों में बीजेपी के भीतर का बवाल काफी हद तक शांत हो गया. इस चुनाव में बीजेपी के सभी सांसदों को अपने-अपने इलाकों के पार्षदों को जीताने की जिम्मेदारी दे दी गई. सभी पुराने पार्षदों का टिकट काटकर नए चेहरों को मैदान में लाकर बीजेपी ने ऐसा दांव खेला जिसके आगे विरोधियों के दांव बौने पड़ गए.
आप और कांग्रेस की रणनीति पड़ गई ढीली
अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस की रणनीति एमसीडी के भीतर के दस साल के काम काज और भ्रष्टाचार के मुद्दे को जोर-शोर से उठाकर बीजेपी को बैकफुट पर धकेलने की थी. लेकिन, बीजेपी ने मौजूदा पार्षदों का ही टिकट काटकर आप और कांग्रेस की रणनीति की हवा निकाल दी.
मनोज तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपकर बीजेपी ने आप के साथ खड़े बिहारी और पूर्वांचली वोटरों को अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश की जो कि कारगर साबित हुई. लेकिन, सभी सांसदों और नेताओं को टिकट बंटवारे में तरजीह देकर बीजेपी ने गुटबाजी को काफी हद तक थाम लिया था.
बीजेपी को डर सता रहा था कि यूपी और उत्तराखंड में मिली भारी जीत के बाद अगर एमसीडी चुनाव में उसे हार मिल जाती है तो केजरीवाल इसे बड़ी जीत के तौर पर पेश करेंगे और गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी करते नजर आ जाएंगे.
लिहाजा पार्टी ने इस पूरे चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल बनाकर मोदी की छवि के सहारे केजरीवाल की धार को कुंद करने की कोशिश की. बीजेपी ने इस स्थानीय निकाय के चुनाव में भी पिछले दस साल की अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए इसे राष्ट्रीय स्तर का चुनाव बना दिया था.
अगर ऐसा न होता तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर गृह-मंत्री राजनाथ सिंह तक सभी एमसीडी चुनाव में इतने जोर-शोर से चुनाव प्रचार न कर रहे होते.
बीजेपी ने दिल्लीवालों के दिल में बनाई जगह
ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी ने इस चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को छोड़कर अपने सभी बड़े नेताओं को प्रचार में उतार दिया था.
दूसरी तरफ, विपक्ष धाराशायी हो गया है. केजरीवाल की पार्टी के भीतर पनपते असंतोष का असर भी दिख रहा है. अबतक चुप रहने वाले साथी भी अब सवाल खड़े कर रहे हैं.
कांग्रेस तो पहले से ही पिटी हुई है. आपसी गुटबाजी और खींचतान ने उसकी लुटिया डूबो दी है. विधानसभा में खाता तक नहीं खोल सकने वाली कांग्रेस को तीसरे नंबर की पार्टी बनकर ही संतोष करना पड़ रहा है.
चर्चा बस इसी बात की हो रही है कि बीजेपी ने इस बार विधानसभा चुनाव की गलतियों से सबक लेकर अपने-आप को दिल्लीवालों के दिल में फिर से स्थापित कर दिया है.
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