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दिल्ली एमसीडी चुनाव 2017: केजरीवाल से भरपूर कीमत वसूलेंगे उनके पुराने दोस्त?

क्या दिल्ली में एक बार फिर वैकल्पिक राजनीति के नाम से तैयार काठ की हांडी को अरविंद केजरीवाल चढ़ा पाएंगे?

Updated On: Apr 07, 2017 09:05 AM IST

Mridul Vaibhav

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दिल्ली एमसीडी चुनाव 2017: केजरीवाल से भरपूर कीमत वसूलेंगे उनके पुराने दोस्त?

पंजाब आैर गाेवा में आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर तुषारापात होने के बाद अब दिल्ली नगर निगम का चुनाव इस पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के लिए वाटरलू बन गया है.

इससे पहले केजरीवाल की परीक्षा दिल्ली के राजौरी गार्डन विधानसभा उप चुनाव में हो रही है. दिल्ली नगर निगम के लिए मतदान 23 अप्रैल को होगा और नतीजे 25 अप्रैल को आएंगे. लेकिन एमसीडी चुनावों से पहले इस उप चुनाव का मतदान 9 अप्रैल को होगा और 13 अप्रैल को रिजल्ट आएगा.

अगर यह चुनाव परिणाम आप के लिए नकारात्मक रहा तो इसका असर पार्टी के लिए एमसीडी के चुनाव में बहुत ही खराब रहेगा.

राजौरी गार्डन से आम आदमी के विधायक जरनैल सिंह ने इस्तीफा दे दिया था और वे पंजाब में मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़ने चले गए, जहां वे तीसरे नंबर पर रहे.

यहां आम आदमी से हरजीत सिंह उम्मीदवार हैं और बीजेपी ने यहां पूर्व विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा को चुनाव मैदान में उतारा है, जो पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से शिरोमणि अकाली दल के प्रत्याशी थे. कांग्रेस की उम्मीदवार मीनाक्षी चंदेला हैं.

घर का भेदी लंका ढाए

Arvind Kejriwal

दरअसल हो यह रहा है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविंद केजरीवाल ने जिस शातिराना अंदाज से पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को निकाल बाहर किया, वे अब उनसे पूरी कीमत वसूल रहे हैं. पंजाब और गोवा विधानसभाओं के हाल ही हुए चुनावों के नतीजे इसके जीवित प्रमाण हैं.

पंजाब और गोवा में अगर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी बुरी तरह पराजित हुई है तो इसका साफ सा मतलब ये है कि दिल्ली में भी उसके विरोधी सक्रिय हो चुके हैं और घर के इन भेदियों ने केजरीवाल की सत्तावादी लंका को बहुत सलीके से ढाया है.

केजरीवाल और आम आदमी पार्टी देश में एक वैकल्पिक राजनीति की उम्मीदें लेकर उभरे थे. उन्होंने कुछ नैतिक मानदंडों की बात शुरू की थी, जो भारतीय राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हो चुकी थीं.

केजरीवाल इस वैकल्पिक और नैतिकतावादी राजनीति के प्रतीक पुरुष बनकर उभरे और देश ही नहीं, दुनिया भर में उनके बारे में मीडिया में ऐसे लेख छपे, जिससे लगा कि वे अपने कामकाज की शैली से पूरे राजनीतिक संसार को चमत्कृत कर रहे हैं.

केजरीवाल ने खुद किया अपने को बर्बाद 

उनकी सफलता से सभी हैरान और हतप्रभ थे. हालात ऐसे बन रहे थे, मानो वे लोकसभा चुनाव में पार्टी को न उतार दें और प्रधानमंत्री पद के दावेदार न बैठें. लेकिन उनकी एक के बाद एक चूकों ने उन्हें बर्बाद करके रख दिया. उनकी छवि धूलधूसरित होती चली गई.

केजरीवाल और उनके गुटबाजों ने बाउंसरों को बुलाकर पार्टी के सम्मानित लोगों को जिस तरह बाहर करवाया, उससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस लगनी शुरू हुई और लगा कि वे पार्टी के भीतर जवाबदेही के सिद्धांत से भाग उठे हैं.

सबसे पहले योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को नाटकीय ढंग से पार्टी से निकाला गया. प्रो. आनंदकुमार पार्टी से बाहर हुए और शाज़िया इल्मी भी पार्टी से निकल गयीं.

बिछड़े सभी बारी-बारी 

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तस्वीर: योगेंद्र यादव के फेसबुक वाल से साभार

जस्टिस संतोष हेगड़े ने पार्टी से दूरियां बना लीं. अजीत झा दूर हो गए. मेधा पाटेकर अलग हो गईं. मयंक गांधी का तो ऐसा मोहभंग हुआ कि उन्होंने राजनीति को ही सदा के लिए अलविदा कह दिया. बल्लीसिंह चीमा ने पार्टी से दूरी बनाई.

जस्टिस हेगड़े ने तो कहना ही शुरू कर दिया था कि उन्हें अरविंद केजरीवाल की सफलता के स्थायी रहने की कोई संभावना ही नहीं दिख रही है.

पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास को हटाया गया. महात्मा गांधी के पोते और मूल्य आधारित राजनीति के प्रतीक राजमोहन गांधी को पार्टी की संस्कृति के कारण बहुत ठेस पहुंची और वे दूर हो गए.

आप सरकार की खराब शुरुआत

 Arvind Kejriwal

इसके बाद दिल्ली की सरकार में भूचाल आने लगे. पहले ही साल 67 में से आठ एमएलए फोर्जरी, एक्सटोर्शन, फसाद भड़काने, आपराधिक षड्यंत्र रचने, लोकसेवकों से दुर्व्यवहार और उनके काम में बाधा डालने, हत्या के प्रयास और भ्रष्टाचार जैसे संगीन आरोप लगे और गिरफ्तार किए गए.

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली की शिकायत पर कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर को गिरफ्तार किया गया. उन्हें केजरीवाल ने शुरू ही बहुत समर्थन दिया, लेकिन उनकी एक नहीं चली और अंतत: उन्हें हटाना पड़ा.

एनडीएमसी के कारिंदों के मामले में सुरेंद्रसिंह गिरफ्तार किए गए. अखिलेश पति त्रिपाठी और संजीव झा को कुछ पुराने मामलों में जेल की हवा खानी पड़ी. महेंद्र यादव को गिरफ्तार किया गया.

एक सेक्स सीडी के मामले में संदीपकुमार को मंत्री पद से हटना पड़ा और पार्टी की जमकर फजीहत हुई.

स्वराज इंडिया फेर सकती है आप की उम्मीदों पर पानी 

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तस्वीर: योगेंद्र यादव के फेसबुक वाल से

यह ऐसा समय है, जब देश में बीजेपी और नरेंद्र मोदी समर्थक राजनीति का उफान अपने चरम पर है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल के साथियों योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की स्वराज इंडिया पार्टी भी एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की उम्मीदों में बड़े छेद कर सकती है.

स्वराज अभियान के संस्थापक सदस्यों में एक और चुनाव विशेषज्ञ योगेंद्र यादव का कहना है कि राजनीति को बेहतर बनाने के लिए स्वराज इंडिया पार्टी ने पांच अच्छी पहल की हैं. ये राजनीति का चेहरा बदल सकती हैं.

लेकिन यह सही है कि ये राजनीति का चेहरा बदलें न बदलें, लेकिन अरविंद केजरीवाल के लिए भारी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं क्योंकि इन चुनावों में यादव और भूषण का साथ अरुणा रॉय जैसी नैतिक शक्ति भी दे रही है.

स्वराज इंडिया की पहल 

स्वराज इंडिया पार्टी दिल्ली एमसीडी की सभी 272 सीटों का चुनाव लड़ रही है.

पार्टी ने जो नई पहल की हैं, वे ये हैं :

पार्टी ने उम्मीदवार घाेषित करके उनके परिचय डोमेन में डाले हैं. सिविल सोसाइटी की एक स्वतंत्र समिति ने इन उम्मीदवारों के आपराधिक आैर चारित्रिक ब्योरे जनता से लिए हैं और जहां कहीं किसी ने शिकायत की और वह सही पाई गई तो उस उम्मीदवार की टिकट रद्द हुई है.

पार्टी ने आरटीआई लागू करने, सदस्यों और सहानुभूति रखने वालों की राय से उम्मीदवार चुनने, पार्टी में हाईकमान का नियंत्रण खत्म करने, अनारक्षित सीटों पर महिलाओं और दलितों को टिकट देने और हर सदस्य की संपत्ति, आय और व्यय को सार्वजनिक करने का भी फैसला लिया है.

स्वराज अभियान के संस्थापक सदस्यों में एक और चुनाव विशेषज्ञ योगेंद्र यादव ने दावा किया कि उनकी पार्टी के ये पांच फैसले देश की राजनीति की तस्वीर बदल सकते हैं.

सबसे अहम चुनाव स्थानीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं के होते हैं, लेकिन यही सबसे अगंभीरता से लड़े जाते हैं. पार्टी स्वच्छता, सीवर के पानी, सड़क के कूड़े और सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट जैसे मुद्दे भी उठा रही है. हर शहर और गांव को साफ और स्वच्छ रखने का एक ब्लू प्रिंट तैयार किया जा रहा है.

राजनीति को बेहतर बनाने के लिए स्वराज इंडिया की 5 नई पहल

स्वराज इंडिया के फेसबुक वाल से

तस्वीर: स्वराज इंडिया के फेसबुक वाल से

दरअसल ये वही पहल या सिद्धांत हैं, जो आम आदमी पार्टी ने शुरू में अपनाने के दावे किए थे, लेकिन बाद में पार्टी ने इन्हें पूरी तरह बिसरा दिया.

पहल एक

इंटीग्रिटी कमेटी करेगी उम्मीदवारों पर नियंत्रण: पार्टी ने इंटीग्रिटी कमेटी बनाई है. इसमें अध्यक्ष अंजलि भारद्वाज हैं. पर्यावरणवादी रवि चौपड़ा, सुप्रीम कोर्ट के वकील पीएस शारदा आदि हैं.

ये पार्टी के सदस्य नहीं हैं. पार्टी उम्मीदवार घोषित करेगी. किसी उम्मीदवार के आपराधिक, भ्रष्टाचार, जातिवाद, सांप्रदायिकता से जुड़ी कोई शिकायत आती है तो कमेटी का फैसला अंतिम और बाध्यकारी होगा. यह प्रक्रिया लोकसभा, विधानसभा आदि सभी चुनावों पर लागू होगी.

पहल दो

अनारक्षित सीटों पर भी दलितों और महिलाओं को मौका: पार्टी ने अनारक्षित सीटों पर भी दलितों और महिलाओं को मौका देने का फैसला लिया है. युवाओं को अधिक मौका दिया जाएगा. दिल्ली एमसीडी के उम्मीदवारों की औसत आयु 38 साल है.

पहल तीन

आरटीआई का अधिकार लागू होगा: पार्टी ने खर्च, बैठक, चंदा आदि से लेकर हर तरह की जानकारी के लिए सदस्यों और आम लोगों को सूचना हासिल करने का अधिकार दिया है.

पहल चार

हाईकमान खत्म करने का फैसला: पार्टी सबसे निचली इकाई पर टिकी होगी. फैसले इसी अनुसार होंगे. फैसले सदस्यों की राय से लिए जाएंगे, न कि पार्टी को शीर्ष नेता नियंत्रित करेंगे. टिकट प्राइमरीज तय करेंगी.

पहल पांच

हर सदस्य को देना होगा आय-व्यय ब्योरा: दल के हर सदस्य को अपने निजी और सार्वजनिक आय-व्यय का ब्योरा देना होगा.

पुराने यारों ने किया केजरीवाल को परेशान

अरविंद केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल

 आम आदमी पार्टी आज जिस तरह के हालात का सामना कर रही है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि वह भीतर के संकटों से तो घिरी है ही और बाहरी संकटों से भी रूबरू है.

ऐसे में उसके घर के भेदी उसके लिए सबसे ज्यादा परेशानियां खड़ी कर रहे हैं, क्योंकि आम आदमी की जितनी जरूरतें होतीं हैं अब केजरीवाल ने उससे चाहे या अनचाहे दूरियां बना लीं हैं. तो इस बात पर विरोधियों ने भी नैतिकता के झंडे उठा लिए हैं.

दरअसल सियासत चीज ही ऐसी है कि यहां रेगजारों में लोगों को ठिकानों की तलाश रहती है और वे रेत से रेत की बुनियाद पर ही अपने घर बनाने के मुंतजिर भी रहते हैं. लेकिन क्या दिल्ली में एक बार फिर वैकल्पिक राजनीति के नाम से तैयार काठ की हांडी को अरविंद केजरीवाल चढ़ा पाएंगे?

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