दिल्ली में एमसीडी चुनाव के नतीजों के बाद आप के लिए मन माफिक नहीं रहे. बीजेपी की नाकामयाबियों को भुनाने में भले ही आप कामयाब नहीं रही हो, लेकिन इस चुनावी नतीजे के बाद दिल्ली की राजनीति में आप के लिए श्रद्धांजलि लिखने में जल्दबाजी न करें. भले ही बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में अपनी हार का बदला एमसीडी में चुनाव के जीत कर ले लिया हो, लेकिन अरविंद केजरिवाल इस हार के बाद और ज्यादा आक्रमक हो कर उभरेंगे. अरविंद को जो करीब से जानते है, उनकी मानें तो इस हार से जरूर सबक लेंगे. लेकिन देखना होगा कि इस सबक के साथ क्या वापस सकारात्मक राजनीति के तरफ दोबारा लौटेंगे? इस चुनाव में अरविंद को अपनी गलतियों पर ध्यान देने की जरूरत है.
पहली गलती –
अरविंद केजरिवाल की खासियत अब तक यही होती थी कि अपने चुनाव में एजेंडे वही तय करते थे. जो इस चुनाव में नहीं कर पाए. वो जनता को बता नहीं पाए कि एमसीडी का चुनाव है, विधानसभा का नहीं. डेंगू चिकनगुनिया का मुद्दा उन्होंने उठाने में बहुत देरी कर दी, और चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल हो गया.
दूसरी गलती -
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने चुनाव के पहले ही हार का बहाना ढूंढ लिया था. इससे कार्यकर्ताओं में जोश पहले के मुकाबले कम था. इवीएम का राग कुछ ज्यादा लंबा अलाप गए. आप के उलट बीजेपी में 272 नए उम्मीदवारों को खड़ा कर कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया था.
तीसरी गलती-
आप की तीसरी बड़ी गलती थी, अपने अच्छे कामों का प्रचार प्रसार करने में देरी. बतौर सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में माफिया राज खत्म किया. चाहे टैंकर के माफिया हों, या फिर पीडब्लूडी के माफिया, या फिर स्वास्थ्य विभाग के माफिया. केजरीवाल की यूएसपी यही होती थी, कि छोटे से काम की इतना बढ़िया मार्केटिंग किया करते थे. इस बार वो नहीं कर पाए.
चौथी गलती –
आप ने 2014 लोकसभा चुनावों की गलती एमसीडी में भी दोहराई. छोटी पार्टी होने के नाते कार्यकर्ता कम है. लेकिन उन्होंने पंजाब और गोवा के चुनाव में अपनी पूरी पार्टी झोंक दी. दिल्ली में घर घर जाने में देरी की. वो ये मान कर बैठे थे कि दिल्ली की पारी जीती हुई है और विपक्ष हमारा कमजोर है. जबकि किसी लड़ाई को जीतने की पहली शर्त ही यही होती है कि विपक्ष को कमजोर न समझो.
पांचवी गलती-
आप को चाहिए था कि जनता को ये समझाते कि कांग्रेस, स्वराज अभियान. जेडीयू जैसी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट देना वोट बेकार करना है. और चुनाव को चौतरफा होने या तिकोना होने से बचाते. लेकिन ये बात भी समझने में उन्होंने देरी कर दी.
अब भी 2019 में वक्त है. अरविंद केजरीवाल को चाहिए कि अपनी गलतियों से सबक लेते हुए लड़ाई झगड़े और नकारात्मक राजनीति से हट कर अपने विधानसभा चुनाव में किए वादों पर ध्यान देना शुरू कर दें. वाई फाई, सीसीटीवी कैमरे, झुग्गी और अस्थाई कर्मचारियों, अस्थाई कॉलोनियों को किए वादे पूरे करें, और जनता की उम्मीदों में दोबारा अपनी जगह बनाए.
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