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दिल्ली: बिजली कटौती पर कंज्यूमर्स को मुआवजा दिलवाना केजरीवाल सरकार का नया जुमला भर है

दिल्ली में पावर कट की हालत में उपभोक्ताओं को हुई परेशानी के लिए बिजली कंपनियों को हर कंज्यूमर को हर घंटे के हिसाब से 50 रुपए का मुआवजा देना होगा

Updated On: Apr 18, 2018 08:18 PM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

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दिल्ली: बिजली कटौती पर कंज्यूमर्स को मुआवजा दिलवाना केजरीवाल सरकार का नया जुमला भर है

पिछले दिनों जापान की एक ट्रेन 20 सेकेंड पहले स्टेशन से रवाना हो गई. सिर्फ 20 सेकेंड पहले रवाना हो जाने की वजह से ट्रेन चलाने वाली कंपनी ने अपने यात्रियों से बाकायदा माफी मांगी. जापान में किसी ट्रेन के कुछ सेकेंड देरी या पहले से चलने की वजह से हुई परेशानी के लिए हर स्टेशन पर एक ट्रेन अधिकारी कोच में आकर यात्रियों से माफी मांगता है.

हमारे यहां ट्रेनें 12 घंटे, 24 घंटे और कभी-कभी इससे ज्यादा लेट हो जाने के बाद कैंसिल भी जाती है, कोई पूछने वाला तक नहीं है. वो जापान है और ये भारत. इसलिए जापान जैसी व्यवस्था भारत में लागू होने की संभावना भी दिख जाए तो हम तो भौंचक्क ही रह जाएं. दिल्ली में कुछ ऐसा किए जाने की कोशिश चल रही है. ये आसान नहीं है लेकिन इसकी संभावना दिखाकर ही दिल्ली सरकार लाइमलाइट में आ गई है.

हुआ ये है कि दिल्ली में सरकार ने बिजली कटौती पर कंपनियों पर जुर्माने का प्रावधान लागू करने का फैसला किया है. दिल्ली सरकार ने एक प्रपोजल तैयार कर उसे अपना अप्रूवल दे दिया है. इस प्लान के मुताबिक दिल्ली में पावर कट की हालत में उपभोक्ताओं को हुई परेशानी के लिए बिजली कंपनियों को हर कंज्यूमर को हर घंटे के हिसाब से 50 रुपए का मुआवजा देना होगा. दो घंटे के बाद मुआवजे की रकम बढ़कर हर घंटे के लिए सौ रुपए हो जाएगी.

कंपनसेशन एमाउंट कंज्यूमर के खाते में अपनेआप जाएगा. जिसे कंज्यूमर के बिजली बिल में एडजस्ट किया जाएगा. मतलब अगर आपके एक महीने का बिजली का बिल 1000 रुपए है और बिजली कटौती की वजह से आप 200 रुपए के मुआवजे के हकदार हैं तो आपको 200 रुपए काटकर सिर्फ 800 रुपए का बिजली का बिल भरना होगा. सुनने में ये बड़ा अच्छा लगता है. देश में ऐसा आज तक हुआ नहीं है. इसलिए ऐसी किसी व्यवस्था की कल्पना भी लोगों को आकर्षक लगती है. बिल्कुल जापान जैसे देश की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था की तरह.

लेकिन सवाल है कि दिल्ली सरकार ने इसकी कल्पना तो कर ली क्या वास्तव में ये मुमकिन है. जिस प्लान को दिल्ली सरकार ने मंजूरी देकर एलजी के टेबल तक खिसका दी है. और ये संदेश देने की कोशिश में लग गए हैं कि लो जी हमने तो कर दिया अब एलजी साहब चाहें तो दिल्ली जगमग हो जाए, वो हकीकत में तब्दील हो भी सकती है कि मामला यूं ही हवा हवाई बनाकर दिल्ली सरकार सस्ता प्रचार पाने की कोशिशभर कर रही है.

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क्या है पावर कट कंज्यूमर कंपनसेशन प्लान की असलियत?

पहले दिल्ली को पावरकट फ्री ज़ोन बनाने वाले इस प्रपोजल की बारिकियां समझिए. 15 साल पहले दिल्ली में बिजली की समस्या दुरुस्त करने के लिए बिजली वितरण को प्राइवेट कंपनियों के हवाले कर दिया गया था. यहां तीन प्राइवेट कंपनियां बिजली वितरण की व्यवस्था देख रही हैं. इसमें बीएसईएस (BSES) की कंपनियों बीवाईपीएल (BYPL), बीआरपीएल (BRPL) और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (TPDDL) शामिल है. TPDDL दिल्ली म्यूनिसिपल काउंसिल और दिल्ली कैंटोनमेंट के अलावा बाकी जगहों पर बिजली की सप्लाई करती है.

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आम आदमी पार्टी दिल्ली में बिजली की समस्या को शुरुआत से ही मुद्दा बनाए हुए है. दिल्ली में बढ़े हुए बिजली बिल को डिस्कॉम (डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों) की कारिस्तानी बताते हुए अरविंद केजरीवाल ने कई बार आंदोलन चलाए हैं. बिजली के खंभों पर चढ़कर मीटर की लाइनें काटती केजरीवाल की तस्वीरें आपने भी देखी होंगी. 2013 में केजरीवाल ने विरोध जताते हुए कहा था कि दिल्ली में जिस वक्त बिजली का प्राइवेटाइजेशन हुआ था उस वक्त डिस्ट्रीब्यूशन लॉस करीब 55 फीसदी था अब वो लॉस घटकर 15 फीसदी रह गया है लेकिन इसका फायदा दिल्ली के कंज्यूमर्स को नहीं मिला. केजरीवाल का आरोप था कि कंपनियां फर्जीवाड़ा करके घाटा दिखा रही हैं, जिसकी भरपाई दिल्लीवासियों को करनी पड़ती है. दिल्लीवालों के दिलों के करीब इस मुद्दे को केजरीवाल ने बार-बार उठाकर राजनीतिक फायदा उठाया है. दिल्ली सरकार का लोकलुभाव प्लान उसी कड़ी का हिस्साभर है.

दिल्ली सरकार का दावा है कि देश में पहली बार पावर कंज्यूमर कंपनसेशन पॉलिसी लाई जा रही है. ऐसा डिस्कॉम को ज्यादा जिम्मेदार बनाने के लिए किया जा रहा है. इस पॉलिसी के मुताबिक बिना जानकारी के अगर बिजली जाती है तो सबसे पहले इसे एक घंटे में ठीक करना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो डिस्कॉम को हर घंटे के हिसाब से हर कंज्यूमर को पहले दो घंटों के लिए 50 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से मुआवजा देना होगा. इसके बाद भी बिजली नहीं आती है तो मुआवजे की रकम बढ़कर 100 रुपए प्रति घंटा हो जाएगी.

बिजली कंपनियों को शुरुआती एक घंटे पर मुआवजा देने से छूट दिन में सिर्फ एक बार मिला करेगी. इसके बाद अगर किसी कंज्यूमर के घर की बिजली जाती है तो पहले घंटे से ही बिजली कंपनी को मुआवजा देना होगा. अगर किसी एक कंज्यूमर को बिजली की दिक्कत होती है तो वो एसएमएस, ईमेल या फोन के जरिए नो करेंट की शिकायत दर्ज करवा सकता है. डिस्कॉम को शिकायत गंभीरता से लेते हुए कंज्यूमर को ये बताना होगा कि वो कब तक बिजली की व्यवस्था दुरुस्त कर पाएंगे. ठीक होने की तारीख के साथ वक्त भी बताना होगा.

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दिल्ली सरकार की चकाचौंध राजधानी वाले प्लान में अब क्या होगा?

दिल्ली सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि ‘सरकार की मंशा साफ है. दिल्ली में बिजली सप्लाई का प्राइवेटाइजेशन हुए 15 साल हो चुके हैं. अब उपभोक्ताओं को बिना पावर कट के लगातार बिजली मिलनी चाहिए. हमें लगता है कि दिल्ली सरकार के इस प्रस्ताव को एलजी का समर्थन मिलेगा. और दिल्ली में इस तरह की व्यवस्था लागू होने के बाद दूसरे राज्य इससे सबक लेंगे.’

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इस पॉलिसी में ये सुविधा दी गई है कि अगर कंज्यूमर को बिजली कटौती का कंपनसेशन ऑटोमेटिकली नहीं मिलता है तो वो दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी रेगुलेटरी कमीशन (डीईआरसी) या कंज्यूमर ग्रेवियांस रिड्रेशल फोरम में संपर्क कर सकता है. ऐसे मामलों में 5 हजार का कंपनसेशन मिलेगा. अगर बिना बताए एक बड़े इलाके में बिजली चली जाती है तो डिस्कॉम को अपने रिकॉर्ड से असर वाले पूरे इलाके की पहचान करके हर कंज्यूमर को उसके एकाउंट में कंपनसेशन देना होगा.

इस नई पॉलिसी के प्रावधानों से ऐसा लगता है कि दिल्ली रातोंरात बदल जाएगी. लेकिन सवाल वहीं पर है कि क्या ये मुमकिन भी है. दिल्ली में बीजेपी के नेता और बिजली-पानी के मुद्दे पर काफी काम कर चुके संजय कॉल कहते हैं कि पहले तो जिस पॉलिसी को लेकर इतनी चर्चा हो रही है उसके प्रावधान इलेक्ट्रीसिटी एक्ट 2003 में पहले से ही हैं. इसमें कोई नई बात नहीं है. एक्ट में ऐसे प्रावधान हैं कि कंपनियां अगर बिना बताए बिजली काटती हैं तो वो जुर्माना देने को बाध्य होंगी. लेकिन इसे कभी अमल में नहीं लाया जा सका है.

अरविंद केजरीवाल

क्या बिजली कटौती पर मुआवजा देना संभव है?

दिल्ली की इतनी बड़ी आबादी को 50 रुपए के हिसाब से कंपनसेशन देना आसान नहीं है. संजय कौल कहते हैं कि एक बड़ी मुश्किल ये भी है कि लोग बिजली कटौती का हिसाब कैसे रखेंगे. बिजली कब कटी, कितनी देर के लिए कटी, कटी भी कि नहीं कटी, एक घंटे के लिए कटी या ज्यादा देर के लिए कटी..इन सबका फैसला कौन करेगा? अगर कंज्यूमर मुआवजे की मांग लेकर दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी रेगुलेटरी कमीशन (डीईआरसी) के पास जाएंगे तो वो फैसला किस आधार पर करेगा?

तरीका ये होना चाहिए कि डीईआरसी के पास एक मेजरमेंट सिस्टम हो. डीईआरसी ये तय करे कि बिजली कहां कटी. क्योंकि बिजली उसके सोर्स पर ही कटती है. जिस डिस्ट्रीब्यूशन प्वाइंट से बिजली कटी वहां पर रिकॉर्डिंग होनी चाहिए. जितनी देर के लिए बिजली कटती है और जितने लोगों को वहां से बिजली जाती है, डीईआरसी वहां से हिसाब करके कंज्यूमर को अपने हिसाब से मुआवजा दे. जानकारी दी जाए कि फलां इलाके के लोगों के बिजली बिल में इतने पैसे कम होंगे.

बिना ऐसी व्यवस्था किए बिजली कटौती पर मुआवजे की बात करना कोरी लफ्फाजी है. दिल्ली सरकार की नीयत है कि कुछ छोटी-मोटी बातों को उछालकर बड़ा फुटेज लिया जाए. दिल्ली सरकार ने साल 2015 में भी दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी रेगुलेटरी कमिशन को ऐसे ही निर्देश दिए थे. लेकिन कंपनसेशन पॉलिसी नहीं लागू हो पाई थी. बड़ी बात ये है कि कानून तो पहले से ही है. लेकिन ये अभी तक डिलीवर नहीं हुआ है और इसे लागू करने का काम डीईआरसी का है. दिल्ली सरकार के इस पॉलिटिकल स्टंट से ज्यादा कुछ हासिल होने की उम्मीद रखना बेमानी है.

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