दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक बार फिर तकरार बढ़ने लगी है. तकरार बढ़ने के पीछे का कारण है दिल्ली सरकार के नौ सलाहकारों की बर्खास्तगी. केंद्र के इस कदम पर केजरीवाल सरकार का कहना है कि केंद्र मुद्दों से ध्यान भटकाने और दिल्ली सरकार द्वारा किए जा रहे अच्छे कार्यों में व्यवधान डालने की सोच से ऐसी कार्रवाई कर रही है. वहीं इस निर्णय को लेने वाले गृह मंत्रालय ने इसके पीछे एक वाजिब कारण भी बताया है, जिसे शायद ही केजरीवाल सरकार स्वीकार करे और पचा पाए.
कैश क्रंच और रेप की घटनाओं से ध्यान भटकाने की कोशिश
गृह मंत्रालय के इस फैसले के बाद आप की तरफ से केंद्र सरकार पर आरोपों का दौर शुरू हो गया है. पार्टी का कहना है कि केंद्र सरकार देश में चल रहे तमाम मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यह काम कर रही है. पार्टी के प्रवक्ता और हटाए गए 9 सलाहकारों में से एक राधव चड्ढा ने कहा है कि उन्नाव-कठुआ रेप केस और देश में पैदा हुए कैश क्रंच की समस्या से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए केंद्र सरकार ने ऐसा निर्णय लिया है.
उन्होंने यह भी कहा है कि मुझे जिस पद से हटाया जा रहा है उस पद पर मैं 2016 में 45 दिनों के लिए मात्र 2.50 रुपए में रहा और काम किया था. उन्होंने सवाल भी पूछा कि जब मैं वो पद छोड़ चुका हूं तब किस पद से हटाया जा रहा है.
शिक्षा व्यवस्था का बेड़ा गर्क करने का उठा रखा है ठेका
आम आदमी पार्टी का यह भी आरोप है कि केंद्र सरकार दिल्ली में हो रहे अच्छे कार्यों को रोकने की मंशा से सलाहकारों को हटा रही है. दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि मोदी जी और उनकी पार्टी ने देश की शिक्षा व्यवस्था को बेड़ा गर्क करने का ठेका उठा लिया है, ये इसलिए परेशान है क्योंकि हमारी सरकार शिक्षा को और बेहतर तरीके से बच्चों तक पहुंचा रही है.
केंद्र ने साफ किया है कि क्यों हटाए गए दिल्ली सरकार के सलाहकार
अब आते हैं केंद्र सरकार के उस फैसले पर जिसमें इन सलाहकारों को बर्खास्त करने का फैसला लिया गया है. मंगलवार को गृह मंत्रालय की सिफारिश पर दिल्ली सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों में तैनात 9 सलाहकारों को सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) ने बर्खास्त कर दिया. जीएडी ने अपने ऑर्डर में कहा है कि सलाहकारों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत होती है, दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने इसके लिए केंद्र से मंजूरी नहीं ली थी.
जीएडी ने अपने ऑर्डर में लिखा है कि गृह मंत्रालय ने 10 अप्रैल 2018 को लिखे अपने पत्र में साफ लिखा था कि जिन पदों पर नियुक्तियां की गई हैं, वे मंत्रियों और मुख्यमंत्री के लिए अनुमोदित पदों की सूची में नहीं हैं. हालांकि, जीएडी के आदेश में किसी भी मुख्यमंत्री या उनके सहयोगी के सलाहकार का नाम नहीं है.
आदेश में कहा गया है कि जिन पदों पर इन लोगों को नियुक्त किया गया है, उन पदों के सृजन के लिए केंद्र सरकार से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई है, जिस पर सलाहकारों को को-टर्मिनस आधार पर नियुक्त किया गया है. को-टर्मिनस नियुक्ति के लिए उप-राज्यपाल और केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी होती है.
इस आदेश में 21 मई 2015 के उस ऑर्डर का भी जिक्र है जिसमें गृह मंत्रालय ने साफ किया था कि नेशनल कैपिटल टेरीटरी में 'सर्विस' (जिसमें पदों को सृजित करना या नए पद बनाना) संविधान के अनुसार केंद्र सरकार के लिए सुरक्षित (रिजर्व्ड) है. ऐसे में दिल्ली कैबिनेट बिना केंद्र सरकार के अनुमति के किसी पद का सृजन करती है, वह कानून के तहत मान्य नहीं होगा.
आप के आरोपों में कितनी सच्चाई
गृह मंत्रालय की सलाह पर जीएडी ने जो कदम उठाएं हैं वो नियमों और संविधान के मुताबिक बिल्कुल ठीक बैठते हैं. अब इस पर दिल्ली की आप सरकार का यह कहना कि केंद्र हमें काम करने से रोकने के लिए ऐसे कदम उठा रही है, कहां तक जायज है? आप सरकार को जब मालूम है कि नेशनल कैपिटल टेरीटरी की सर्विस केंद्र सरकार के अंतर्गत आती है तब अपने मन से, बिना अनुमति के पदों का सृजन और उन पदों पर सलाहकार की नियुक्तियां करना कहां तक उचित है?
अगर सच में आपकी मंशा सही तरीके से काम करने की थी तो क्यों न इसके लिए अनुमति ली जाती और नियमों का पालन किया जाता? जब केंद्र सरकार संविधान के तहत और नियमों के दायरे में ऐसे कदम उठा रही है, तब सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध करने का फैसला दिल्ली की जनता के लिए लाभकारी नहीं होने वाला.
शुंगलू कमिटी ने भी बताई थी केजरीवाल सरकार में है अनियमितता
ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल सरकार पर पहली बार अनियमितता का आरोप लगा है. अप्रैल, 2017 में शुंगलू कमिटी ने केजरीवाल सरकार के फैसले से जुड़ी 404 फाइलों की जांच कर इनमें संवैधानिक प्रावधानों के अलावा नियुक्ति, अलॉटमेंट, प्रशासनिक प्रक्रिया संबंधी नियमों की अनदेखी किए जाने की बात कही थी.
पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) वीके शुंगलू की अध्यक्षता में बनी कमिटी को दिल्ली के तत्कालीन एलजी नजीब जंग ने केजरीवाल सरकार के फैसलों की समीक्षा करने के लिए बनाया था.
शुंगलू कमिटी ने अपनी जांच में दिल्ली सरकार के कई फैसलों को गलत ठहराया था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि 150 फैसले ऐसे है, जिनमें कैबिनेट एजेंडे को लेकर एलजी को कोई पूर्व जानकारी नहीं दी गई.
अंततः दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को यह समझने की जरूरत होगी कि राज्य को कुछ विशेष छूट प्राप्त है तो कुछ दायरे भी हैं. उन दायरों के तहत ही अपनी कार्य नीतियों को बना कर सरकार काम करे, तो दिल्ली की जनता को फायदा होगा. केजरीवाल को सत्ता में आए तीन साल से अधिक का समय हो गया है. अब उन्हें इस बहाने को छोड़ना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार उनको काम नहीं करने दे रही है और हां, अगर सच में ऐसा है तो उन्हें अब तक इसके लिए कोई रास्ता निकाल लेना चाहिए था. वो रास्ता आपसी बातचीत, समझदारी और तालमेल का भी है. इन सब के बाद भी अगर वो सिर्फ यही कहते रहेंगे कि मोदी सरकार काम करने से रोक रही है, तो न दिल्ली की जनता को फायदा होगा और न ही केजरीवाल और उनकी पार्टी को.
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