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जिसे कभी मुख्यमंत्री बनवाया, अब उसी के सामने टिकट के तलबगार हैं शरद यादव!

राजनीतिक हलकों में यह माना जाता है कि अन्य अनेक नेताओं की तरह ही शरद यादव का भी राजनीतिक मन जरा चंचल रहा है. पता नहीं कब किधर हो ले! स्वतंत्र विचार के विचारक जो ठहरे!

Updated On: Feb 04, 2019 07:08 AM IST

Surendra Kishore Surendra Kishore
वरिष्ठ पत्रकार

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जिसे कभी मुख्यमंत्री बनवाया, अब उसी के सामने टिकट के तलबगार हैं शरद यादव!

पुरानी हिंदी फिल्म ‘घूंघट’ के एक गाने का मुखड़ा है- ‘क्या-क्या नजारे दिखाती हैं अंखियां, कभी हंसाती हैं, कभी रुलाती हैं, कभी दीवाना बनाती हैं अंखियां!’ अंखियां की जगह जरा ‘रजनीतियां’ यानी राजनीति रखकर देखिए! आज वही नजारा कभी के ‘किंग मेकर’ रहे शरद यादव के सामने है.

जिस लालू प्रसाद यादव को उन्होंने कभी बिहार का मुख्यमंत्री बनवाया था, उसी नेता के सामने अब वो (शरद यादव) लोकसभा के लिए अपने टिकट के तलबगार हैं. शरद यादव को कैसा लगता होगा? यही न कि राजनीति की दुनिया में भी बड़े-बड़े नेताओं को भी कैसे-कैसे दिन देखने पड़ते हैं! नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) से अलग होकर शरद यादव ने पिछले साल (2018) मई में ‘लोकतांत्रिक जनता दल’ बना लिया था. उनकी राज्यसभा  सदस्यता भी जा चुकी है. पर न तो लोकतांत्रिक जनता दल और न ही उनका खुद का नाम उन्हें संसद में भेजने के लिए काफी है. वैसे भी वो कभी लालू यादव के सहारे तो कभी नीतीश कुमार के बल पर ही संसद में जाते रहे हैं.

लालू यादव चाहते हैं शरद यादव RJD के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ें 

अब जब लोकसभा का चुनाव सिर पर है, तो शरद यादव के लिए समस्या यह है कि वो राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर लड़ेंगे या अपने लोकतांत्रिक जनता दल के झंडे के नीचे. अपुष्ट खबरों के मुताबिक लालू यादव चाहते हैं कि शरद यादव आरजेडी के टिकट पर ही लड़ें. यानी वो उनकी पार्टी के पिंजरे में बंद हो जाएं. जीतने के बाद इससे उन्हें अपनी सांसदी बचाते हुए इधर-उधर जाने की सुविधा समाप्त हो जाएगी. यदि ऐसा हुआ और आरजेडी के टिकट पर वो जीत गए तो वो जल्द लालू की पार्टी छोड़ नहीं पाएंगे.

राजनीतिक हलकों में यह माना जाता है कि अन्य अनेक नेताओं की तरह ही शरद यादव का भी राजनीतिक मन जरा चंचल रहा है. पता नहीं कब किधर हो ले! स्वतंत्र विचार के विचारक जो ठहरे!

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नीतीश कुमार के जुलाई 2017में बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन कर लेने के बाद शरद यादव ने उनसे किनारा कर लिया था (फोटो: पीटीआई)

दरअसल आज किसी नेता को एनडीए विरोधी गठबंधन का उम्मीदवार बन कर बिहार में जीत हासिल करनी है तो उसे लालू यादव की शरण में जाना ही होगा. कम से कम बिहार के कुछ थोड़े से यादव-मुस्लिम बहुल चुनाव क्षेत्रों में लालू यादव का अब भी पूरा नियंत्रण माना जाता है. उनके आशीर्वाद से ही वहां जीता जा सकता है.

यदि यह खबर सही है कि लालू यादव आरजेडी से ही शरद यादव को लड़वाना चाहते हैं तो शरद के लिए इसे स्वीकारना असंभव नहीं तो कठिन जरूर होगा. पर आखिर उपाय भी क्या है? जिसे कभी मुख्यमंत्री बनवाया, उसके सामने शरद यादव की ऐसी लाचारी देखते बनेगी! बता दें कि लालू की पार्टी अब उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव के अंगूठे के नीचे है.

शरद यादव पिछले दिनों रांची जेल में लालू यादव से मिल चुके हैं. क्या बात हुई या क्या कुछ तय हुआ, यह बाद में ही पता चल पाएगा.

क्या-क्या नजारे दिखाती हैं अखियां!!

वैसे इस पृष्ठभूमि में उस पुरानी राजनीतिक कहानी को एक बार फिर याद कर लेना दिलचस्प होगा जो खुद शरद यादव ने मई, 2007 में दिल्ली के एक अखबार में लिखी थी. उन दिनों शरद यादव लालू यादव से अलग हो चुके थे. जब 1997 में चारा घोटाले के तहत लालू के जेल जाने की नौबत आई तो वो  जनता दल के अध्यक्ष बने रहना चाहते थे. उन्होंने कहा था कि ‘मैं मुसीबत में हूं, मुझे छह माह के लिए अध्यक्ष बने रहने दिया जाए ताकि मैं दुश्मनों का राजनीतिक मुकाबला कर सकूं.’ पर शरद यादव नहीं माने. जनता दल का सम्मेलन कर वो अध्यक्ष बन गए. नतीजतन लालू यादव ने अलग पार्टी आरजेडी बना ली.

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खैर अब पुरानी कहानी पर आइए. शरद यादव के अनुसार, ‘सच कहा जाए तो बिहार की राजनीति में लालू यादव की कोई हैसियत ही नहीं थी. लोकसभा चुनाव में हारने के बाद वो विधानसभा चुनाव जीत कर विधायक बन जाते थे. लेकिन दल के किसी विधायक ने कभी उन्हें अपना नेता नहीं माना. जब कर्पूरी ठाकुर का 1988 में असामयिक निधन हो गया तब उनकी जगह पार्टी के विधायक दल का नेता चुनने की बारी आई. लालू सहित लोक दल के 42 विधायक थे. शेष 41 विधायकों में से एक भी लालू का समर्थन करने वाला नहीं था. नीतीश कुमार, मोहन प्रकाश, के.सी त्यागी, लल्लन सिंह, जगदानंद सिंह, वृषिण पटेल और रंजन यादव जैसे लोगों की सलाह हुई कि किसी यादव को विधायक दल का नेता बनाया जाए.’

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नीतीश कुमार से मतभेद उभरने के बाद शरद यादव ने अपनी अलग पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया था

'जिंदगी की सबसे बड़ी भूल, लालू यादव को बिहार की राजनीति में बढ़ाना'

शरद यादव लिखते हैं, ‘मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी कि मैंने लालू यादव को कर्पूरी ठाकुर के उत्तराधिकारी के रूप में बिहार की राजनीति में आगे बढ़ाया जबकि लोकदल के विधायकों में दो दर्जन से अधिक लोग बिहार की राजनीति में लालू यादव से ऊंची हैसियत रखते थे.’ अपने लेख में शरद ने यह भी लिखा कि 1990 में लालू यादव को मुख्यमंत्री बनवाना भी आसान नहीं था. फिर भी यह काम मैंने करा दिया.

याद रहे कि यह लेख उस समय का है जब शरद यादव लालू प्रसाद से अलग हो चुके थे. मगर अब स्थिति बदल चुकी है. शरद यादव घूमते-फिरते फिर लालू के साथ हो लिए हैं. देखना है कि कल (भविष्य में) क्या होता है!

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