प्रतिपक्ष के नेता के सरकारी आवास के भोजन कक्ष में प्रधानमंत्री की तस्वीर! राष्ट्रपति की तस्वीर होती तो बात समझ में भी आती. पर, सन् 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के भोजन कक्ष में तत्कालीन प्रधान मंत्री पीवी नरसिम्हा राव की तस्वीर देख कर एक पत्रकार को सुखद आश्चर्य हुआ था. लेकिन, यह सब तो वाजपेयी के स्वभाव का हिस्सा रहा.
अटल यानी आम सहमति के उपासक. यहां तक कि उन्होंने पाकिस्तान से भी संबंध सुधारने की भी ईमानदार कोशिश की थी. जबकि, किसी संघ पृष्ठभूमि के नेता से ऐसी उम्मीद कई लोग नहीं करते थे. 1968 में दीन दयाल उपाध्याय की हत्या के बाद बलराज मधोक को नजरअंदाज करके नानाजी देशमुख ने अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी में आगे बढ़ाया था तो यही माना गया कि जनसंघ को आम सहमति की पार्टी बनाने की कोशिश हो रही है. मधोक अतिवादी नेता माने जाते थे. उनका नारा था कि मुसलमानों का भारतीयकरण होना चाहिए. इस नारे से अटल जी सहित जनसंघ के के अन्य अनेक नेता असहमत थे.
इससे पहले प्रभावकारी और ओजस्वी वक्ता अटल जी को जब 1957 में एक साथ तीन सीटों से उम्मीदवार बनाया गया तो इसके पीछे पार्टी की यह राय थी कि अटल जी को लोक सभा में होना ही चाहिए. वे तब बलरामपुर लोक सभा क्षेत्र से विजयी रहे. हालांकि लखनऊ और मथुरा से हार गए थे.
कभी राजनीति की गरिमा को गिरने नहीं दिया
अटल जी की भाषण शैली से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी प्रभावित थे. एक बार विदेशी मेहमान से अटल जी का परिचय कराते समय प्रधानमंत्री ने कहा था कि ‘यह नौजवान एक दिन इस देश का प्रधान मंत्री बनेगा.’ अटल जी 11 बार लोक सभा और दो बार राज्य सभा के लिए चुने गए. नरम दिल इंसान अटल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की आलोचना जरूर करते थे, किंतु उनकी आलोचना से कोई आहत नहीं होता था. आज अपनी ऐसी राजनीतिक शैली विकसित करने में कितने नेताओं की रुचि है?
भारत रत्न से सम्मानित अटल जी के उदारवादी विचारों को कभी उनकी पार्टी के ही कुछ लोग पसंद नहीं करते थे. 1996 में जब वे पहली बार प्रधानमंत्री बने तो कभी जनसंघ के अध्यक्ष रहे बलराज मधोक ने कहा था कि ‘वाजपेयी का पी.एम.बनना देश के लिए विनाशकारी है.’ वैसे तब तक मधोक पार्टी में नहीं थे.
जनसंघ के कुछ अतिवादियों की यह शिकायत रहती थी कि अटल जी मुसलमानों के यहां चाय भी क्यों पी लेते हैं? कवि हृदय वाजपेयी ने एक बार कहा था कि ‘राजनीति में आना मेरी सबसे बड़ी भूल थी.’ हालांकि अधिकतर निष्पक्ष लोगों की यह राय रही है कि राजनीति की गरिमा को गिराने के वे कभी कारक नहीं बने.
क्या है इंदिरा को दुर्गा कहने की असली कहानी?
अटल जी लगातार यह कहते रहे कि ‘मैंने इंदिरा गांधी को कभी दुर्गा नहीं कहा था.’ पर इसके बावजूद कई लोग यह कहते और लिखते रहे हैं कि उन्होंने लोक सभा के अपने भाषण में ऐसा कहा था. दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए इस विशेषण का इस्तेमाल तब आंध्र प्रदेश के एक कांग्रेसी सासंद ने किया था. इसके बावजूद ऐसा लिखने वालों के खिलाफ अटल जी ने कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की.
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इस संबंध में अटल जी ने कहा था कि ‘कांग्रेस ने मेरे उस भाषण का मेरे खिलाफ, मेरे दल के खिलाफ और पूरे प्रतिपक्ष के खिलाफ घटिया उपयोग किया.’ वैसे वह किस्सा दिलचस्प है. सदन में आंध्र के उस सासंद का भाषण जनसंघ नेता अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण के तत्काल बाद हुआ था.
मीडिया ने गलती से दुर्गा शब्द अटल जी के मुंह में डाल दिया. अटल जी ने दूसरे ही दिन उसका खंडन भी कर दिया था. फिर भी बात नहीं बनी. अब भी दुर्गा शब्द अटल जी के गले पड़ा हुआ है.
बांग्लादेश युद्ध में विजय के बाद इस देश के अधिकतर लोगों के दिलोदिमाग में तत्कालीन प्रधानमंत्री के लिए काफी सराहना के भाव थे. उनमें से कुछ लोग उनकी तुलना दुर्गा से करते भी थे. याद रहे कि पाकिस्तान के 90 हजार 368 सैनिकों और नागरिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. पर एक बड़े विरोधी नेता को नाहक इसको लेकर परेशान होना पड़ा जबकि अटल जी बार-बार उसका खंडन करते रहे.
सन् 1989 में एक हिंदी साप्ताहिक पत्रिका के साथ बातचीत में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ‘दुर्गा’ का नाम छप गया. मैंने कहा नहीं था. श्रीमती पुपल जयकर का फोन आया था. उन्होंने कहा कि लोकसभा की कार्यवाही में वह प्रसंग देख रही हैं जिसमें आपने दुर्गा कहा था. इस पर मैंने उनसे कहा कि वह प्रसंग आपको मिलेगा नहीं क्योंकि मैंने दुर्गा कहा ही नहीं था. उस समय आंध्र के सदस्य थे जो मेरे बाद बोले थे. उन्होंने इंदिरा जी को दुर्गा कहा था.
अटल जी दूसरे दिन लोकसभा अध्यक्ष के पास गए. उनके अनुसार ,‘मैंने अध्यक्ष से कहा कि यह मेरे नाम से छप गया है, इसका स्पष्टीकरण दीजिए.' उन्होंने कहा कि ‘छोड़ो भाई, लड़ाई हो रही है.’
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भेंटवार्ता में अटल जी ने कहा कि मैंने एक बात जरूर कही थी. जब प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे सभी पार्टियों का सहयोग चाहिए तो मैंने कहा कि पार्टियों की बात मत कीजिए, पूरा देश एक पार्टी है. दूसरी पार्टी पाकिस्तान है जिससे लड़ाई है. लड़ाई का नेतृत्व आपको करना है.
साथ ही एक निजी टेलीविजन चैनल के साथ बातचीत में अटल जी ने इस प्रसंग में कहा कि यदि लोकसभा के भाषण में पुपल जयकर को ऐसा कोई प्रसंग मिला होता तो वह अपनी किताब में उसका जिक्र जरूर करतीं.
याद रहे कि पुपल जयकर ने इंदिरा गांधी पर अपनी प्रस्तावित पुस्तक में चर्चा करने के लिए अटल जी से संपर्क किया था. पुपल जयकर लिखित इंदिरा गांधी की जीवनी 1997 में छपकर आई भी. पर उस किताब में इस बात की चर्चा नहीं है कि अटल जी ने इंदिरा जी को ‘दुर्गा’ कहा था.
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