वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदुत्व धर्म नहीं, बल्कि जीवनशैली है. तत्कालीन चीफ जस्टिस जे.एस वर्मा के नेतृत्व वाले खंडपीठ के इस जजमेंट की गूंज अब भी बाकी है. इस निर्णय को पलटने की कोशिश अब तक विफल रही है. इस बीच गत (पिछले) साल पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ए.बी बर्धन स्मारक भाषणमाला में बोलते हुए इस निर्णय को गलत बताया था.
हालांकि जस्टिस वर्मा ने इस्लाम धर्म के विशेषज्ञ मौलाना वहीदुद्दीन खान को उधृत (छोड़ते हुए) करते हुए तब कहा था कि हिंदुत्व का मतलब भारतीयकरण हो गया है. महाराष्ट्र विधानसभा के दो शिवसेना सदस्यों की चुनाव याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर, 1995 को जो ऐतिहासिक निर्णय दिया, उसकी छिटपुट चर्चा अक्सर चुनावों के समय हो जाती है जब प्रचार में कोई हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल करता है. संभव है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में भी हो!
उससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवसेना विधायकों के चुनावों को रद्द कर दिया था. आरोप था कि उनके प्रचारकों बाल ठाकरे और प्रमोद महाजन ने सांप्रदायिक घृणा फैलाई थी और धर्म के नाम पर वोट मांगे थे. सुप्रीम कोर्ट ने एक विधायक के खिलाफ हाईकोर्ट का निर्णय तो कायम रखा, पर दूसरे विधायक के मामले में निर्णय उलट दिया.
वैसे उस मशहूर जजमेंट से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक शिवसेना नेता को उनके इस बयान के लिए फटकारा था कि महाराष्ट्र देश का पहला ‘हिंदू राज्य’ होगा. एक तरफ जहां कई हलकों (क्षेत्रों) में इस जजमेंट की आलोचना हुई, वहीं तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि ‘अदालत ने हिंदुत्व की हमारी विचार धारा पर न्यायिक मुहर लगा दी.’ स्वाभाविक तौर पर ही राजनीतिक हलकों में इस फैसले पर मिली जुली प्रतिक्रिया हुई. न्यायिक क्षेत्र में भी यही हाल रहा.
पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट का 11 सदस्यीय पीठ कायम होना चाहिए
मशहूर वकील नानी पालकीवाला ने इस निर्णय पर अचरज जाहिर करते हुए कहा कि इस पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट का 11 सदस्यीय पीठ कायम होना चाहिए. हालांकि शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे इस निर्णय से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने कहा कि हमें कुछ हद तक ही इंसाफ मिला है. क्योंकि पाकिस्तानी मुसलमानों और पाकिस्तान समर्थक मानसिकता वाले इस देश के मुसलमानों का मामला कायदे से सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं आया.
पालकीवाला ने यह भी कहा कि यह 2 दशक पहले आपातकाल की वैधानिकता को दी गई चुनौती को याद दिलाता है. तब देश के 7 हाईकोर्ट इंदिरा गांधी के खिलाफ थे, पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सामने समर्पण कर दिया था.
याद रहे कि उस केस के सिलसिले में एटाॅर्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यदि शासन आज किसी की जान भी ले ले तो भी उसके खिलाफ अदालत की शरण नहीं ली जा सकती. क्योंकि इमरजेंसी में मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने नीरेन डे की बात मान ली.
हिंदुत्व पर 1995 के जजमेंट के बारे में बीजेपी नेताओं के वकील अरूण साठे ने कहा था कि चुनाव कानून वाकई बहुत तकनीकी है. ऐसे मामलों में आरोपों को पूरी तरह साबित होना जरूरी है. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के अध्यक्ष विष्णु हरि डालमिया ने इस जजमेंट पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हिंदुत्व के प्रचार में कानूनी बाधा अब दूर हो गई है. स्वाभाविक ही है कि इस पर बीजेपी विरोधी दलों और बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रियाएं विरोध में थीं.
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर BJP विरोधी दल और अन्य संगठन संभल कर बोले
चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का था, इसलिए बीजेपी विरोधी दल और अन्य संगठन संभल कर सार्वजनिक तौर पर बोले. पर उन्होंने इस जजमेंट को पलटवा देने का प्रयास जारी रखा. तीस्ता सीतलवाड़ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की पर उन्हें सीमित सफलता ही मिली.
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सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कायम रह गया कि ‘हिंदुत्व का मतलब भारतीयकरण है और उसे धर्म जैसा नहीं माना जाना चाहिए.’ पर इतना जरूर कहा कि धार्मिक भावनाएं जगा कर वोट लेना गलत है. क्या इस जजमेंट ने वैसे लोगों के बीच भी बीजेपी और संघ परिवार की स्वीकार्यता बढ़ाई जो तब तक उनसे अलग थे?
यह यक्ष प्रश्न है जिसका अब तक कोई ठोस और प्रामाणिक जवाब सामने नहीं आया है.
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