जब 28 फरवरी 1969 को जब वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने लोकसभा में शाम पांच बजे बजट पेश करना शुरू किया था, तब सरकारी बेंचें खाली थीं. उस वक्त कैबिनेट की बैठक चल रही थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित मंत्रीगण कैबिनेट की बैठक में थे. यह अजूबा था. दूसरी अनोखी बात यह हुई थी कि छुट्टी के दिन बजट पेश हो रहा था. ईद के कारण सरकारी दफ्तर बंद थे.
प्रधानमंत्री और मंत्रियों की अनुपस्थिति को लेकर विपक्षी सदस्यों ने देर तक शोरगुल किया. पर मोरारजी भाई अपना बजट भाषण पढ़ते रहे. इसी बीच प्रधानमंत्री सहित मंत्रीगण सदन में आ गए.
इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल के सदस्य के रूप में मोरारजी का वह आखिरी बजट भाषण था क्योंकि सन् 1969 के मध्य में कांग्रेस का बंटवारा हो गया. उस वक्त मोरारजी देसाई, संगठन कांग्रेस यानी मूल कांग्रेस में ही रह गए. इंदिरा गांधी ने अपनी नई पार्टी बना ली. पत्रकारों को उस दिन समय पर बजट पेपर्स नहीं मिले. इस कारण पीआईबी के अफसरों से संवाददाताओं की झड़प भी हो गई.
घंटे भर बाद मिलीं प्रतियां
1968 में मोरारजी ने 29 फरवरी को बजट पेश किया था. उस दिन मोरारजी देसाई का जन्म दिन था. 28 फरवरी 1969 को संसद में भी बजट के अलावा कोई काम नहीं हुआ था. दोनों ही सदनों के उस दिन सायंकालीन अधिवेशन हुए थे. एक घंटे बाद बजट की प्रतियां संवाददाताओं को मिलीं.
इस बीच कई संवाददाताओं ने प्रेस गैलरी में बैठ कर मोरारजी के भाषण को आशु लिपी में लिखना और उसे देश भर में भेजना शुरू कर दिया था. संवादाताओं के साथ-साथ समाचार पत्रों के मालिकों के लिए भी देसाई जी का बजट थोड़ा दुखदायी साबित हुआ. क्योंकि उन्होंने तारों और टेलिप्रिंटरों के किराए बढ़ा दिए.
बजट में टेलिप्रिंटर मशीन का किराया भी बढ़ा दिया गया, लेकिन लेखकों और कलाकारों को मोरारजी ने विशेष महत्व दिया. अपने बजट भाषण में उन्होंने कहा कि लेखकों, कलाकारों, नाटककारों, संगीतज्ञों और अभिनेताओं के लिए मेरे पास खुशखबरी है. विदेश से वे अपनी रचनाओं के जरिए विदेशी मुद्रा में जो आय भारत में रहते हुए हासिल करेंगे, उसपर 25 फीसदी टैक्स लगेगा.
बरकरार रहा प्रिवी पर्स
बजट पेश किए जाने से पहले यह सवाल उठ रहा था कि पूर्व राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स का क्या होगा, पर बजट में मोरारजी ने उसे बरकरार रखा.
उर्वरकों पर राजस्व बढ़ाने के प्रस्ताव का भारी विरोध हुआ. संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) के मधु लिमए ने सदन में उठकर इसका विरोध किया. उनके साथ- साथ कांग्रेस के रणवीर सिंह और तारकेश्वरी सिन्हा ने भी उर्वरकों के दाम बढ़ाने के प्रस्ताव का विरोध किया. कांग्रेस के विभाजन के बाद तारकेश्वरी जी मोरारजी के साथ संगठन कांग्रेस में रह गई थीं.
बजट पर जॉर्ज फर्नांडिस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस बजट से कांग्रेस और स्वतंत्र पार्टी की मिलीजुली सरकार बनने का रास्ता साफ हो जाता है. राजा गोपालाचारी के नेतृत्व वाली स्वतंत्र पार्टी खुले व्यापार और निजी पूंजी की समर्थक पार्टी थी.
बजट का व्यापक विरोध
स्वतंत्र पार्टी, संगठन कांग्रेस, जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल ने मिलकर सत्तर के दशक में जनता पार्टी बनाई थी. जॉर्ज फर्नांडिस पहली बार 1967 में लोक सभा के सदस्य बने थे और सदन में वह मुखर रहते थे.
हालांकि स्वतंत्र पर्टी के एनजी रंगा ने मोरारजी के बजट पर कहा कि इस बजट से जनता के सभी वर्गों को कष्ट होगा.
सीपीआई के एस ए डांगे ने कहा कि मोरारजी देसाई चेहरे से चाहे जितना मासूम नजर आएं, उन्होंने अपने बजट से कीमतों में बढ़ोतरी कर दी है. प्रजा समाजवादी के नाथ पई ने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था में जो गतिरोध पैदा हो गया है, उसे समाप्त करने का एक और मौका हाथ से गंवा दिया गया.
जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि इस बजट से खेती का विकास रुकेगा और कीमतें बढेंगी. कांग्रेस के बाबू भाई चिनाय ने कहा कि अगर कंपनी टैक्स में राहत दी गई होती तो पूंजी बाजार फिर जीवित हो उठता. निर्दलीय बख्शी गुलाम मुहम्मद ने कहा कि बजट अच्छा है. मगर कृषि संपदा और उर्वरकों पर लगाया गया टैक्स ज्यादती है.
बजट पर मोरारजी की छाप
बजट पेपर पढ़ने के बाद एक जानकार व्यक्ति की टिप्पणी थी कि बजट भाषण अनेक हाथों से गुजर कर हस्ताक्षर के लिए वित्त मंत्री तक पहुंचता है. पर इस साल का बजट पढ़ने से लगता है कि वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने न केवल बजट प्रस्तावों पर बल्कि बजट भाषण की शैली पर भी अपनी पूरी छाप छोड़ी है.
जगह-जगह उसमें मोरारजी शैली का व्यंग्य है. जगह-जगह उन्हीं की शैली की शिष्टता है. अक्सर बजट का हिंदी अनुवाद अपठनीय होता है. पर इस बार जानदार हाथों से गुजर कर हिंदी अनुवाद सजीव हो उठा है. यह अलग बात है कि बजट की हिंदी प्रति हासिल करने के लिए सांसदों और संवाददाताओं में भी कोई विशेष उत्सुकता नहीं देखी गई.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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