वर्ष 1990 में कांग्रेस पार्टी ने मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की कुर्सी बचा ली थी. ऐसा उसने अपनी उत्तर प्रदेश शाखा के कड़े विरोध और बुरे नतीजे की चेतावनी के बावजूद किया था. मुलायम को समर्थन देने के विरोध में खड़े कांग्रेसियों ने तब हाईकमान को चेताया था कि मुलायम सरकार को समर्थन देकर अभी बचा लेने से आगे चल कर कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित होगा.
हाल में जब समाजवादी पार्टी (एसपी) ने कांग्रेस को नजरअंदाज कर के बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से 2019 के लिए चुनावी तालमेल करने का एलान कर दिया तो पता नहीं तब कांग्रेस हाईकमान को 1990 की वह घटना याद आई थी या नहीं. वैसे भी राजनीति में किसी एहसान के प्रतिदान की खत्म होती परंपरा के बीच अखिलेश यादव के राजनीतिक आचरण से कम ही लोगों को आश्चर्य हुआ होगा. पर शायद इस घटना से एहसान करने वाले कुछ देर रुक कर जरूर सोच सकते हैं.
नब्बे के दशक में जनता दल में विभाजन के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, चंद्रशेखर गुट में शामिल हो गए थे. वी.पी सिंह से दोनों की राजनीतिक दुश्मनी थी. तब मंडल और मंदिर आंदोलन का दौर चल रहा था. देश में भारी राजनीतिक तनाव था. कई नेता एक दूसरे को निपटाने के काम में लगे हुए थे. वैसे में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए भी एक निर्णायक घड़ी सामने आ खड़ी हुई थी.
जनता दल में विभाजन के बाद मुलायम सिंह यादव के सामने उत्तर प्रदेश विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने की एक बहुत बड़ी समस्या थी. तब राजेंद्र कुमारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश इंदिरा कांगेस की अध्यक्ष थीं. बलराम सिंह यादव तब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता थे और वो मुलायम सिंह यादव के कट्टर विरोधी थे. मुलायम सिंह यादव का विधानसभा में बहुमत खत्म हो जाने के बाद नई दिल्ली से लखनऊ तक राजनीतिक हलचल तेज हो गई.
मुलायम को समर्थन देना आगे चलकर पार्टी के लिए आत्मघाती साबित होगा
वाजपेयी और यादव ने कांग्रेस हाईकमान को चेताया (आगाह किया) कि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को समर्थन देना आगे चलकर पार्टी के लिए आत्मघाती साबित होगा. उन नेताओं का आशय था कि इससे कालक्रम (समय) में मुलायम मजबूत होंगे और कांग्रेस कमजोर. सत्ता में बने रहने से मुलायम को अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ा लेने में सुविधा होगी. ऐसा वो कांग्रेस की कीमत पर करेंगे. तब राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का नाम इंदिरा कांग्रेस था.
हालांकि इन दोनों नेताओं ने हाईकमान का आदेश को माना. तब उत्तर प्रदेश में विधानसभा में कांग्रेस के 94 विधायक हुआ करते थे. आगे चल कर धीरे-धीरे वही होता गया जिसकी भविष्यवाणी वाजपेयी और यादव ने की थी. हाल में जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस को नजरअंदाज कर के बीएसपी से तालमेल कर लिया तो उस समय उन्होंने 1990 के उपकार को याद नहीं रखा.
दरअसल राजनीति में उपकार नाम की कोई चीज नहीं होती. होती है तो सिर्फ महत्वाकांक्षा, महात्वाकांक्षा और सिर्फ महत्वाकांक्षा! दरअसल कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए मुलायम सिंह यादव की सरकार बचाई थी. मुलायम सिंह यादव ने तब कहा था कि मेरी सरकार गिराने के लिए वी.पी सिंह ने बीजेपी के साथ मिल कर साजिश रची है.
बगल के राज्य बिहार में भी उन दिनों कमोवेश ऐसी ही राजनीतिक स्थिति रही. बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस और सीपीआई ने लालू-राबड़ी सरकार की मदद की. पर न तो वो बीजेपी को सत्ता में आने से रोक सके और न ही खुद को कमजोर होने से बचा सके.
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