टू जी स्कैम पर फैसला आ चुका है. कांग्रेस जश्न की तैयारी में है. लेकिन अगर जज ओपी सैनी के फैसले का अध्ययन ठीक से किया जाए तो उसका उत्साह नरम पड़ सकता है. उन्होंने अपने फैसले में साफ कहा है कि पीएमओ के वरिष्ठ अधिकारियों ने मनमोहन सिंह के पास सही जानकारी नहीं जाने दी.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह के सचिव पुलक चटर्जी और टीकेए नायर ने राजा की ओर से लिखे पत्र के विवादित हिस्से को गायब कर दिया. यही नहीं कई जरूरी जानकारियों को भी उन तक नहीं पहुंचने दिया गया.
सैनी ने लिखा है पुलक चटर्जी की ओर से मनमोहन को भेजा गया पत्र राजा के पत्र से काफी बड़ा था. प्रधानमंत्री व्यस्त अधिकारी हैं और उनके पास इतने बड़े पत्र को पढ़ने का समय नहीं होता. उनके लिए ए राजा का पत्र पढ़ना ज्यादा आसान होता, बशर्ते चटर्जी की ओर से भेजे गए पत्र के. ये भी रिकॉर्ड से स्पष्ट नहीं है कि पत्र को तत्कालीन प्रधानमंत्री ने देखा भी था या नहीं.
फैसले में लिखा है कि स्पेक्ट्रम डील से पहले राजा ने पत्र लिखकर पीएमओ को बताया था कि वो क्या करना चाहते हैं. लेकिन पीएमओ के अधिकारियों ने सीधे राजा से संपर्क बनाने के बजाए विभाग के अधिकारियों से संपर्क साधना ठीक समझा. वो जानबूझकर मनमोहन और राजा के बीच एक दूरी बनाए रखना चाहते थे.
नहीं की गई थी ए राजा के पत्र की सही से जांच
पीएम के तत्कालीन निजी सचिव बीवीआर राव ने 23 जनवरी 2008 को अपने नोटिंग में लिखा है कि पीएम इस मसले पर अनौपचारिक बातचीत करना चाहते हैं. वो विभाग के साथ बातचीत करना चाहते हैं. साथ ही वो ये भी चाहते हैं कि पूरे मसले से उन्हें सीधे तौर पर शामिल ना किया जाए.
पीएमओ की भूमिका से संबंधित एक अलग सेक्शन में, अदालत ने पाया कि 2 नवंबर, 2007 को राजा की ओर से लिखे गए पत्र की जांच साउथ ब्लॉक की ओर से नहीं की गई. क्योंकि इससे संबंधित किसी तरह से सबूत थे ही नहीं.
जबकि ए. राजा ने पत्र लिखकर पीएमओ को पूरे मामले की जानकारी दी थी. इसमें बड़ी संख्या में आवेदन और स्पेक्ट्रम के बारे में जानकारी दी थी. साथ ही अन्य पहलुओं पर प्रकाश डाला था.
पुलक चटर्जी के तौर-तरीकों पर अदालत ने उठाए सवाल
एक महीने बाद राजा ने फिर पीएम को पत्र लिखा. अदालत ने अपने आदेश में एक महीने बाद लिखे गए राजा के उस पत्र को भी संदर्भित किया, जिसे मनमोहन सिंह ने देखा और उन्होंने नायर से इसे जांचने के लिए कहा.
लेकिन जांच के बाद भी सही सदर्भ में जानकारी पीएम को नहीं दी गई. मंत्री ए राजा से बातचीत के बाजय पीएमओ के अधिकारी दूरसंचार सचिव से बात करते रहे जो नए नए विभाग में नियुक्त किए गए थे. पीएमओ की ओर से मिले दिशा-निर्देश पर सवाल करने के बजाए वो आदेश के अनुसार काम करते गए.
पीएमओ के उच्च अधिकारियों पर गंभीर टिप्पणी करते हुए जस्टिस ओपी सैनी ने कहा कि मैं अभियोजन पक्ष की इस बात से कतई सहमत नहीं हूं कि राजा ने पूर्व प्रधानमंत्री को गुमराह किया या फिर तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया।
इससे साफ होता है कि पीएमओ से ही किसी ने दूरसंचार विभाग को नए लाइसेंस के लिए आदेश दिया था. संभव है वह पुलक चटर्जी ही हों. जैसा कि उनके नोट रिकॉर्ड से साफ होता है कि उन्होंने दूरसंचार सचिव से बात की थी. कोर्ट ने यह भी कहा कि स्पेक्ट्रम के संबंध में पीएमओ की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री को आधी जानकारी ही दी गई थी.
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