पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर आधारित फिल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर रिलीज हो गया है लेकिन ट्रेलर के रिलीज होते ही पूरी फिल्म पर सवाल उठ गया है. फिल्म विवादों से घिर गई है. महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस ने फिल्म के ट्रेलर पर विरोध जताया है. महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष सत्यजीत तांबे ने फिल्म निर्माता को पत्र लिखकर चेताया है कि फिल्म रिलीज से पहले उन्हें दिखाई जाए. साथ ही ये धमकी भी दी गई है कि फिल्म से विवादित सीन न हटाने पर यूथ कांग्रेस देश में कहीं भी फिल्म का प्रदर्शन नहीं होने देगी.
यूथ कांग्रेस की इस धमकी से साफ है कि फिल्म निर्माता के लिए सिर्फ सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट लेना ही काफी नहीं है बल्कि कांग्रेस से भी फिल्म पास कराना जरूरी हो गया है. हालांकि किसी व्यक्ति-विशेष या फिर किसी घटना या संप्रदाय से जुड़ी फिल्म बनाने के बाद संबंधित पक्ष को फिल्म दिखाई जाती रही है ताकि किसी तरह का विवाद न हो या फिर उत्पन्न विवाद दूर किया जा सके. लेकिन 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' फिल्म के मामले में सिर्फ ट्रेलर देखकर ही बेचैनी से भरे विरोध के पीछे असल कहानी एक किताब में छिपी है क्योंकि ये फिल्म एक किताब पर आधारित है.
लिफाफा देखकर मजमून समझ रही है कांग्रेस?
ये किताब किसी सामान्य लेखक की भी नहीं है. इस किताब को लिखने वाला शख्स खुद ही पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकारों में से एक था. संजय बारू ने 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर: दि मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' नाम की किताब लिखी थी. इस किताब के विमोचन के वक्त कांग्रेस नेता शशि थरूर और मनीष तिवारी भी मौजूद थे.
ऐसे में बिना किताब पढ़े और बिना पूरी फिल्म देखे सिर्फ ट्रेलर देखकर लिफाफे का मजमून समझ जाने का दावा करने वाली महाराष्ट्र कांग्रेस की यूथ विंग असल में कौन से दृश्य हटाना चाहती है? जब पूर्व सलाहकार संजय बारू की किताब प्रकाशित हुई तब उन पर ये आरोप लगा था कि पीएमओ में दूसरा कार्यकाल न मिलने की वजह से उन्होंने ये किताब लिखी. लेकिन उस वक्त के आरोपों पर पलटवार करते हुए संजय बारू ने कहा था कि उन्होंने अपनी किताब के जरिए पीएम मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व का बचाव किया है.
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सवाल उठता है कि जब खुद लेखक संजय बारू ये कह चुके हैं कि उन्होंने किताब में मनमोहन सिंह की छवि का बचाव किया है तो फिर ऐसे में यूथ कांग्रेस को फिल्म से किसकी छवि प्रभावित होने का डर है?
किसका हित और किसकी छवि?
सवाल ये भी उठता है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व का बचाव करने से किसका हित सध रहा है, तो सीधे तौर पर किसका नुकसान हो रहा है?
दरअसल, द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर सिर्फ डॉ. मनमोहन सिंह के इर्द-गिर्द घूमने वाली फिल्म नहीं हो सकती है और यही वजह है कि इसको लेकर विरोध की शुरुआत की गई है ताकि बात दूर तलक न जा सके.
फिल्म में यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भी किरदार है. ऐसे में अहम मुद्दों पर मनमोहन सिंह की राय के साथ गांधी परिवार के दखल पर संजय बारू के रेखांकन पर फिल्मांकन लोकसभा चुनाव से पहले सियासी गोला-बारूद से कम नहीं है. फिल्म को कांग्रेस के प्रथम परिवार के खिलाफ राजनीतिक प्रचार का हिस्सा बनाने में बीजेपी ने देर भी नहीं की और इसे ट्विटर अकाउंट से शेयर कर डाला.
Riveting tale of how a family held the country to ransom for 10 long years. Was Dr Singh just a regent who was holding on to the PM’s chair till the time heir was ready? Watch the official trailer of #TheAccidentalPrimeMinister, based on an insider’s account, releasing on 11 Jan! pic.twitter.com/ToliKa8xaH
— BJP (@BJP4India) December 27, 2018
इससे समझा जा सकता है कि जब राजनीति पर आधारित फिल्म बनती है तो फिर उस पर होने वाली राजनीति कैसे कैसे रूप और रंग बदलती है. खासतौर से तब जबकि फिल्म निर्माण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और किसी काल, घटना या विषय को तथ्यों के साथ पेश करने का मौलिक अधिकार हो.
साफ दामन के बावजूद मनमोहन सिंह पर लगते रहे हैं आरोप
फिल्म के दृश्यों पर सवाल उठ सकते हैं. 10 सालों तक यूपीए शासन के वक्त देश ने तमाम राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और आतंकी घटनाओं को देखा. उस दौर में बड़े फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से बाहर निकले. कुछ फैसलों पर विपक्ष तो कुछ फैसलों पर सहयोगी दलों ने ही साथ भी छोड़ा. न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर यूपीए से लेफ्ट ने समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया था. विपक्ष के रूप में बीजेपी लगातार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर ‘रिमोट संचालित’ होने का आरोप लगाती रही. बीजेपी ने लगातार ये कहकर मनमोहन सिंह पर हमला किया कि वो सिर्फ नाम से पीएम हैं जबकि सारे फैसले 10 जनपथ से ही तय होते आए. 10 जनपथ यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी का आवास है.
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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की साख पर कोई दाग नहीं है. लेकिन उन पर कई राजनीतिक आरोप जरूर चस्पा रहे हैं. शायद यही आरोप उस किताब में भी लिखे गए जो कि लेखक ने उनके साथ रहकर देखा, समझा और महसूस किया. अब ये फिल्म निर्माता की ईमानदारी पर निर्भर करता है कि वो लेखक की किताब से आत्मा का अंश उठाता है या फिर जिस्म के अलग-अलग हिस्से लेकर एक नए ‘दुर्घटनावश पीएम’ बने शख्स की कल्पना को पर्दे पर उतारता है.
विरोधाभास पैदा हो सकते हैं, बनेगी फिल्म निर्माता-निर्देशकों की जवाबदेही?
लेकिन पूर्णतया तथ्यों के बावजूद अभिव्यक्ति को काल्पनिक घटनाओं और किरदारों के चित्रण की जरूरत पड़ती है जो कि मौलिक अधिकार भी है. ऐसे में सवाल उठता है कि सत्य घटना और सजीव चेहरे पर आधारित फिल्म का दावा करने वाले निर्माता-निर्देशक अपने फिल्मांकन को किसी डॉक्यूमेंट्री की तरह तो दिखाना नहीं चाहेंगे क्योंकि उन्हें भी राजनीतिक मसाले से भरपूर फिल्म में तड़के की जरूरत होगी. ऐसे में कुछ दृश्य किताब के अंशों और पूर्व पीएम से जुड़ी घटनाओं के बीच विरोधाभास पैदा कर सकते हैं. लेकिन इसमें नया कुछ भी नहीं है.
जब भी इतिहास की किसी घटना या फिर किसी व्यक्ति पर फिल्म बनाई जाती है तो तमाम तथ्यों के अलावा फिल्म और दर्शकों को बांधकर रखने के लिए कभी काल्पनिक किरदार या फिर घटनाओं का भी सहारा लिया जाता है. हालांकि हमेशा ये दावा किया जाता है कि ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और न ही किसी की भावनाओं को आहत करने का कोई इरादा है.
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लेकिन द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर फिल्म के साथ भी निर्माता-निर्देशक को ये सफाई देना इतना आसान नहीं होगा. फिल्म में मनमोहन सिंह का किरदार निभाने वाले अभिनेता अनुपम खेर अपनी बेबाक टिप्पणी को लेकर जाने जाते हैं. वो इधर या उधर की राजनीति के ओर-छोर से परे अपनी बेबाक बात कहते आए हैं और तभी बुद्धिजीवियों का एक खास तबका उन्हें निशाने पर भी लेता रहा है. ऐसे में अनुपम खेर खुद भी ये जानते हैं कि जिस किरदार को वो निभा रहे हैं उसे भी इतिहास उसी तरह याद रखेगा जैसा कि खुद पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कभी कहा था.
3 जनवरी, 2014 को मीडिया से रूबरू होकर पूर्व पीएम ने कहा था कि मीडिया से ज्यादा इतिहास मेरे प्रति दयालु रहेगा. इसी तरह अनुपम खेर ने भी फिल्म का आखिरी शॉट देने के बाद कहा था कि इतिहास मनमोहन सिंह का आकलन कभी गलत नहीं करेगा और उन्हें अच्छे अर्थों में याद रखेगा. एक तरफ अनुपम खेर की राजनीतिक विचारधारा से कांग्रेस आशंकित हो सकती है तो दूसरी तरफ संजय बारू के बारीक विश्लेषण से भी, क्योंकि खुद मनमोहन सिंह की बेटी संजय बारू की किताब को लेकर पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगा चुकी हैं. ऐसे में ये विरोध सिर्फ पूर्व पीएम के परिवार तक सीमित नहीं रह सकेगा. इसके दृश्यों में आने वाले एक-एक किरदार की भूमिका दरअसल उसके जीवन-वृत्त का दस्तावेज होगा. ऐसे में फिल्म की रिलीज से पहले कई क्लाइमैक्स आने बाकी हैं.
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