इंडिया वेस्टंडीज की सीरिज चल रही है. ये वही वेस्टंडीज की टीम है जिसको कभी हराना आसान नहीं था. क्रिकेट जानने वाले बताएंगे कि विवियन रिचर्डस की कप्तानी वाली टीम काफी ताकतवर थी. जिसमें गार्डन ग्रीनिज, डेसमंड हीन्स जैसे ओपनर रिची रिचर्डसन जैसे मजबूत बल्लेबाज, विकेट कीपर जेफ डूजान और बल्लेबाज गस लोगी भी कभी अकेले कई टीम पर भारी पड़ते थे. विवियन रिचर्डस खुद हरफनमौला थे. जब कभी भारतीय टीम से मैच होता था तो लोग ये सोचते थे पैट्रिक पैटर्सन से सामना ना हो तो अच्छा है. हम भारत के समर्थक यही मनाते थे कि कोई टिक कर खेले. श्रीकांत, दिलीप वेंगसरकर, मोहिंदर अमरनाथ या फिर कोई एक छोर तो संभाले. वेस्टंडीज के फायर पावर के आगे सभी हतप्रभ रह जाते थे.
कांग्रेस के लिए टिककर खेलने का काम राहुल गांधी कर रहे हैं. ज्यादातर नेता राहुल के शॉट की तारीफ पैवेलियन से कर रहे हैं. सब पैविलियन से ही मैच का आनंद उठा रहें हैं. कोई भी नेता पिच पर आकर बीजेपी के खिलाफ खेलने में दिलचस्पी नहीं ले रहा है. कई सिर्फ नाइटवॉचमैन की भूमिका में हैं. अगर राहुल अच्छा खेले तो जीत के सेहरे का कुछ हिस्सा उनके माथे पर भी बंध सकता है. हालांकि कांग्रेस में जीत का क्रेडिट नेता को ही जाता है.
जिस तरह का टीम में वर्क होता है. उसमें कांग्रेस कमजोर पड़ रही है. हर टीम में हर खिलाड़ी की यूएसपी होती है. जबकि मैदान में हर खिलाड़ी को डटकर खेलना चाहिए बिना नतीजे की परवाह किए, लेकिन कांग्रेस में ऐसा लग रहा है कि जीत के प्रति राहुल गांधी तो आश्वस्त हैं, लेकिन बाकी नेताओं को यकीन नहीं है कि ऐसा भी हो सकता है.ज्यादातर लोग निष्क्रिय हैं.
राहुल अकेले मैदान में
राहुल गांधी अकेले मैदान में डटे हैं. पिछले कई दिनों की गतिविधि पर नजर डालने पर पता चलता है कि रॉफेल पर गिरफ्तारी देने के बाद राहुल गांधी प्रचार अभियान पर हैं, उज्जैन में महाकाल की पूजा अर्चना भी कर रहे हैं. पार्टी के लिए मध्य प्रदेश से लेकर मिजोरम तक प्रचार भी कर रहें हैं. पार्टी के भीतर चुनाव जीतने की उतनी चर्चा नहीं है, जितनी मुख्यमंत्री बनने की लगी होड़ की है. कांग्रेस को जिताने के लिए प्रयास किसी तरफ से नहीं हो रहा है. जहां चुनाव हो रहे हैं वहां बीजेपी की सरकार है लेकिन पार्टी की तरफ से कोई मूवमेंट नहीं खड़ा किया जा सका है. जो भरोसा है अब सिर्फ मौजूदा सरकारों के खिलाफ माहौल पर है.
सरकार के खिलाफ पेशबंदी में नाकाम
चुनाव वाले राज्यों की बात तो दीगर है. लोकसभा चुनाव से पहले किसी भी राज्य में मोर्चा खड़ा नहीं किया जा रहा है. जबकि जो भी प्रदर्शन हो रहे हैं वो दिल्ली तक महदूद है. दिल्ली की सरहद के बाहर कोई हलचल नहीं दिखाई दे रही है. जहां कांग्रेस की स्थिति खराब है वहां भी पार्टी को मजबूत करने की कोई कवायद नहीं हो रही है. यूपी, बिहार जैसे राज्यों में पार्टी की हालत खस्ता है. लेकिन कांग्रेस की तरफ से कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है. किसानों के आंदोलन के दौरान पार्टी ने कोई खास पहल नहीं की थी. कांग्रेस ने जब अपना संसद घेराव का कार्यक्रम किया तो सुनने वालों से ज्यादा मंच पर भाषण देने वाले थे. यानि कांग्रेस का किसान आंदोलन फ्लॉप रहा. कोई भी किसान नेता स्टेज पर नहीं दिखाई दिया. जाहिर है कि किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचाने में दिलचस्पी नहीं हैं. राहुल गांधी के यहां नंबर बढ़ जाए यही कोशिश रहती है.
मुद्दे कांग्रेस की लाइफ लाइन किसानों के मसले का जिक्र चल रहा है तो यूपी में गन्ना पेराई सत्र शुरू हो गया है. किसान को पिछला बकाया अभी तक नहीं मिल पाया है. किसान को मिल अपना दिया हुआ गन्ने का बीज बोने पर मजबूर कर रहीं हैं. जिससे लागत बढ़ रही है. डीजल, डीएपी यूरिया के भी दाम बढ़े है. आलू प्याज की फसल तैयार हो रही है. पिछले साल किसान सड़क पर फेंकने को मजबूर था. इन मसलों पर कांग्रेस का ध्यान नहीं गया है. ऐसा लगता है कि सरकार की आंकड़े बाजी पर कांग्रेस को भी भरोसा है.
गंगा सफाई पर स्वामी सानंद की मौत एक बड़ा मसला बन सकता था. इस तरफ पार्टी का ध्यान नहीं गया है. गंगा की वजह से उत्तर भारत में जिंदगी गुलजार है. कांग्रेस एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकती थी, लेकिन उत्तराखंड के कांग्रेसी नेताओं ने मौन धारण कर लिया है. सिवाय शोक संदेश के कोई मुद्दा नहीं बनाया गया है. पेट्रोलियम पदार्थ की मंहगाई पर एक दिन के भारत बंद से इतिश्री कर लिया गया है. राज्यों में इसको लेकर कोई चेन रियेक्शन नहीं दिखाई दिया है. रॉफेल पर भी राहुल गांधी ही सड़क पर हैं.
हरियाणा और महाराष्ट्र के प्रदेश के मुखिया पार्टी के लिए संघर्षरत दिखाई दे रहे हैं. हरियाणा के अशोक तंवर की साईकिल यात्रा चल रही है. लेकिन ये भी पार्टी के अंदरूनी बगावत से परेशान हैं. हरियाणा में 10 साल सीएम रहे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा सामांतर पार्टी चलाने की कोशिश कर रहे हैं. जिससे वर्कर हताश है. दोनों के बीच चल रहे शीत युद्ध से वर्कर बंटा हुआ है. महाराष्ट्र में भी अशोक चह्वाण और गुजरात के प्रभारी राजीव सांतव के बीच अनबन की खबर है. मुंबई कांग्रेस की कमोवेश यही दशा है.
प्रेस कांफ्रेस की धूम
कांग्रेस में दिन में कई बार प्रेस वार्ता होती है. अलग-अलग नेता आकर प्रेस से बात करते हैं. ज्यादातर पर्सनल पब्लिसिटी के लिए किया जाता है. वही लकीर पीटी जा रहा है. जब वाकई मुद्दे उठाने की जरूरत हो तो पार्टी जवाब देनें में हिचकिचाती है. हालांकि कई बार राहुल गांधी ने खुद आकर मामला संभाला है. रॉफेल का मसला भी राहुल गांधी के लगातार कोशिश का नतीजा है.
जहां चुनाव हो रहें हैं वहां राहुल गांधी के साथ दिखने की होड़ है. जबकि बड़े नेता किसी और इलाके में इस दौरान पार्टी का प्रचार कर सकते है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी के साथ साए की तरह दिखाई दे रहे हैं. जबकि पार्टी को जिताने के लिए इस वक्त को लगाया जा सकता है. राजस्थान में कमोवेश यही स्थिति है. सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मुख्यमंत्री बनने की होड़ है. राहुल गांधी को इन नेताओं को साथ रखने की जगह जिस इलाके में जा रहे हैं वहां के स्थानीय नेताओं को तरजीह देनी चाहिए. जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में जोश पैदा होगा.
संगठन में जान नहीं पूरे देश में स्थिति चिंताजनक है. पार्टी की कोई स्टेट यूनिट कोई मूवमेंट खड़ा करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है. किसी प्रोग्राम की नाकामी का प्रश्न तब उठता है जब ये शुरू किया जाए. कांग्रेस कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से ईटानगर तक एक ही ढर्रे पर चल रही है. किस तरह पार्टी 2019 में बीजेपी से मुकाबला करेगी ये बड़ा सवाल है. सत्ता में आने के लिए मशक्कत नहीं हो रही है. जनता जनार्दन का ही भरोसा है.
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