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कांग्रेस: हिंदू पार्टी से मुस्लिम पार्टी और फिर से हिंदू पार्टी

आजादी के पहले मुस्लिम लीग द्वारा हिंदू पार्टी के तमगे से नवाजे जाने वाली कांग्रेस ने नेहरू के आने के बाद मुसलमानों से खूब प्रेम बटोरा. अब 2014 के बाद कांग्रेस फिर अपनी इमेज बदलने की कोशिश कर रही थी

Updated On: Apr 18, 2018 08:17 AM IST

Sudhanshu Ranjan Sudhanshu Ranjan

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कांग्रेस: हिंदू पार्टी से मुस्लिम पार्टी और फिर से हिंदू पार्टी

हैदराबाद मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में अदालत द्वारा सभी दोषियों को बरी किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर प्रहार किया कि वोट बैंक की राजनीति के तहत उसने हिंदू/भगवा आतंकवाद का ढिंढोरा पीटा. जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि राहुल गांधी या कांग्रेस ने कभी भगवा आतंकवाद शब्द इस्तेमाल नहीं किया. आरोप को बकवास बताते हुए उन्होंने कहा कि आतंक को धर्म या समुदाय से जोड़ना आपराधिक मानसिकता की पहचान है.

यह कांग्रेस की हिंदू राजनीति का अगला पड़ाव है. 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त खाने के बाद एके एंटनी के नेतृत्व में गठित पार्टी की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में हार का कारण बताया था कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि. तब से कांग्रेस लगातार उस छवि को बदलने का प्रयास कर रही है. कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार के जमाने में भगवा आतंकवाद की चर्चा बार-बार हुई, किंतु कांग्रेस की ओर से इसका कभी खंडन नहीं किया गया. अब हिंदू मतों को पाने की बेचैनी कांग्रेस से वह सब करवा रही है जिसके विरुद्ध वह खड़ी थी.

कर्नाटक में वासवन्ना के आदर्शों का हवाला

कनार्टक में चुनाव होने जा रहे हैं और गुजरात की तरह राहुल गांधी का मंदिर दौरा भी तेजी से चल रहा है. उन्होंने वासवन्ना के आदर्शों पर चलने की भी बात कही है. हिंदू मतों को पाने की कांग्रेस की बेचैनी गुजरात चुनाव में साफ देखने को मिली जो अब कर्नाटक में झलक रही है. इस बेचैनी की इंतेहा तो तब हो गई जब सोनिया गांधी ने यह बयान दे दिया कि बीजेपी लोगों को समझाने में सफल रही कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है.

कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी शनिवार को गुजरात पहुंचे. गुजरात पहुंचते ही वह सबसे पहले सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने पार्टी नेताओं के साथ पहुंचे (फोटो: पीटीआई)

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस में ज्यादातर नेता हिंदू है जबकि कुछ मुसलमान भी हैं. उनका यह वक्तव्य कांग्रेस की अब तक की घोषित नीति पर पूर्ण विराम है जब वह पंथनिरपेक्षता का जाप करना नहीं भूलती थी. तो क्या इसका अर्थ यह है कि सेकुलरिजम का सिक्का घिसकर अपनी चमक के साथ-साथ अपनी खनक खो चुका है और इसे अलविदा कहने का यह माकूल वक्त है.

जनेऊधारी हिंदू हैं राहुल

जब राहुल गांधी गुजरात में मंदिरों का दौरा कर रहे थे तो कांग्रेस के प्रवक्ता ने यहां तक घोषणा कर दी कि राहुल ‘जनेऊधारी हिंदू’ हैं. इस वक्तव्य से पिछड़े-दलितों के अलग होने का भी खतरा है क्योंकि केवल सवर्ण हिंदू ही जनेऊ पहनते हैं. (वैसे तो अब अधिकतर सवर्णों ने इसे पहनना छोड़ दिया). परंतु जनेऊधारी होना हिंदू होने का अकाट्य प्रमाण है. यह देखना है कि राहुल की मंदिर यात्रा एवं सोनिया का बयान और अब कांग्रेस का यह वक्तव्य कि उसने कभी भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया कांग्रेस की उस छवि को कितना धो पाता है कि वह मुसलमानों का तुष्टिकरण करती है.

भारत में पंथनिरपेक्षता या बहुसांस्कृतिकता किसी नेता की कृपा की मोहताज नहीं है. बल्कि भाषा, धर्म, जाति, वेश-भूषा, रहन-सहन की व्यापक विविधता के कारण यह जीवंत है जो समाज को एकरूपीय होने से रोकती है. ब्रिटेन एवं अन्य पश्चिमी देशों ने बहुसांस्कृतिकता को कभी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया जो मेगन मार्कल के साथ राजकुमार हैरी की सगाई पर उठे विवाद से स्पष्ट है.

1936 के बाद इंग्लैंड के शाही परिवार में शादी करने वाली मेगन पहली तलाकशुदा अमेरिकी महिला होगी. चूंकि हैरी युवराज नहीं हैं, इसलिए विवाद उतना नहीं हुआ जितना 1936 में एडवर्ड अष्टम के विवाह को लेकर हुआ था. सम्राट बनने के बाद वह प्रोटोकोल से असहज महसूस करने लगे और स्थापित संवैधानिक परंपराओं के प्रति पूरा सम्मान नहीं दिखलाते थे.

जब उन्होंने अमेरिका की श्रीमती वैलिस सिम्पसन के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा तो संवैधानिक संकट खड़ा हो गया क्योंकि उनका दो विवाह हुआ था तथा दूसरे पति के साथ तलाक की प्रक्रिया चल रही थी. इस कारण मात्र 326 दिनों तक राजा रहने के बाद उन्होंने राज सिंहासन अपने भाई जॉर्ज षष्ठम के लिए छोड़ दिया.

मेगन का भी बपतिस्मा ऐंग्लिकन के रूप में होगा क्योंकि वह एक प्रोटेस्टेंट हैं. युवराज विलियम से शादी के पहले केट मिडलटन का भी ऐंग्लिकन के रूप में संस्कार किया गया. जबकि भारत में सोनिया गांधी को उनके पति का धर्म मानने को विवश नहीं किया गया.

आखिर साबित ही क्यों करना चाहती है कांग्रेस?

सवाल है कि आखिर क्यों कांग्रेस यह साबित करने के लिए परेशान है कि वह मुस्लिम-परस्त पार्टी नहीं है. इससे पार्टी का मूल दर्शन खंडित होता है कि बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक के बीच की दरार अंग्रेजों की बनाई हुई है. महात्मा गांधी ने 27 अप्रैल 1942 को आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के लिए जो प्रस्ताव भेजा था उसमें लिखा, 'बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यक का सवाल अंग्रेजों का बनाया हुआ है और उनके वापस जाते ही यह खत्म हो जाएगा.'

उनके प्रस्ताव को कांग्रेस कार्य समिति ने पूरी तरह स्वीकार किया. परंतु सच्चाई यह है कि मुसलमानों के एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस नेतृत्व पर कभी भरोसा नहीं किया. सैयद अहमद खान प्रारंभ में एक राष्ट्रवादी थे जो हिंदू एवं मुसलमान को भारत माता की दो आंखें कहते थे.

लेकिन जैसे ही कांग्रेस की स्थापना हुई और उसने राष्ट्रीय सरोकार के मुद्दे उठाने शुरू किए जिससे ब्रिटिश हुकूमत उस पर संदेह करने लगी, तो सर सैयद सरकार के करीब हो गए और मुसलमानों का आह्वान किया कि वे कांग्रेस में शामिल न हों.

बाद में मुस्लिम लीग कांग्रेस को हिंदू पार्टी कहने लगी और 1946 में अंतरिम सरकार के गठन के समय उसने शर्त रखी कि कांग्रेस को मंत्रिमंडल में किसी मुसलमान को मनोनीत करने का अधिकार नहीं होगा क्योंकि वह मुसलमानों का अकेला प्रतिनिधि है.

जब कांग्रेस ने 14 सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया तो उसमें दो मुसलमान- शफ्फात अहमद खान एवं सैयर जहीर अली शामिल थे. कांग्रेस सरकार में शामिल होने के कारण अगले ही दिन एक कट्टर मुसलमान ने खान पर छूरी से हमला कर उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया.

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महात्मा गांधी का सपना कभी पूरा नहीं हुआ क्योंकि आजादी के बाद बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक का प्रश्न बना हुआ है. यह एक विडंबना है कि आजादी के पूर्व जो पार्टी को हिंदुओं की मानी जाती थी, स्वाधीनता के बाद वह मुसलमानों के हितों की रक्षक हो गई ! जवाहरलाल नेहरू मुसलमानों के नायक हो गए जिन्हें मुसलमान महात्मा गांधी से भी अधिक सम्मान देते थे.

गांधीजी की हिंदू जीवन शैली तथा राम राज्य पर उनका जोर मुसलमानों के मन में संदेह पैदा करता था. धीरे-धीरे यह नजरिया बनता गया कि सबसे पुराना राजनीतिक दल मुसलमानों के तुष्टिकरण में लगा है. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में बयान दिया कि राष्ट्रीय संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला हक है. यह हैरतअंगेज है कि वही पार्टी आज हिंदुओं को खुश करने के लिए व्याकुल है.

(लेखक वरिष्ठ टी.वी. पत्रकार और स्तंभकार हैं.)

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