जंगल बुक मूवी के धूर्त बाघ शेर खान की तरह कांग्रेस भी सबक नहीं सीखना चाहती है. फिल्म में शेर खान मोगली को मारने के लिए अति उत्साही रहता है. लेकिन अच्छी योजना नहीं होने से वो विफल हो जाता है. आखिरकार शेर खान जंगल की आग में भयानक मौत मरता है.
कुछ इसी तरह कांग्रेस भी बीजेपी खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का सपना पाले है, लेकिन उसके पास अर्थपूर्ण रणनीति नहीं है. ऐसा लगता है कि राज्य दर राज्य कांग्रेस खुद को खत्म करने के लिए काम कर रही है. गोवा इसकी बेहतरीन मिसाल है.
इस साल फरवरी में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन एतिहासिक गलती के बाद वो गोवा में सरकार बनाने से चूक गई. आज कांग्रेस सबसे गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रही है.
इसके बाद, गोवा में पार्टी के चार विधायकों ने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की. पार्टी राज्य सभा की इकलौती सीट भी हार चुकी है.
राज्य की दो विधान सभा सीटों पणजी और वालपोई पर 23 अगस्त को उप चुनाव हैं. खबरें हैं कि कुल 16 विधायकों में से पांच विधायक कांग्रेस का हाथ छोड़ सकते हैं. ये विधायक बीजेपी या उसके सहयोगी दलों के साथ जा सकते हैं.
पणजी सीट पर उपचुनाव के लिए कांग्रेस ने किसी तरह उम्मीदवार खोजा. यहां से मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर खुद उम्मीदवार हैं. ऐसा लगता है कि कोई भी नेता कांग्रेस के टिकट पर पणजी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं था. एक के बाद एक नेताओं ने पार्टी का प्रस्ताव ठुकरा दिया. आखिरकार बुधवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दोस्त और पार्टी सचिव गिरीश चोडनकर को यहां से उम्मीदवार बनाया गया.
बीजेपी के सिद्धार्थ कुनकोलेनकर ने पणजी सीट से इस्तीफा दिया है, ताकि मुख्यमंत्री पर्रिकर विधान सभा पहुंच सकें. कुनकोलेनकर फरवरी में यहां से चुने गए थे. वालपोई सीट विश्वजीत राणे ने छोड़ी है. राणे कांग्रेस के टिकट पर फरवरी में यहां से चुने गए थे. वो विधायकी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए. पर्रिकर ने उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बना दिया. अब वो बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं. कांग्रेस से राय रवि नाइक उन्हें चुनौती देंगे. नाइक पूर्व मंत्री के बेटे हैं.
कांग्रेस मुक्त भारत के लिए काम कर रही कांग्रेस?
देशभर में कांग्रेस की गलतियों को समझने के लिए गोवा पर गहराई से नजर डालने की जरूरत है. गोवा देश का सबसे छोटा राज्य है. ये महाराष्ट्र के भंडारा जिला (3,700 वर्ग किलोमीटर) जितना ही बड़ा है. इसकी आबादी ठाणे शहर (18 लाख) जितनी ही है.
ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने में कांग्रेस ही उनकी सबसे भरोसेमंद और बेहतरीन साथी है. पहले तो कांग्रेस यहां सरकार बनाने से चूक गई. मार्च में विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राज्य इकाई ने गठबंधन सहयोगी चुनने में देरी की और राहुल गांधी भी दिल्ली में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. दूसरी तरफ, बीजेपी ने छोटी पार्टियों को अपने पाले में लाकर सत्ता की लड़ाई जीत ली.
अप्रैल में, गांधी अपनी विशेषता के मुताबिक सामान्य समाधान लेकर आए. उन्होंने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से राज्य की जिम्मेदारी वापस ले ली. जुलाई में गांधी ने लुईजिन्हो फेलेरियो की जगह 71 साल के पूर्व सांसद शांताराम नाइक को राज्य पार्टी का अध्यक्ष बना दिया. इसके तुरंत बाद राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के चार विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी. नाइक खुद राज्य सभा का चुनाव हार गए और गोवा से बीजेपी को पहली बार राज्य सभा की सीट उपहार में दे दी.
पर्रिकर सरकार को गिराने की कांग्रेस की कोशिश नाकाम
इन घटनाओं से अविचलित गांधी ने मोदी को सबक सिखाने की सोची. उन्होंने सोचा कि सबसे अच्छा तरीका गोवा की पर्रिकर सरकार को गिराना होगा. इसे मोदी जीवन में कभी नहीं भूल पाएंगे. पिछले महीने उन्होंने नायक को ये निर्देश दिया. इसके लिए नाइक ने एतानसियो मोनसेट को काम पर लगाया.
मोनसेट का राजनीतिक करियर रंग-बिरंगा रहा है. वो तेजी से पार्टी बदलने के लिए जाने जाते हैं. उन पर उगाही और बलात्कार जैसे आपराधिक मामले भी हैं. कांग्रेस ने उन्हें 2015 में पार्टी से बाहर कर दिया था. तब पणजी उप चुनाव में उन पर बीजेपी की मदद करने का आरोप लगा था. धन-बल के महारथी मोनसेट पर्रिकर सरकार गिरवाने पर सहमत हो गए. उन्होंने बीजेपी की साथी गोवा फारवर्ड पार्टी के तीन विधायकों को कांग्रेस में मिलाने की योजना बनाई.
इसके एवज में मोनसेट के सामने पणजी उप चुनाव में पर्रिकर के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार बनने का प्रस्ताव रखा गया. गांधी और नाइक ने राहत की सांस ली. दोनों को भरोसा हो गया कि उन्होंने सबकुछ कर लिया है, और बीजेपी के लिए सबकुछ खत्म होने वाला है.
मोनसेट ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया. उन्होंने गोवा फारवर्ड पार्टी में शामिल होने और पणजी सीट पर पर्रिकर के समर्थन में प्रचार करने का एलान कर दिया. पर्रिकर सरकार को गिराने की बात छोड़िए, नाइक के लिए पणजी से कांग्रेस उम्मीदवार खोजना मुश्किल हो गया और आखिरकार चोडनकर को मैदान में उतारा गया.
जिस वजह से कांग्रेस राज्य में सरकार बनाने में विफल रही, वो वजहें आज भी कांग्रेस का पीछा नहीं छोड़ रही हैं. निष्क्रिय राज्य इकाई और परेशान राहुल गांधी की अगुवाई में नकारा आलाकमान.
मोनसेट ने पाला बदलने की रोचक वजहें बताईं. उन्होंने कांग्रेस को ऐसी पार्टी बताया जो संगठन बनाने को लेकर गंभीर नहीं है. सरकार गठन के समय भी कहानी कुछ ऐसी ही थी.
फरवरी के चुनाव में बीजेपी ने महज 13 सीटें जीती थीं जबकि 40 सदस्यों वाली विधान सभा में कांग्रेस के खाते में 17 सीटें आई थी. बीजेपी ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) और जीएफपी के तीन-तीन और तीन निर्दलीय विधायकों को साथ लेकर आसानी से 22 का आंकड़ा छू लिया. एमजीपी और जीएफपी आसानी से कांग्रेस की तरफ जा सकती थीं.
एमजीपी उन्हीं हिंदू वोटों के लिए बीजेपी के साथ प्रतिस्पर्धा करती है, जिनके बल पर बीजेपी को जीत मिलती है. इसलिए एमजीपी कांग्रेस के साथ सरकार बनाने में ज्यादा सुखद महसूस करती. जीएफपी ने चुनाव से पहले और बाद में कांग्रेस के सामने गठबंधन का प्रस्ताव रखा था. लेकिन कांग्रेस के नेता फैसला नहीं कर पाए. नेताओं के बीच इन दोनों पार्टियों की मदद लेने के मुद्दे पर मतभेद थे, इसलिए पार्टी ने सरकार बनाने का अवसर खो दिया।
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