अविश्वास प्रस्ताव जब 325 के मुकाबले 126 वोटों से धराशायी हुआ तो शायद विपक्ष को अहसास हुआ होगा कि वाकई इसे लाने का कोई ठोस कारण नहीं था. बल्कि संसद को सियासी कुरुक्षेत्र बना कर विपक्ष ने ऐतिहासिक भूल कर अपनी फज़ीहत कराने का ही काम किया. जिन मुद्दों पर उसने सरकार को घेरने की कोशिश की उन्हीं मुद्दों का जवाब देकर पीएम मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का पिटारा खोल दिया.
मोदी सिर्फ जवाब देने की तैयारियों और इरादे के साथ संसद में नहीं आए थे. वो ये जानते थे कि सवा सौ करोड़ के देश को कांग्रेस और अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले विपक्ष के बारे में बहुत कुछ बताने का खास दिन भी है. वो ये भी जानते थे कि आर-पार के इस महामुकाबले में कांग्रेस पर फाइनल वार करने का सबसे बड़ा मौका है. वो ये भी जानते थे कि एक वोट से एनडीए की वाजपेयी सरकार के गिरने के 19 साल बाद हिसाब बराबर करने का भी ये बड़ा मौका है. तभी उन्होंने अपने भाषण के बीच में ये कहा कि आज वो किसी को छोड़ने वाले नहीं हैं और सबके सम्मान का ध्यान रखेंगे.
अपना ही विश्वास डिगा बैठा विपक्ष
पीएम मोदी ने कहा कि वो प्रार्थना करेंगे कि कांग्रेस साल 2024 में भी ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव ले कर आए. लेकिन अविश्वास प्रस्ताव की इस बहस को विपक्ष साल 2024 में भी याद नहीं करना चाहेगा. विपक्ष ने इस अविश्वास प्रस्ताव में अपने अपने सूबे में अपना ही विश्वास डगमगाने का काम किया है.
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मोदी सरकार के खिलाफ बड़ी मुश्किल से विपक्ष एकजुट हुआ था. लेकिन उसके जोश पर ‘मोदी मैजिक’ ने फिर से पानी फेर दिया. तकरीबन 12 घंटे की बहस में विपक्ष ने सत्तापक्ष और खासतौर पर पीएम मोदी पर सारे आरोप लगाए. आरोपों की फेहरिस्त के शोर में तथ्यों की जरूरत नहीं थी. लेकिन जवाब देने में मोदी आंकड़ों के साथ बैठे. उन्होंने पहले राहुल के व्यक्तिगत हमलों का जवाब दिया तो फिर कामदार सरकार के कामों की लिस्ट विपक्ष के कान के पर्दों पर भारी पड़ती चली गई.
जाहिर की विपक्षी एकता की कमजोरी
अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया. ध्वनि-मत से फिर एक बात साबित हो गई कि मोदी सरकार आज भी मजबूत है. इस अविश्वास प्रस्ताव से विपक्षी एकता की ताल ठोंकने वाले दावे भी खारिज हो गए जो बता रहे थे कि वो नंबर गेम में आगे हैं. 126 लोगों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कर न सिर्फ विपक्षी एकता की कमजोरी और कमतर संख्या बता दी बल्कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर भी साफ कर दी. तभी पीएम मोदी साल 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से आश्वस्त हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस साल 2024 के अविश्वास प्रस्ताव के बारे में सोचे.
कांग्रेस ने टीडीपी के कंधे पर रखकर अविश्वास प्रस्ताव की बंदूक चलाई लेकिन निशाना तब भी चूका. टीडीपी का सियासी विरोध एक राज्य भर में सीमित था लेकिन कांग्रेस पर मोदी के हमलों ने सत्तर साल का पूरा हिसाब लिया. कांग्रेस ने इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिये साबित कर दिया कि विपक्षी एकता के तमाम दावे किस कदर खोखले हैं और अविश्वास प्रस्ताव जीतकर मोदी सरकार आज भी मजबूत है. अब साल 2019 में चुनाव मैदान में उतरने के लिये मोदी सरकार के पास सिर्फ योजनाएं ही नही बल्कि आंकड़ों में दर्ज किये हुए ‘कामदार’ दस्तावेज हैं.
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अब क्षेत्रीय पार्टियों के लिए फैसला लेना आसान
कांग्रेस ने साल 2019 में मोदी सरकार को हराने का जो विपक्षी एकता के नाम पर हौव्वा तैयार किया था वो इस अविश्वास प्रस्ताव के एपीसोड की वजह से टूट गया. अब उन छोटी मोटी और क्षेत्रीय पार्टियों के लिये फैसला लेना आसान हो गया है जो एनडीए और यूपीए के बीच में अपने सियासी हित को लेकर असमंजस में थीं. वहीं तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट करने वाली पार्टियां भी अब मोदी की इस जीत के बाद अपनी रणनीति को बदलने पर मजबूर होंगी.
कांग्रेस को इस अविश्वास प्रस्ताव से सिर्फ इतना ही हासिल हुआ है कि उसके नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को साल 2019 की चुनाव में मोदी के मुकाबले विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित कर दिया. ये ठीक उसी तरह है जिस तरह वो कांग्रेस में निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए. इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिये कांग्रेस ने सिर्फ राहुल की ही इमेज बिल्डिंग का काम किया है. लेकिन कांग्रेस के अलावा दूसरे विपक्षी दल ठगे गए. वो पार्टियां जो मोदी विरोध के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहीं थीं लोकसभा में उनके पास मोदी विरोध का न तो ठोस आधार था और न ही शब्द. सवाल उठता है कि फिर ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रस्ताव विपक्ष को दिया किसने था?
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