कांग्रेस ने एक लिंक ट्वीट किया है. जिसको क्लिक करने पर एक प्रोफार्मा नजर आता है. जिसमें आप अपना डिटेल भर सकते हैं.इस फॉर्म में नाम, फोन नंबर, ईमेल आईडी के साथ अपना राज्य लिखना अनिवार्य है. इसके जरिए कांग्रेस सीधे वोटर से कनेक्ट करना चाहती है. यही नहीं पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी राहुल गांधी की तरह लिंक और वाट्स अप का नंबर ट्वीट किया है. चिदंबरम ने कहा कि आपसे बेहतर संवाद के लिए कांग्रेस प्रयास कर रही है. कृपया समय निकालकर अपना ये फॉर्म भर दीजिए, जाहिर है कि कांग्रेस इंटरनेट के माध्यम को प्रचार का नया तरीका बना रही है.
At the Indian National Congress we’re improving our communication to suit your preferences. Please take 2 mins to fill out this form and help us get to know you better. Link: https://t.co/ZnSL9lH2V4
We are also on WhatsApp, say Hi on +91 9205331355— Congress (@INCIndia) September 11, 2018
कांग्रेस को लग रहा है कि पुराने प्रचार माध्यम की जगह नए माध्यम ज्यादा कारगर हैं. खासकर युवा वर्ग मोबाइल पर ज्यादा है. जिसको रिझाने के लिए इस माध्यम का उपयोग जरूरी है. पार्टी का आंकलन है कि शहरी क्षेत्रों में हर घर में स्मार्टफोन का इस्तेमाल हो रहा है. जिससे लोगों तक पहुंचना आसान है.
किस तरह कांग्रेस की तैयारी
कांग्रेस अपने आप को इस नए रण क्षेत्र के लिए तैयार कर रही है. कांग्रेस ने पहले संचार विभाग से अलग सोशल मीडिया टीम खड़ी की है. जिसके बाद पार्टी ने डेटा एनालिकिटल टीम बनाई है. जो पार्टी का ऑनलाइन वॉर का खाका तैयार कर रही है.
सोशल मीडिया टीम को पूर्व कन्नड़ अभिनेत्री दिव्या स्पंदना हेड कर रही हैं. उनके आने के बाद कांग्रेस की धमक सोशल मीडिया में महसूस हो रही है. खासकर फेसबुक, ट्विटर, वाट्स अप और इंस्टाग्राम पर राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ रही है.
डेटा एनालिटिकल डिपार्टमेंट राहुल गांधी को सीधे जनता से कनेक्ट करने का अभियान चला रहा है .पहले शक्ति ऐप लांच किया गया है. जिसकी लाॉन्चिंग दिल्ली में की गई थी. बाद में इसकी सफलता को देखते हुए पूरे देश में इसका विस्तार किया जा रहा है. हालांकि ये ऐप सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए था. जिसकी पहली जानकारी फ़र्स्टपोस्ट में दी गई थी.
जनता से कनेक्ट होना आसान नहीं
अब जनता को जोड़ने काम शुरू किया गया है. हालांकि कार्यकर्ताओं को जोड़ना आसान है. कांग्रेस कार्यकर्ता को प्लेटफॉर्म मिला तो उसने अपने आप को रजिस्टर कर दिया. जनता से ऐसी उम्मीद करना शायद समझदारी नहीं होगी. जनता को इंगेज करने के लिए पार्टी को कोई और तरीका अख्तियार करना पड़ेगा. महज फॉर्म का लिंक देने से काम नहीं चलने वाला है. इसमें कुछ गड़बड़ भी है. जैसे फॉर्म जमा होने के बाद एक्नॉलेजमेंट नहीं मिल रहा है. जिससे ये पता नहीं चलता की फार्म जमा हुआ या नहीं हुआ है.
कांग्रेस इस फॉर्म के डेटा का नया तरीका इस्तेमाल करने की योजना बना रही है. रोजमर्रा के मुद्दे पर पार्टी के रुख की बात तो बताई जाएगी. इसके अलावा राज्यवार ब्योरा भी दिया जाएगा. व्यक्ति के इलाका से जुड़ी समस्याओं पर भी बात होगी. इसके अलावा राहुल गांधी का रिकॉर्डेड मैसेज भी जनता के पास विभिन्न तरीकों से भेजा जाएगा
कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम के कामकाज से पार्टी की मौजूदगी बढ़ रही है. ये टीम सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल कर रही है. कांग्रेस के पक्ष में मेमे और वीडियो अच्छे बन रहे है. जिसको लोग पंसद भी कर रहे हैं. जनता से जुड़े मुद्दो पर कांग्रेस को ठीक रिस्पॉन्स मिल रहा है.
सोशल मीडिया टीम से डरी बीजेपी
बीजेपी इस हथियार का इस्तेमाल करने में पारंगत है लेकिन कांग्रेस के काम से बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह को कहना पड़ा कि इसकी तरफ जनता को ध्यान नहीं देना चाहिए. बीजेपी को सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा है. 2014 में बीजेपी ने इसको हथियार बनाकर चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त दी थी. कांग्रेस का हाल बेहाल होने में सोशल मीडिया का अहम योगदान है. कांग्रेस अब इस विधा में पारंगत होने में लगी है. लेकिन प्रधानमंत्री की लोकप्रियता अभी भी सोशल मीडिया में बरकरार है.
डिजिटल स्पेस महत्वपूर्ण
2014 की तर्ज पर 2019 का आम चुनाव लड़ा जाएगा. लेकिन इस बार बीजेपी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस तैयार है. 2014 में सर्वे के मुताबिक इंटरनेट पर 29 करोड़ लोग इंगेज थे. जिन्होंने 227 मिलियन बार फेसबुक पर अपना नजरिया जाहिर किया. इसमें आधे लोग तत्कालीन प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी के बारे में बात कर रहे थे.
हालांकि हाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल-मई में कर्नाटक चुनाव को लेकर तकरीबन तीस लाख लोगों ने ट्विटर पर जिक्र किया था. जिसमें बीजेपी को 54 फीसदी लोगों का समर्थन हासिल हुआ वहीं कांग्रेस की 42 फीसदी ने हिमायत की है. जिसका मतलब बीजेपी का एकाधिकार खत्म हो रहा है. कांग्रेस बराबर का टक्कर दे रही है. मसलन कांग्रेस का दावा है कि अविश्वास प्रस्ताव के दिन राहुल गांधी को प्रधानमंत्री से ज्यादा लोगो ने सुना है. युवा वोटर को लुभाने के लिए ये स्पेस महत्वपूर्ण है.
बढ़ रहा है डिजिटल स्पेस
देशभर में वोटर की संख्या लगातार बढ़ रही है. 2014 में बीस करोड़ मतदाता के पास इंटरनेट की सहूलियत थी. लेकिन ये लगातार बढ़ रही है. अब पचास करोड़ मतदाता के पास इंटरनेट पहुंच रहा है. 2014 में इंटरनेट का औसत मासिक इस्तेमाल 0.26 जीबी था. जो 2017 में पंद्रह गुना बढ़कर 4 जीबी प्रतिमाह हो गया है. भारत फेसबुक इस्तेमाल करने वालों में नंबर वन पर है. तरकीबन 27 करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल कर रहे हैं.
इसका मतलब ज्यादा से ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसकी पहुंच लगातार बढ़ रही है. कांग्रेस इस ताकत को पार्टी की तरफ मोड़ना चाहती है. लेकिन अभी बीजेपी के आईटी सेल से टक्कर लेने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. बीजेपी ने 11 अशोक रोड को साइबर वॉर रूम के तौर पर बदल दिया है. हर राज्य मुख्यालय में इस तरह का साइबर रूम बन रहा है, जिसमें किसी और को जाने की इजाजत नहीं है.
डेटा मिसयूज पर बवाल
डेटा एक पॉवरफुल हथियार बन गया है. लेकिन इसका गलत इस्तेमाल होने का आरोप भी लगता रहा है. कैंब्रिज एनालिटिका को लेकर कुछ दिन पहले तक बवाल था. जिसमें इस कंपनी के ऊपर ये आरोप लगाया गया था कि चुनाव में डेटा का गलत इस्तेमाल किया है. वहीं फेकन्यूज को लेकर विवाद बढ़ा है. सरकार ने वाट्स अप जैसी कंपनी के ऊपर शिकंजा कसा है. वहीं फेसबुक भारत में आमचुनाव को लेकर अलग से तैयारी कर रही है. ताकि उसके प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल ना किया जा सके.
घर-घर प्रचार का महत्व
कांग्रेस के पुराने नेताओं का कहना है कि पार्टी को ऑनलाइन अभियान के भरोसे ही नहीं रहना चाहिए. कांग्रेस काडर बेस्ड पार्टी नहीं है बल्कि मास बेस्ड पार्टी है जिसको अपनी ओर खींचने के लिए पुराना तरीका ही अपनाना चाहिए. इसलिए इंटरनेट की वजह से इसको नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. बल्कि दोनों का समायोजन जरूरी है. बीजेपी का शहरी वोट है, कांग्रेस का ग्रामीण वोट है. कांग्रेस को ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा फोकस करना चाहिए. तभी बीजेपी को मात दी जा सकती है.
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