नोटबंदी के बाद पहली बार गुजरात पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने इरादे एक बार फिर से साफ कर दिए. मोदी उत्तरी गुजरात के बनासकांठा में अपने लोगों से रूबरू हुए तो नोटबंदी पर अपने तल्ख तेवर में जरासी भी नरमी नहीं दिखाई.
अपनी आलोचनाओं से बेपरवाह, विपक्ष के हमलों से बेफिक्रे, एक बार फिर से मोदी अपने सूबे की जनता के बीच पहुंचे तो इस लड़ाई को कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई बताने में तनिक भी देर नहीं की.
वो भले ही गुजरात की धरती पर थे, लेकिन, उनका संबोधन पूरी देश की जनता के लिए था.
बनासकांठा की अपनी रैली में भी मोदी ने साफ कर दिया, छोटों की ताकत बढ़ाने के लिए मैंने यह कदम उठाया है. पहले छोटे की तरफ कोई नहीं देखता था. अब छोटे नोटों और छोटे लोगों की तरफ सबको देखना पड़ रहा है.
मोदी ऐसा बोलकर गरीबों के जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें भी पता है कि नोटबंदी के बाद लोग परेशान हैं, जिसे मुद्दा बनाकर विपक्ष उनपर हमलावर है.
बेईमाान बनाम ईमानदार की लड़ाई:मोदी
इसीलिए इस बड़े फैसले को गरीबों के हित वाला बार-बार बता रहे हैं. इस पूरी लड़ाई को अमीर बनाम गरीब, बेईमान बनाम ईमानदार की लड़ाई बनाकर इस लड़ाई में जनता का साथ मांग रहे हैं.
अभी भी मोदी को खुद पर भरोसा है. अपनी ईमानदारी और अपने फैसले पर भरोसा है कि जनता उनका साथ नहीं छोड़ेगी.
लिहाजा नोटबंदी के बाद 50 दिन के वक्त के दोहरा रहे हैं. भरोसा दिलाने की कोशिश है कि सब ठीक हो जाएगा.
बनासकांठा में बनसडेरी के प्रोडक्टस लांच करने पहुंचे मोदी का दौरा इसलिए भी बड़ा हो जाता है कि अगले साल के अंत में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछले तीन महीने में यह उनका पांचवां गुजरात दौरा है.
मोदी की नजर यूपी और गुजरात पर
मोदी के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव नाक का सवाल है, लिहाजा पार्टी को वापस पटरी पर लाने और खिसकती साख को वापस लाने पर उनकी नजर है. लेकिन, गुजरात की धरती से ही संदेश यूपी के लिए भी है. मोदी खुद यूपी से लोकसभा सांसद हैं, जहां अगले साल की शुरूआत में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं.
यूपी में मायावती से लेकर मुलायम तक सबने नोटबंदी के बाद मोदी की घेराबंदी की पूरी तैयारी कर दी है. राहुल की आक्रामकता भी यूपी से लेकर पंजाब तक मोदी को परेशान करने के लिए ही है.
लेकिन, मोदी की कोशिश इस चक्रव्यूह को तोड़ने की है. मोदी की अपनी भी व्यूह रचना है. लिहाजा संसद में नहीं तो संसद के बाहर ही सही यूपी से लेकर गुजरात तक रैलियों में ही विपक्ष पर प्रहार कर उसे बैकफुट पर ढ़केलने की कोशिश कर रहे हैं.
उनके रूख से साफ है चाहे जमाना कुछ भी कहे, अपने कदम से वो न पीछे हटेंगे न झुकेंगे. उल्टे मोदी विपक्ष पर हमलावर भी हैं.
लोकसभा नहीं जनसभा में नोटबंदी पर बात
मोदी ने कहा कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जा रहा है. लिहाजा जनसभा के जरिए नोटबंदी पर अपनी बात कहनी पड़ती है. यह मोदी की लाचारी नहीं विपक्ष को कठघड़े में खड़ा करने की रणनीति है.
संसद ठप है. नोटबंदी पर बहस नहीं हो रही है, राष्ट्रपति ने भी इसको लेकर सवाल खड़े किए हैं. उधर, आडवाणी की तरफ से भी नाराजगी जताई जा चुकी है.
लेकिन, 'बेफिक्रे' मोदी तो अपनी धुन में मग्न हैं. हमेशा की तरह अपनी जिद पर कायम.
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