live
S M L

कॉमन सिविल कोड: धर्म और राजनीति का टकराव का नतीजा

तीन तलाक का विवाद राजनीति और धर्म के टकराव का नतीजा है

Updated On: Nov 18, 2016 12:47 PM IST

Krishna Kant

0
कॉमन सिविल कोड: धर्म और राजनीति का टकराव का नतीजा

कॉमन सिविल कोड का अब तक कोई स्वरूप ही मौजूद नहीं है, उसे लेकर महाभारत ठन गई है.

सुप्रीम कोर्ट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कानूनी रास्ता तलाश रहा है. सरकार वोट बैंक तलाश रही है. मौलाना और मौलवी लोग मजहबी धंधा बचाने की जुगत तलाश रहे हैं.

सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी की मंशा साफ है कि वह इस मसले को चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है. भाजपा की छवि मुसलमान विरोधी है. क्या सच में भाजपा मुसलमानों के पिछड़ेपन पर चिंतित है?

अगर हां, तो भाजपा पहले मुस्लिमों की शिक्षा और रोजगार को लेकर पहल क्यों नहीं करती? यूपीए के समय बनी सच्चर कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि मुसलमान दलितों से भी बदतर स्थिति में हैं.

कमेटी ने मुस्लिमों के उत्थान के लिए कई अहम सिफारिशें की थीं. भाजपा उन सिफारिशों को लागू करने की दिशा में क्यों नहीं बढ़ती? उसे पहला काम यह करना चाहिए कि मुस्लिम तबके को शिक्षित किया जाए.

अशिक्षा और धार्मिक जड़ता का गठजोड़ टूटेगा तो कोई भी लोकतांत्रिक पहल आसान होगी. लेकिन भाजपा ऐसा कुछ करेगी, इसकी फिलहाल कोई योजना नहीं है.

Talaq हाल ही में तीन तलाक के विरोध में 50,000 मुस्लिम महिलाओं ने एक याचिका पर दस्तखत करके महिला आयोग को भेजा था. याचिका में तीन तलाक को समाप्त करने की अपील की गई थी.

इस मसले पर मौलानाओं का रवैया भी क्या है! वे खुद मानते हैं कि झटके में तीन तलाक देना धार्मिक व्यवस्था का विकृत रूप है. यह महिला विरोधी तो है ही, कुरान की व्यवस्था का उल्लंघन भी करता है.

इसके बावजूद मौलाना कह रहे हैं कि धार्मिक मामले में अदालत या सरकार कोई दखल दे ही नहीं सकती.

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने हलफनामा दिया कि वह तीन तलाक व्यवस्था के विरोध में है. कोर्ट के सवाल करने पर सरकार ने कॉमन सिविल कोड की भी पहल की है.

इसके विरोध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने कोर्ट में हलफनामा दिया कि अदालतों को कुरान और शरिया कानून से संबधित मुद्दों की जांच करने का अधिकार नहीं है.

मुस्‍लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले को लेकर सरकार के खिलाफ जनसमर्थन जुटाने का प्रयास कर रहा है.

विश्वास से उपजा नजरिया 

बोर्ड मुस्लिम महिलाओं से तीन तलाक के मामले पर एक फॉर्म भरवा रहा है. फॉर्म में लिखा है कि ‘वे शरीयत के अनुसार तलाक, खुला और फस्‍ख में किसी भी तरह की गुंजाइश और तब्‍दीली की जरूरत महसूस नहीं करती हैं.ʼ

यह नजरिया उस विश्वास से उपजा है कि सामाजिक या राजनीतिक व्यवस्था भी धर्म से संचालित होगी.

तीन तलाक और कॉमन सिविल कोड का विवाद राजनीति और धर्म के टकराव का नतीजा है.

सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के कुछ ऐसे मामले गए थे जिसमें चिट्ठी, फोन या मैसेज के जरिये नाजायज तरीके से तलाक दिए गए थे.

पिछले साल अक्टूबर में देहरादून की शायरा बानो को उनके पति ने चिट्ठी के जरिए तलाक दे दिया.

35 साल की शायरा ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत दिए जाने वाले तीन तलाक को गैर-कानूनी घोषित किया जाए. कोर्ट ने इसपर राज्य और केंद्र सरकार, महिला आयोग समेत सभी पक्षों से जवाब मांगा था.

जवाब में केंद्र सरकार ने तीन तलाक की व्यवस्था को गलत बताया और इसे खत्म करने की मांग की. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक और बहुविवाह का बचाव किया.

एक ऐसी व्यवस्था जो कुरान के भी विरोध में है, उसके बचाव में आना निहायत ही गैर-लोकतांत्रिक है. मुस्लिम समाज का डर है कि कॉमन सिविल कोड आने से इस्लामिक कानून प्रभावित होंगे.

इसके जवाब पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान कहते हैं, 'इस्लामिक कानून प्रभावित होंगे या नहीं, यह तो तभी कहा जा सकता है जब विधेयक का प्रारूप हमारे सामने हो.'

'दुनिया भर में तीन तलाक का अधिकार भारत को छोड़कर कहीं भी मुस्लिम पुरुष को हासिल नहीं है.'

'बड़ी संख्या में मुसलमान अमरीका और यूरोप में रहते हैं जहां पर्सनल लॉ जैसा कोई कानून नहीं है.'

क्या कॉमन सिविल कोड मुसलमानों के धार्मिक अधिकार में बाधक होगी, इसके जवाब में आरिफ मोहम्मद खान का कहना है, 'भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्तिगत अधिकार है सामुदायिक नहीं.'

'दूसरी बात, यह अधिकार लोक व्यवस्था, सदाचार, स्वास्थ्य तथा संविधान के अन्य उपबंधों से बाधित है. तीसरे, धर्म की स्वतंत्रता राज्य को ऐसे कानून बनाने से नहीं रोकती जिसका उद्देश्य धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य लौकिक कार्यकलाप का विनियमन या निर्बंधन हो.'

केंद्र सरकार नागरिकों को यह बताने में विफल रही है कि कॉमन सिविल कोड का उद्देश्य धार्मिक स्वतंत्रता को समाप्त करना नहीं है. उसका उद्देश्य भारतीय महिलाओं को समान अधिकार दिलाना है.

सरकार को यह बताना चाहिए कि कॉमन सिविल कोड यह तय नहीं करेगी कि किसका विवाह कैसे संपन्न होता है.

यह कानून सिर्फ यह तय करेगा कि विवाह से पैदा होने वाले अधिकार और कर्तव्य सभी नागरिकों के लिए समान होंगे.

हर बात को चुनावी मुद्दा बनाकर पार्टियां राज्य की भूमिका को ही संदेहास्पद बनाएंगी. इससे बचाना चाहिए.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi