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LokSabha Election 2019: 'दीदी' के आगे पश्चिम बंगाल में पीएम मोदी की जोरआजमाइश कितनी कारगर साबित होगी?

उन्होंने बजट प्रावधानों की विस्तार से चर्चा करते हुए पीएम-किसान योजना का खास जिक्र किया. इस योजना में छोटे और सीमांत किसानों को आमदनी में सहायता-राशि के तौर पर सालाना 6000 रुपए देने की बात है.

Updated On: Feb 04, 2019 09:31 PM IST

Sreemoy Talukdar

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LokSabha Election 2019: 'दीदी' के आगे पश्चिम बंगाल में पीएम मोदी की जोरआजमाइश कितनी कारगर साबित होगी?

यूं तो आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर सबकी नजरें उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं लेकिन पश्चिम बंगाल में होने जा रहा मुकाबला भी कोई कम मानीखेज नहीं. शनिवार को हुई नरेंद्र मोदी की दो रैलियां एक बड़ी फिल्म का बस 'ट्रेलर' है, जैसा कि एक दूसरे मामले में पीएम मोदी ने कहा भी. इधर प्रधानमंत्री दोपहर में ठाकुरनगर की रैली में गरजे और दुर्गापुर में शाम के समय समां बंधा तो उधर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तरी बंगाल के अलिपुरदुआर जिले के फलकटा में जनसभा की.

खबरों में कहा जा रहा है कि अगले आठ दिन में बीजेपी के स्टार प्रचारक राज्य में 10 से ज्यादा जनसभाएं कर सकते हैं. मुमकिन है, नरेन्द्र मोदी की एक और जनसभा शुक्रवार को जलपाईगुड़ी में हो और राजनाथ सिंह चिनसुरा में रैली करें जबकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अगले कुछ दिनों में चार रैलियां करने वाले हैं. मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कुछ रैलियों में शिरकत के लिए आने वाले हैं. अमित शाह की हाल की रैली से उपजा विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है. साफ जाहिर है कि बीजेपी के निशाने पर अभी बंगाल है और बंगाल में बीजेपी को मुकाबला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से करना है जो रणकौशल में चतुर और जुझारु तेवर की राजनेता हैं.

तृणमूल कांग्रेस के शासन में चल रहे देश के पूर्वी सिरे के इस राज्य में लोकसभा की 42 सीटें हैं. बीजेपी बेचैन है कि पश्चिम बंगाल से कम से कम 50 फीसदी सीटें उसकी झोली में आ जाएं. हालांकि उसने लक्ष्य 23 सीटों का रखा है. बीजेपी ने एक खास सोच के तहत अपना ध्यान पश्चिम बंगाल की तरफ लगाया है. आमतौर पर मानकर चला रहा है कि उत्तर और मध्य भारत में बीजेपी का चुनावी प्रदर्शन इस बार 2014 सरीखी ऊंचाई को न छू पाएगा. जब उसने अकेले यूपी में अपने सहयोगी दलों के साथ 80 में से 73 सीटें और मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात की कुल 80 में से 78 सीटें झटक ली थीं. हाल में हिन्दीपट्टी के तीन राज्यों में बीजेपी की हार से भी इस सोच को बल मिला है.

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अगर इन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों को कसौटी मानें तो फिर साफ है कि बीजेपी गुजरात में जैसे-तैसे करके अपनी नाक बचा सकी, जबकि मध्यप्रदेश और राजस्थान में जोर पकड़ती कांग्रेस से बीजेपी बड़े थोड़े से अन्तर से ही लेकिन चुनावी मुकाबले में पीछे रह गई. विपक्षी पार्टियों की एकजुटता, किसानों के संकट के कारण सुस्त पड़ती ग्रामीण अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी और भारतीय राजनीति की पहचान रही सत्ताविरोधी लहर सरीखे कई कारण हैं जो बीजेपी इन राज्यों में 2014 सरीखा अपना प्रदर्शन नहीं दोहरा सकती. सो, बीजेपी के लिए भारत के पूर्वी तट के राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी हो गया है. इस पट्टी में आंध्रप्रदेश, ओड़िशा, तमिलनाडु, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 144 सीटें हैं. इस पट्टी में बीजेपी का प्रदर्शन 2014 में खास अच्छा नहीं रहा था जबकि उस वक्त लहर बीजेपी के पक्ष में चली थी.

सियासी माहौल

आबादी की बुनावट और सियासी माहौल की खासियत के कारण पश्चिम बंगाल बीजेपी के लिए चुनाव में पांसा पलट देने वाला राज्य साबित हो सकता है. बीजेपी पश्चिम बंगाल मे दशकों तक कुछ खास असर न जमा पाई, इक्का-दुक्का ठिकानों पर उसकी धाक जरूर कायम हुई लेकिन फिर इस स्थिति से आगे बढ़कर अब बीजेपी पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी के रूप में उभरी है. बीजेपी के हिमायती वोटरों की तादाद बढ़ रही है और राज्य में किसी वक्त प्रभावशाली रहे सीपीआई(एम) और कांग्रेस सरीखी पार्टियों को बीजेपी अपने प्रभाव से किनारे कर चुकी है. प्रधानमंत्री की शनिवार की रैली में उमड़ी भीड़ को देखकर जान पड़ता है कि पश्चिम बंगाल मे पार्टी लोगों के दिल मे जगह बना रही है, उसके कदम मजबूती से जम गए हैं और पार्टी की योजना काम कर रही है.

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बीजेपी सूबे में बड़े दिलचस्प ढंग से अपनी योजना को अंजाम दे रही है. पार्टी को पता है कि ममता बनर्जी एक कद्दावर नेता हैं और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में सिरमौर की भूमिका निभाने का सपना उनके दिल में भी है. सो, बीजेपी बड़े नपे-तुले अंदाज और अपने को काबू में रखते हुए आक्रमण कर रही हैं. जोर लोगों से संपर्क साधने, मुख्यमंत्री पर निशाना साधने और राज्य की आबादी की खास बुनावट को अपने हक में भुनाने पर है लेकिन बीजेपी सत्ताधारी पार्टी को अपने खिलाफ भड़काना नहीं चाहती. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पोस्टर फाड़ने जैसे वाकए के बाद ऐसा किया जा सकता था. राज्य की आबादी की खास बुनावट को अपने हक में भुनाने की बात शनिवार की रैली से समझी जा सकती है. इस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मटुआ महासम्मेलन में शरीक हुए. यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी लेकिन प्रधानमंत्री शनिवार के दिन रैली से पहले बीनापाणी देवी से मिलने गए. उम्र के नौवें दशक में चल रही बीनापाणी देवी मटुआ समुदाय की शीर्ष नेता हैं और प्रधानमंत्री का उनसे मुलाकात को जाना अपने आप में महत्वपूर्ण है.

Kolkata: West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee during a press conference at Nabanna(State Secretariat) in Kolkata on Tuesday. PTI Photo(PTI7_4_2017_000168B)

धर्म की बुनियाद पर प्रताड़ना के शिकार हुए लोगों के एक विशेष समुदाय का नाम है मटुआ. अविभाजित भारत के बंगाल में इस संप्रदाय की नींव डाली 19वीं सदी के एक समाज-सुधारक हरिचंद ठाकुर ने. बाद को बंगाल का यही इलाका पूर्वी पाकिस्तान कहलाया और आखिर में बांग्लादेश बना. मटुआ संप्रदाय के लोग बांग्लादेश छोड़ने को बाध्य किए गए. बांग्लादेश से भारत पहुंचे ये लोग सीमावर्ती ठाकुरनगर सरीखे सीमावर्ती इलाके में बस गए. ठाकुरनगर कोलकाता से लगभग 80 किलोमीटर दूर है. देश के बंटवारे के वक्त इस समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा बढ़ी और ये लोग हावड़ा, दोनो चौबीस-परगना, नदिया, माल्दा, कूचबिहार और उत्तरी और दक्षिणी दिनाजपुर मे बस गए. संख्या के एतबार से पश्चिम बंगाल की अनुसूचित जातियों में मटुआ लोग दूसरे नंबर पर हैं.

शरणार्थी

शरणार्थियों का यह समुदाय आपस में बहुत घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है. मटुआ समुदाय के लोगों की तादाद 3 करोड़ के आस-पास है और अपने संख्याबल के कारण ये समुदाय बंगाल की चुनावी राजनीति में खास अहमियत रखता है. सूबे में पैर जमाने की कोशिश कर रही बीजेपी के लिए मटुआ समुदाय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. मटुआ समुदाय के जो लोग 1971 के बाद भारत पहुंचे उन्हें साल 2003 के नागरिकता संशोधन अधिनियम में ‘अवैध घुसपैठिया’ करार दिया गया है. इन्हें पूर्ण नागरिकता मिलनी शेष है और ऐसे लोगों को संदिग्ध मतदाता की श्रेणी में रखा गया है. मटुआ समुदाय के सिसायी रूप से असरदार होने के साथ इसके सदस्यों को सूबा-बदर करना तो रूक गया लेकिन पूर्ण नागरिकता की इनकी मांग अभी पूरी नहीं हुई है. मटुआ लोगों की पूर्ण नागरिकता की मांग बीजेपी के नागरिकता संशोधन विधेयक में है. इसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए धार्मिक उत्पीड़न के शिकार हिन्दुओं को पूर्ण नागरिकता देने की बात कही गई है.

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सो, यह समझना मुश्किल नहीं कि मोदी ने बीनापाणी देवी (बोरो-मां) से मुलाकात क्यों की और उनकी रैली में इतनी बड़ी तादाद में लोग क्यों पहुंचे कि सभास्थल पर लगभग भगदड़ सरीखा माहौल पैदा हो गया. अपने चौदह मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्ण नागरिकता के मसले को उठाया और तृणमूल कांग्रेस से चुनौती के स्वर में कहा कि वो नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को समर्थन दे. यह विधेयक संसद के अगले सत्र में पेश हो सकता है.

प्रधानमंत्री ने रैली में कहा 'सांप्रदायिकता के कारण अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लोगों को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा. हिन्दू, जैन और पारसी समुदाय के लोगों के लिए भारत शरणस्थली साबित हुआ. इन्हीं लोगों के लिए हम नागरिकता विधेयक लेकर आए हैं. मैं तृणमूल से अपील करता हूं कि वह इस विधेयक को समर्थन दे, संसद में इसे पारित करवाए. दुर्गापुर में मोदी ने पैंतरे से काम ना लेते हुए आक्रामक रुख अपनाया. उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भ्रष्टाचार का प्रतीक बताते हुए कहा कि ‘सिंडिकेट टैक्स’ और ‘टोलाबजाइ टैक्स’ के कारण राज्य का विकास बाधित हो रखा है. पीएम मोदी ने ऐसा कहकर तृणमूल की शह पाए गुंडों के हाथो हो रही जबरिया वसूली की तरफ ध्यान दिलाया. याद कर पाना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर इतना तीखा हमला अब से पहले कब किया था.

Kolkata: West Bengal Chief Minster Mamata Banerjee with NCP President Sharad Pawar and Congress leader Mallikarjun Kharge during TMC mega rally 'Brigade Samavesh', in Kolkata, Saturday, Jan 19, 2019. (PTI Photo/Ashok Bhaumik) (PTI1_19_2019_000129B) *** Local Caption ***

उन्होंने बजट प्रावधानों की विस्तार से चर्चा करते हुए पीएम-किसान योजना का खास जिक्र किया. इस योजना में छोटे और सीमांत किसानों को आमदनी में सहायता-राशि के तौर पर सालाना 6000 रुपए देने की बात है. मोदी ने अपने भाषण का एक बड़ा हिस्सा ममता बनर्जी की आलोचना पर केंद्रित किया. उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति असहिष्णु और अधिनायकवादी रवैया अपनाने, विपक्षी पार्टियों को रैली करने से रोकने और विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर निशाना साधने का दोषी बताया. मोदी ने अपने खास अंदाज में कहा, 'मैं अब जान गया हूं कि दीदी हिंसा का रास्ता क्यों अख्तियार कर रही हैं. वो मेरे प्रति आपका प्रेम देखकर डर गई हैं' मोदी के भाषण में महागठबंधन का भी जिक्र आया क्योंकि ममता बनर्जी ने ‘यूनाइटेड इंडिया’ रैली के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई थी. मोदी ने इस रैली को अवसरवादी जुटान करार देते हुए कहा कि इस रैली में शिरकत करने वाले नेता हाल के वक्त तक एक-दूसरे के विरोधी हुआ करते थे और एक-दूसरे को जेल भेजने की धमकी दे रहे थे.

रैली में आए लोगों ने पुरजोर आवाज में मोदी का समर्थन किया और बाद में ममता बनर्जी की जो क्रोध भरी प्रतिक्रिया सामने आयी, उससे साफ जाहिर था कि मोदी का तीर एकदम निशाने पर बैठा है. लेकिन बीजेपी की मुश्किल यह है कि पार्टी में अब भी भीड़ को अपनी तरफ खींचने की ताकत सिर्फ एक ही व्यक्ति के पास सिमटी दिखती है. जिस दिन मोदी की रैली में भारी भीड़ थी उसी दिन उत्तर बंगाल के फलकटा में राजनाथ सिंह भी रैली कर थे लेकिन उनकी जनसभा में कोई खास भीड़ नहीं दिखी. हालांकि बीजेपी इस इलाके में परंपरागत रूप से मजबूत हालत में है. हो सकता है, भीड़ के ना पहुंच पाने के पीछे संगठन की कोई कमी रही हो या फिर इसे राजनाथ सिंह के ऊपर लोगों की एक टिप्पणी के रूप में भी लिया जा सकता है. लेकिन इससे इतना तो पता चल ही गया है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी का सारा दारोमदार मोदी पर है.

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