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छत्तीसगढ़ चुनाव 2018: अजीत जोगी कांग्रेस के सुनहरे सपनों पर ग्रहण लगा सकते हैं

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कभी राज्य में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे. 2016 में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम की पार्टी बना ली थी.

Updated On: Nov 14, 2018 03:42 PM IST

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छत्तीसगढ़ चुनाव 2018: अजीत जोगी कांग्रेस के सुनहरे सपनों पर ग्रहण लगा सकते हैं

अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया है कि सत्ता में आने पर धान का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2500 रुपए प्रति क्विंटल करने का वादा किया है. कांग्रेस ने भी यही चुनावी वादा किया है. जेसीसी ने सरकारी कामों में ठेकेदारी को भी खत्म करने का वादा किया है. पार्टी का कहना है कि इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. कांग्रेस पार्टी ने भी यही वादा अपने घोषणापत्र में किया है.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कभी राज्य में कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे. 2016 में उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम की पार्टी बना ली थी. उन्होंने सीपीआई और बीएसपी से चुनाव पूर्व गठबंधन किया है. जोगी को उम्मीद है कि जब 11 नवंबर को नतीजे आएंगे, तो वो किंगमेकर बनकर उभरेंगे. अजीत जोगी का कहना है कि उनकी पार्टी और कांग्रेस के वादों में फर्क ये है कि उन्होंने 100 रुपए के स्टैम्प पेपर पर लिखकर अपने वादे पूरे करने का वचन दिया है.

जोगी कहते हैं कि, 'अगर मैं अपने वादे से मुकरता हूं, तो कोई भी मेरे खिलाफ शिकायत कर सकता है. इस शिकायत पर मुझे दो साल तक की जेल भी हो सकती है.' बिलासपुर जिले में अपने चुनाव क्षेत्र मरवाही में अजीत जोगी ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में ये बात कही. जोगी ने पूछा कि, 'क्या कांग्रेस ने ये वादा किया है?'

लेकिन, जोगी ने कहा कि इस चुनाव में उनका मुख्य विरोध भारतीय जनता पार्टी से है. जोगी कहते हैं, 'नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया. पहली बार ऐसा हो रहा है कि छत्तीसगढ़ में किसान खुदकुशी कर रहे हैं. राज्य के किसानों ने इससे पहले ऐसा कभी नहीं किया था. अंग्रेजों के राज में भी वो इतने निराश नहीं थे. किसानों के आत्महत्या करने का मतलब साफ है कि उनका इस सरकार में भरोसा बिल्कुल भी नहीं रहा.'

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जोगी व्हीलचेयर की मदद से चलते हैं. उनके साथ एक निजी एंबुलेंस भी चलती है. दो लोग हमेशा उनके साथ रहते हैं, जो उन्हें एंबुलेंस में बिठाने में मदद करते हैं. चलते-चलते अजित जोगी ने कहा कि, 'चुनाव बाद उन्हें किसी भी दल से गठबंधन की जरूरत नहीं पड़ेगी. हम सरकार बनाएंगे.' ये कहते हुए उन्होंने बात खत्म की.

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अजित जोगी की फेसबुक वॉल से साभार

अजीत जोगी को मालूम है कि ये हकीकत नहीं है. उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी ये बात पता है. उनके बेहद करीबी लोगों में से एक ने नाम न बताने की शर्त पर हम से कहा कि, 'राज्य में कोई भी सरकार अजीत जोगी के बिना नहीं बनेगी. अगर कांग्रेस अजीत जोगी जी को मुख्यमंत्री का पद देने को राजी हो जाती है, तो हम कांग्रेस से समझौता करने को तरजीह देंगे.'

छत्तीसगढ़ के चुनाव में अजीत जोगी के दाखिले से मैदान खुल गया है. जोगी ने परंपरागत समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है. जानकार मानते हैं कि अगर मुकाबला त्रिकोणीय नहीं होता, तो कांग्रेस बेहतर हालत में होती.

जोगी की लोकप्रियता पूरे राज्य में है. खास तौर से दलितों, ईसाईयों और मुसलमानों के बीच. वो आदिवासी नेता होने का दावा भी करते हैं. हालांकि इस पर विवाद उठते रहे हैं. लेकिन, जोगी ने अपने चुनाव क्षेत्र मरवाही को अपना गढ़ बना लिया है. ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है. अजीत जोगी ने कांग्रेस के टिकट पर 2003 और 2008 में ये सीट बड़े आराम से जीत ली थी, जबकि वो यहां एक बार भी प्रचार के लिए नहीं आए थे. 2013 में उनके बेटे अमित जोगी ने ये सीट करीब 40 हजार वोटों से जीती. 2018 के चुनाव में अजीत जोगी दोबारा मरवाही सीट से चुनाव मैदान में हैं.

मरवाही के पड़ोस में कोटा विधानसभा सीट है. इस सीट से अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी तीन बार चुनाव जीत चुकी हैं. इनमें से एक बार उप-चुनाव हुए थे. तीनों ही चुनाव रेणु जोगी ने कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. इस बार रेणु जोगी, अपने पति की पार्टी से उम्मीदवार हैं.

2013 के चुनाव में हालांकि बीजेपी ने 49 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 39 सीटें मिली थीं. लेकिन दोनों पार्टियों के बीच वोटों का फासला बहुत कम यानी एक फीसद से भी कम रह गया था. इस बार का चुनाव बेहद करीबी मुकाबला है. हर सीट की अपनी अहमियत है. अब से पहले के चुनावों में कांग्रेस इन सीटों को बड़े आराम से जीतती रही थी. लेकिन, अबकी बार कांग्रेस के लिए इन सीटों पर जीत हासिल करना बड़ी चुनौती होगी.

रामचंद कश्यप एक किसान हैं. वो मरवाही सीट में पड़ने वाले कुढ़काई गांव में रहते हैं. रामचंद कहते हैं कि अजीत जोगी से मिलना आसान है. उनका दिल छत्तीसगढ़ में बसता है. रामचंद बताते हैं कि, 'पिछले महीने मेरे बेटे को गलत टिकट होने की वजह से ट्रेन से फेंक दिया गया था. मेरे बेटे के पैर में चोट लगी थी. मुझे उसके इलाज के लिए अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी. मैं बीजेपी का कार्यकर्ता हूं, मगर मेरी पार्टी ने ही मेरी मदद नहीं की. तब मै जोगी साहब से मिला. उन्होंने मेरी बात सुनकर फौरन मेरी मदद का वादा किया. वो अपनी सीट के लोगों को जानते हैं और उनका खयाल रखते हैं. मेरा वोट तो पक्का जोगी कांग्रेस को जाएगा.' अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को लोग जोगी कांग्रेस के नाम से बुलाते हैं.

अजित जोगी की फेसबुक वॉल से साभार

अजित जोगी की फेसबुक वॉल से साभार

अजीत जोगी और उनकी पत्नी रेणु जोगी के लिए वोटरों में सहानुभूति की लहर है. 72 साल के अजीत जोगी 2004 में एक हादसे के बाद लकवे के शिकार हो गए थे. वो व्हीलचेयर पर बैठकर ही यहां-वहां जा पाते हैं. फिर भी वो इस चुनाव में बहुत मसरूफ हैं. डॉक्टर से मुलाकातों के बीच में वो हर दिन 2 से 3 रैलियां कर रहे हैं. जब अजीत जोगी की व्हीलचेयर को चार लोग उठाकर हेलीकॉप्ट पर रख रहे थे, तो रामचंद कश्यप ने कहा कि, 'जोगी साहब की जगह कोई और होता तो बिस्तर पर पड़ा होता.'

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वहीं, रेणु जोगी के बारे में लोगों की राय ये है कि कांग्रेस ने उन्हें बहुत तंग किया. जब अजीत जोगी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई, तो भी रेणु जोगी ने कांग्रेस नहीं छोड़ी थी. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ बनने के करीब एक साल बाद तक रेणु जोगी कांग्रेस में ही रही थीं. लेकिन, जब राज्य में वो अपनी ही पार्टी में हाशिए पर धकेल दी गईं. कोटा सीट से उनका टिकट भी काट दिया गया. तब रेणु जोगी ने कांग्रेस छोड़कर अपने पति की पार्टी ज्वाइन कर ली.

रेणु जोगी कहती हैं, 'मेरा परिवार कई साल से कांग्रेस से जुड़ा रहा था. कोटा के लोगों को मैं अपना परिवार मानती हूं. जब मैं कांग्रेस के टिकट पर लड़ी, तो कोटा के लोगों ने मुझे ही चुना. मैं उन्हें धोखा नहीं देना चाहती थी. लेकिन, जब पार्टी ने ही मुझे ठुकरा दिया, तो मैंने कोटा के लोगों से सलाह-मशविरा कर के जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ में शामिल होने का फैसला किया.'

शांतिबाई सिंह और उनके पति जितेंद्र, दोनों ही रेणु जोगी की सीट कोटा के रहने वाले हैं. दोनों ही मानते हैं कि कांग्रेस ने रेणु जोगी के साथ बुरा बर्ताव किया. वो कहते हैं कि, 'अजीत जोगी के पार्टी छोड़ने के बाद भी रेणु कांग्रेस के प्रति वफादार रही थीं.' शांतिबाई और जितेंद्र कहते हैं कि, 'बीजेपी सरकार ने किसानों को तबाह कर दिया है. हम कब से बिजली का स्थायी कनेक्शन मांग रहे हैं. इससे हमें सिंचाई के लिए पांच हॉर्स पावर बिजली मुफ्त मिल सकेगी. हमें स्थायी कनेक्शन अब तक नहीं मिल सका है. मजबूरी में हमने टेंपरेरी तौर पर कनेक्शन लिया है. इसके लिए हमें हर तीन महीने पर 2500 रुपए देने पड़ते हैं.'

पूरे छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का माहौल है. इसकी बड़ी वजह बेरोजगारी और कृषि के क्षेत्र का संकट है. यही वजह है कि जोगी ने सत्ता में आने पर बेरोजगरा ग्रेजुएट युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया है. यही नहीं जोगी ने किसी के घर बच्ची पैदा होने पर उसके नाम से एक लाख रुपए का फिक्स्ड डिपॉजिट खोलने का वादा भी किया है. इन वादों से जोगी ने छत्तीसगढ़ के वोटरों को लुभाने में कामयाबी हासिल की है.

दलितों के बीच अजीत जोगी काफी लोकप्रिय हैं. मायावती के साथ चुनाव से पहले गठबंधन से जोगी ने दलित वोटों को अपने पाले में मजबूती से लाने की कोशिश की है. इन्हीं वोटों की बदौलत 2013 में कांग्रेस सत्ता में नहीं आ सकी थी. वैसे तो छत्तीसगढ़ में बीएसपी की सियासी हैसियत काफी सिमट गई है. लेकिन 2013 में 11 सीटों पर बीएसपी को मिले वोट, बीजेपी और कांग्रेस के बीच फासले से भी ज्यादा थे. इनमें से केवल 4 सीटें ही अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित थीं. जोगी के साथ गठबंधन से बीएसपी के पास ये मौका है कि वो राज्य में अपनी ताकत और बढ़ा सके. वहीं इस गठबंधन की मदद से अजीत जोगी एक मजबूत क्षेत्रीय नेता के तौर पर उभर सकेंगे.

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रेणु जोगी की फेसबुक वॉल से साभार

वैसे, जोगी परिवार के गढ़ से चुनाव लड़ने के बावजूद रेणु जोगी के लिए राह, अजीत जोगी के मुकाबले आसान नहीं होगी. रेणु जोगी के खिलाफ विभोर सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. विभोर सिंह एक पुलिस अधिकारी रह चुके हैं. वो बस्तर में माओवादियों से मुक़ाबला करते हुए घायल हो गए थे. विभोर सिंह की मां गोंड आदिवासियों से ताल्लुक रखती हैं. कोटा में गोंड आदिवासी वोटरों की तादाद काफी है. कुछ लोगों का ये भी मानना है कि कांग्रेस और जोगी की पार्टी में वोटों के बंटवारे का फायदा बीजेपी को हो सकता है.

लेकिन, रेणु जोगी को भरोसा है कि 'उनका परिवार' उन्हें दगा नहीं देगा. रेणु जोगी कहती हैं कि, 'मैं लंबे समय से इस सीट की नुमाइंदगी करती रही हूं. ये मेरा ससुराल भी रहा है और मायका भी.'

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