छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल वहां पार्टी के जीतने के बाद मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे. सीएम पद के रेस में तो बहुतों के नाम चल रहे थे, लेकिन पार्टी ने उसी को कुर्सी सौंपी, जो सालों से पार्टी को खड़ा कर रहा था.
वैसे, भूपेश बघेल तो राजनीति में मुख्यमंत्री बनने का सोचकर ही आए थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई ही इसी शर्त पर छोड़ी थी कि वो मुख्यमंत्री बनकर रहेंगे.
दरअसल, भूपेश बघेल कभी मेडिकल फील्ड में जाना चाहते थे. वो बी.एससी कर रहे थे. लेकिन धीरे-धीरे उनका पढ़ाई से मन उचट गया और उन्होंने पढ़ाई छोड़ने का मन बना लिया. लेकिन इसके लिए उनके पिता नंद कुमार बघेल ने उनके सामने एक शर्त रखी- अगर वो पढ़ाई छोड़ेंगे, तो सीएम बनकर रहेंगे. भूपेश बघेल ने अपने पिता की ये शर्त मान ली. और 37 साल बाद आज वो छत्तीसगढ़ के सीएम बन गए हैं.
हालांकि, जब उन्होंने ये वादा किया था कि तब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था. तब जाहिर है उनका वादा एमपी के लिए था लेकिन उनकी किस्मत में छत्तीसगढ़ ही लिखा हुआ था.
भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का कायापलट कर दिया. उनकी छवि बिल्कुल बुनियादी योद्धा जैसी है, जो बिल्कुल जमीनी लड़ाई लड़ते हैं और इस बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया है. उन्होंने पदयात्राएं कीं, लोगों में पार्टी की पहुंच बनाई और आज अगर छत्तीसगढ़ में बीजेपी की शर्मनाक हार हुई है, तो इसके लिए उनका बहुत बड़ा योगदान है.
न्यूज18 से बघेल के एक करीबी सहयोगी ने बताया कि 'पार्टी का विचार बस रैलियां करने और जनसंपर्क नहीं करने का नहीं था. बघेल ने राज्य में कैंपेनिंग के दौरान 10,000 किमी की पदयात्रा की. उन्होंने वोटरों से, गरीब किसानों से बात करके एक ऐसी पहुंच बनाई, जो और किसी तरीके से मुमकिन नहीं था.'
बघेल 1993 से छत्तीसगढ़ के मनवा कुर्मी क्षत्रिय समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. ये समाज प्रदेश में बड़ा वोट बैंक है.
छत्तीसगढ़ में हुए 2003 के चुनावों में कांग्रेस की हार हुई थी, लेकिन बघेल अपनी सीट से जीते थे. 2008 में वो चुनाव हार गए लेकिन 2013 में वो विधानसभा में आ गए. उन्हें विधानसभा में 2003 से 2008 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव का डिप्टी बनाया गया था.
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