केंद्र सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को साफ तौर पर बताया है कि सरकार ने किस तरह एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए नया प्रावधान किया है. गृह-मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए पत्र में इस बात की याद दिलाई गई है कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद संसद में कानून बनाकर इस प्रावधान को खत्म किया गया है जिसमें एससी/एसटी समुदाय के लोगों के उत्पीड़न के मामले में केस दर्ज करने और गिरफ्तारी से पहले प्राथमिक जांच की बात कही गई थी.
शिवराज के दावे में कितना दम ?
सरकार की तरफ से जारी किए गए इस दिशा-निर्देश का महत्व काफी ज्यादा है, क्योंकि देश भर में चल रहे हंगामे और एससी/एसटी एक्ट में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध करने पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला जा रहा है. जिसके बाद कई राजयों में एससी/एसटी एक्ट में बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होने की बात कही जा रही है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कुछ ऐसा ही बयान दिया है. लेकिन, उनके बयान का क्या मतलब है ? क्या ऐसा कर पाना संभव है ?
केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को भेजे ताजा दिशा-निर्देशों की बात करें तो अब शिवराज सिंह चौहान के लिए एससी/एसटी एक्ट के मामले में कुछ भी परिवर्तन करना आसान नहीं होगा. वैसे भी किसी भी संसदीय कानून को राज्य कमजोर और हल्का नहीं कर सकता. यह राज्य के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. यानी संसद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए जो कानून बना दिया है, उसमें अब परिवर्तन संभव नहीं है.
संविधान के जानकार भी यही मानते हैं कि शिवराज सिंह चौहान के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल है. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचारी कहते हैं, ‘स्टेट को पावर है कि वो सीआरपीसी में किसी तरह का परिवर्तन कर ले, लेकिन, जब संसद से कोई कानून पास होता है तो उसमें किसी तरह के परिवर्तन का कोई अधिकार स्टेट के पास नहीं होता है.’
साफ है कि पार्लियामेंट्री एक्ट में परिवर्तन असंभव है. ऐसे में शिवराज सिंह चौहान की तरफ से दिए गए बयान का कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि एससी/एसटी एक्ट में संसद से पास कानून के प्रावधान को लागू करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा ही नहीं है.
चुनावी साल में मुश्किल में घिरे शिवराज का दिखावा !
दरअसल, सवर्ण सेना के नाम से अलग-अलग राज्यों में हंगामा हो रहा है, बीजेपी नेताओं को काले झंडे दिखाए जा रहे हैं. खासतौर पर चुनावी राज्यों में हंगामा और विरोध तेज है. मध्यप्रदेश में पिछड़ी और सामान्य वर्ग की सभी जातियों ने मिलकर सपाक्स संगठन बनाया है. सपाक्स लगातार इस मुद्दे पर सरकार पर हमलावर है. अब राज्य की सभी 230 सीटों पर सपाक्स के चुनाव लड़ने के ऐलान ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. सवर्ण समुदाय के साथ-साथ पिछड़ा समुदाय भी काफी हद तक शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के ही साथ खड़ा रहा है. लेकिन, अब उसने शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है.
पहले प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सपाक्स का हंगामा जारी था, अब एससी-एसटी एक्ट पर सरकार के रुख ने आग में घी का काम कर दिया है. आग ऐसी लगी है कि अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी यू-टर्न लेना पड़ रहा है. शिवराज सिंह चौहान ने विरोध को देखते हुए बयान दिया है कि एससी-एसटी एक्ट में बिना जांच किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी. इसके पहले उनकी तरफ से एससी-एसटी एक्ट का समर्थन करने की बात कही जा रही थी. सरकार के फैसले का बचाव किया जा रहा था. यह वही शिवराज सिंह चौहान हैं जिन्होंने पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर बोलते हुए कहा था, ‘जबतक शिवराज जिंदा है, कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता.’
पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर बवाल और सरकार के रवैये के बाद ही मध्यप्रदेश में सपाक्स का गठन हुआ था जो आज एससी-एसटी के मुद्दे पर भी शिवराज सरकार और बीजेपी के लिए गले की हड्डी बना हुआ है. तो शिवराज सिंह चौहान के बयान का अब क्या मतलब रह जाता है. क्या शिवराज सिंह चौहान महज सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी को कम करने के लिए इस तरह का बयान दे रहे हैं. फिलहाल, ऐसा ही लग रहा है. क्योंकि राज्य भर की यात्रा पर निकले शिवराज सिंह चौहान को इस बात का एहसास हो रहा है कि एससी-एसटी एक्ट पर विरोध कितना है.
उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं उनका परंपरागत वोट बैंक उनसे छिटक न जाए. यही वजह है कि पहले विरोध करने वालों को कांग्रेस की साजिश का शिकार बताने वाले मुख्यमंत्री अब बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होने की बात कह रहे हैं. लेकिन, हकीकत यही है कि ऐसा कर पाना संभव नहीं है. केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को दिया गया निर्देश राज्यों को उनके अधिकार की याद दिलाने के लिए काफी है.
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