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इस बार इटावा, औरैया में 'नेताजी' नहीं जाति तय करेगी जीत

समाजवाद के गढ़ इटावा, औरैया में यादव परिवार में मची हलचल ही उनके लिए कमजोरी बन सकती है

Updated On: Feb 21, 2017 11:37 AM IST

Harshvardhan Tripathi

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इस बार इटावा, औरैया में 'नेताजी' नहीं जाति तय करेगी जीत

बेटी की विदाई हो जाने के बाद पिता/परिवार और चुनाव में मतदान हो जाने के बाद प्रत्याशी/समर्थक शांत से हो जाते हैं. स्थिर से हो जाते हैं. लेकिन तीसरे चरण का चुनाव हो जाने के बाद समाजवादी पार्टी के गढ़ इटावा, औरैया में यादव परिवार में गजब की हलचल मची हुई दिख रही है.

समाजवादी पार्टी के गढ़ इटावा, औरैया में समाजवादी पार्टी के लिए वही कमजोरी बन सकती है, जिसे मुलायम सिंह यादव ने कभी अपनी ताकत के तौर पर इस्तेमाल किया था.

मुलायम सिंह यादव जातिवादी राजनीति के अगुवा राजनेता रहे हैं, जिसे उन्होंने बड़े सलीके से समाजवादी राजनीति की पैकिंग में बेचा. इटावा, औरैया में काफी संख्या यादव मतदाताओं की है. पिछड़े और मुसलमान के साथ मिलकर वो एक मजबूत आधार बन जाते हैं.

यही वजह है कि इस इलाके में समाजवादी पार्टी अपने गठन के बाद से ही स्वाभाविक पार्टी के तौर पर दिखती है और मुलायम सिंह निर्विवाद नेता. अपनी जाति के आधार पर राजनीति करने वाले नेताओं की देश में अगर एक सूची बनाई जाएगी, तो शायद पहले स्थान के लिए मुलायम सिंह यादव से ही सभी को लड़ना होगा.

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यूपी चुनाव में तीन चरणों में आधे से ज्यादा सीटों के लिए मतदान हो चुके हैं (फोटो: पीटीआई)

दूसरी जातियां जाग गईं

कमाल की बात ये रही कि मुलायम के यादववाद में लंबे समय तक सारी पिछड़ी जातियां यादव को अपना नेता मानकर खुद की तरक्की यादवों के जरिये ही होता देखती रहीं. लेकिन, 3 दशक में इतना ज्यादा जाति-जाति हुआ कि दूसरी जातियां भी अब जाग सी गई हैं. इसीलिए सैफई में सत्ता मतलब इटावा, औरैया की सत्ता वाला भ्रम इस चुनाव में टूटता दिख सकता है.

इस चुनाव में सभी जातियों को अपना विधायक चाहिए. इसीलिए हर पार्टी के लिए जातीय जुगाड़ बड़ा कठिन हुआ. समाजवादी गढ़ में जाति का जंजाल कठिन हो गया है.

इटावा और औरैया में हर जाति अपना विधायक चाहती है. मतदान हो गया है लेकिन, ज्यादातर जातियों ने अपने पत्ते नहीं खोले. हां, इतना जरूर दिखा कि वो अपनी जाति के प्रत्याशी के साथ खुलकर रहीं. इटावा सदर विधानसभा पर रामगोपाल यादव का खासम खास आदमी कुलदीप गुप्ता मजबूत स्थिति में है.

पूरे प्रदेश में और इटावा, औरैया की दूसरी सीटों पर परंपरागत तौर पर बीजेपी को वोट करने वाला बनिया मतदाता यहां कुलदीप गुप्ता के साथ खड़ा दिखा.

ब्राह्मण वोटर नाराज

इस सीट से ब्राह्मण उम्मीद कर रहे थे कि बीजेपी किसी ब्राह्मण को टिकट देगी. लेकिन, बीजेपी ने सरिता भदौरिया को टिकट दे दिया. इसकी वजह से ब्राह्मणों में थोड़ी नाराजगी देखने को मिली. 1991 में इस सीट से बीजेपी के अशोक दुबे विधायक बने. इसको भुनाने के लिए बीएसपी ने यहां से नरेंद्र नाथ चतुर्वेदी को टिकट दिया. रघुराज शाक्य का टिकट कटने से नाराज शाक्यों के मत बीजेपी में जाने की खबरें हैं.

Ramgopl Yadav

एसपी नेता रामगोपाल यादव सैफई में अपना वोट डालकर बाहर आते हुए (फोटो: पीटीआई)

इटावा की जसवंतनगर सीट पर ढेर सारे अगर-मगर के बावजूद शिवपाल यादव की जीत पक्की मानी जा रही है. हालांकि, बीजेपी के मनीष यादव को भी अच्छा मत मिलने की संभावना है. मनीष यादव ने पिछला चुनाव बीएसपी से लड़ा था. इस बार बीएसपी ने दरवेश शाक्य को टिकट दिया है. इसकी वजह से इटावा सदर में बीजेपी के साथ जाते दिखे शाक्य मत इस सीट पर बीएसपी के लिए गोलबंद होते दिखे.

इटावा की भरथना सीट पर समाजवादी पार्टी ने मौजूदा विधायक सुखदेवी वर्मा का टिकट काटकर कमलेश कठेरिया को टिकट दे दिया है. इसकी वजह से कहा जा रहा है कि वर्मा बिरादरी ने एसपी उम्मीदवार के खिलाफ वोट किया है. बीजेपी ने भी यहां से सावित्रा कठेरिया को टिकट दिया है. जबकि, बीएसपी ने अपने पुराने प्रत्याशी राघवेंद्र गौतम पर भरोसा जताया है. गौतम की अच्छी छवि है. इटावा और भरथना दोनों सीटें ऐसी हैं, जहां ब्राह्मण मतदाता बहुत महत्वपूर्ण हैं. भरथना में ब्राह्मण बीजेपी के साथ दिखे.

बीजेपी को नुकसान हुआ

मायावती ने मुख्यमंत्री रहते इटावा जिले की औरैया तहसील को काटकर जिला बना दिया था. इसका नतीजा ये रहा था कि 2002 में बीएसपी यहां की तीनों सीटें जीत गई थी. 2007 में भी बीएसपी ने 2 सीटें जीतीं थीं. सिर्फ बिधूना सीट पर धनीराम वर्मा एसपी की इज्जत बचाने में कामयाब हुए थे. लेकिन, 2012 में एसपी ने औरैया की तीनों सीटों पर कब्जा कर लिया. राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के लड़ने से 2012 के चुनाव में बीजेपी का खासा नुकसान हुआ था.

Mayawati

मायावती को उम्मीद है कि मतदाता बीएसपी के पक्ष में वोट डालकर उनकी सरकार बनवाएंगे (फोटो: पीटीआई)

19 फरवरी को तीसरे चरण के हुए मतदान में मामला थोड़ा उलटा दिखा. दिबियापुर सीट पर प्रदीप यादव को फिर से एसपी ने मैदान में उतारा. यहां का लोध मतदाता बीजेपी के साथ, साथ ही दिबियापुर में बनिया और सवर्ण भी बीजेपी के साथ जाता दिखा है. हालांकि, बीएसपी से रामकुमार अवस्थी को पार्टी के परंपरागत मतों के साथ ब्राह्मण मत भी मिलने की बात कही जा रही है.

बिधूना में बनिया मतदाता बीजेपी के साथ गया दिख रहा है. यहां मुलायम के साढ़ू प्रमोद गुप्ता का टिकट काटकर एसपी ने दिनेश यादव को टिकट दिया है. दिनेश यादव धनीराम वर्मा के बेटे हैं. कन्नौज लोकसभा में ही बिधूना विधानसभा आती है. यहां से डिंपल यादव हार गई थीं. प्रमोद गुप्ता का टिकट कटने के पीछे ये भी एक बड़ी वजह बताई जा रही है.

जाति की मजबूती

बीजेपी का विनय शाक्य को टिकट देना काम करता दिखा है. बीएसपी के शिवप्रसाद यादव को यादव मत मुश्किल से ही मिलते दिख रहे हैं. औरैया सीट इस चुनाव में सुरक्षित हो गई है. इस सीट पर ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या अधिक है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने मौजूदा विधायक को ही टिकट दिया है.

कुल मिलाकर सभी सीटों पर सबसे ज्यादा मजबूत समाजवादी पार्टी ही नजर आ रही है. लेकिन, मुलायम के इस गढ़ में लोग बीजेपी की स्थिति इस चुनाव में 1991 जैसी बता रहे हैं.

Akhilesh Yadav

यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की साख दांव पर लगी है (फोटो: पीटीआई)

माना जा रहा है कि बिधूना, इटावा सदर और भरथना में मतों के बिखराव की स्थिति में बीजेपी को लाभ हो सकता है. लेकिन, समाजवादी पार्टी के 'नेताजी' मुलायम सिंह या कहें कि किसी भी नेता के नाम पर नहीं, इस बार इटावा, औरैया का मतदाता विशुद्ध रूप से अपनी जाति की मजबूती खोज रहा है.

इसमें भी जो समझने वाली बात है कि इसके लिए किसी नेता को ठेकेदारी भी नहीं दे रहा. इसीलिए यादव परिवार के गढ़ जिलों में चुनाव के बाद शांति होने के बजाय हलचल बढ़ गई है. मुलायम ने यादव जाति जगाई, लेकिन अब सब जातियां जाग गई हैं.

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