227 सीटों वाली बृहन्मुंबई नगर निगम के लिए मंगलवार को सफलतापूर्वक चुनाव पूरा किया गया. वास्तव में 2012 के 46 प्रतिशत मतदान वाले चुनाव के मुकाबले इस बार करीब 10 प्रतिशत की छलांग के संकेत हैं कि अधिक मतदाता भागीदारी को बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग की कोशिशें काफी कामयाब रही हैं.
लेकिन जब हम लोकतंत्र का जश्न मना ही रहे हैं तो ये भी जरूरी हो जाता है कि भारत की चुनाव प्रणाली में खामियों को उजागर किया जाए.
चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि आधिकारिक तौर पर प्रचार को मतदान खत्म होने के 48 घंटे पहले समाप्त करना होगा. हर राजनीतिक पार्टी आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के डर से इस नियम का पालन करती है. हालांकि, आचार संहिता काफी हद तक असली दुनिया में अच्छा काम कर रही है, वहां दूसरी तरफ ये आभासी दुनिया ही है जहां इन नियमों का फैसला नहीं हो पाता है.
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चुनाव आयोग की अक्टूबर 2013 की अधिसूचना ने राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया पर प्रचार के मुद्दे को निशाना बनाया है.
सोशल मीडिया पर आदर्श आचार संहिता की प्रासंगिकता को साफ करते हुए, अधिसूचना में कहा गया है कि, 'समय-समय पर जारी किए जाने वाले आदर्श आचार संहिता के प्रावधान और आयोग के सम्बंधित निर्देश भी उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा इंटरनेट पर पोस्ट की जा रही सामग्री और सोशल मीडिया वेबसाइट्स पर लागू होंगे.'
'फटाफट अपडेट', वाले युग में एक सीधी-सादी ट्वीट / रीट्वीट या एक फेसबुक पोस्ट किसी खास पार्टी के लिए अपील करने का सबसे आसान तरीका हो सकती है.
मिसाल के तौर पर मुंबई कांग्रेस के ट्विटर हैंडल को लेते हैं. इसमें एक सोशल मीडिया कोऑर्डिनेटर जिग्नेश सागर, जो कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं, ने एक ट्वीट को रीट्वीट किया है. ट्वीट में सागर गर्व से अपनी उंगली दिखा रहे हैं और लिख रहे हैं कि कांग्रेस की बीएमसी में धमाकेदार जीत पक्की है.
हालांकि उनको अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है, उनका ट्वीट के माध्यम से खुलेआम अपनी मूल पार्टी को समर्थन देना भी एक समस्या है.
It's My Democratic Right Voted For Change. This Time Congress Will Sweep BMC. Congress Flag Will Flutter In BMC. pic.twitter.com/whUXD8lPpw
— JIGNESH SAGAR (@dhadkans91) February 21, 2017
इसी हैंडल द्वारा पोस्ट किया गया एक वीडियो एक और उदाहरण है जिसमें मुम्बई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरूपम दिख रहे हैं. सोमवार को पोस्ट किये गए इस वीडियो में निरूपम मतदाताओं को शिवसेना-भाजपा गठबंधन को सत्ता से बाहर करने के लिए मतदान करने का आग्रह कर रहे हैं.
कांग्रेस सभी के लिए भोजन का वायदा करती है. बीएमसी कैंटीन में मनपा थाली 20 रुपये में.
Congress promises food for all. मनपा थाली at ₹20/- at BMC Canteens. @sanjaynirupam pic.twitter.com/fVMGeayUzA
— Mumbai Congress (@MumCongress) February 20, 2017
मुंबई कांग्रेस ने फेसबुक पर यही किया है. यह पार्टी आधिकारिक तौर पर चुनाव प्रचार थमने के बाद एजेंडे को पूरा करने का वायदा कर रही थी.
दूसरी तरफ मुंम्बई की भाजपा को देखिये, उत्तरी मुंबई के सांसद गोपाल शेट्टी ट्वीट करके मतदाताओं से भाजपा के लिए वोट करने का आग्रह कर रहे थे. इस मामले में झोल ये है कि शेट्टी का सन्देश सोमवार को फिर से रीट्वीट किया गया था.
Request Mumbaikar & North Mumbai residents to Vote for BJP in MCGM Election for seeking a Transparent & Accountable Governance led by BJP.
— Gopal Shetty (@iGopalShetty) February 20, 2017
बड़ी राष्ट्रीय तस्वीर भी ज्यादा अलग नहीं है. सोशल मीडिया ने कोई भी रैली किए बिना ही दलों को जनता तक पहुंचाने में मदद की है. और निरुपम का वीडियो इसका एक अच्छा उदाहरण है.
फेसबुक लाइव वाली सुविधा से कोई भी घर बैठे सार्वजनिक रैलियां देख सकता है. लेकिन अगर आचार संहिता की बात करें तो ये सुविधा समस्या पैदा कर सकती है.
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उदाहरण के लिए: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को फतेहपुर में एक रैली को संबोधित किया. उसी दिन 69 सीटों के लिए तीसरे चरण का मतदान हुआ. हमेशा की तरह मोदी ने सपा-कांग्रेस गठबंधन और बसपा पर अपनी बन्दूक तानी.
तीसरे चरण में मतदान होने वाले इस इलाके में बीजेपी द्वारा चुनाव प्रचार बंद कर देने के बाद भी लाइव वीडियो के माध्यम से यहां मोदी अप्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं को संबोधित भी कर रहे हैं. और दोनों दलों ने मतदान के दिन ही पूरे उत्साह से लोगों से अपने पक्ष में मतदान करने की अपील की है.
एक तरफ 2017 की अधिसूचना में कहा गया है कि तस्वीरें, वीडियो और अपडेटेड ब्लॉग में / अपने खाते में डाली गई पोस्ट राजनीतिक विज्ञापन नहीं मानी जायेगी. और इसलिए उन्हें पोस्टिंग से पहले चुनाव आयोग की अनुमति की जरूरत नहीं है, सोशल मीडिया की गतिशीलता आचार संहिता को मुसीबत में डालती है.
ऑनलाइन राजनीतिक अभियानों में बढ़ोत्तरी को देखते हुए चुनाव आयोग ने अब दलों और उम्मीदवारों के लिए उनके सोशल मीडिया पेज और ऑनलाइन प्रचार के खर्चों की जानकारी का खुलासा अनिवार्य कर दिया है. चुनाव आयोग ने हर जिले में मीडिया सर्टिफिकेशन और मीडिया मॉनिटरिंग कमेटियां (MCMC) बना दी हैं जो दस्तावेजों पर बराबर पर नजर रखेगी.
यह एक स्वागत योग्य कदम है और इसकी तारीफ जरूर होनी चाहिए क्योंकि यह चुनावी प्रणाली में और अधिक पारदर्शिता ला सकती है. चुनाव आयोग की 2013 की अधिसूचना सोशल मीडिया का वर्गीकरण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह ही करती है.
2004 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आधार पर किया गया ये वर्गीकरण चुनाव आयोग के माध्यम से राज्यों और राष्ट्रीय दलों के हर राजनीतिक विज्ञापन को उनके पूर्व-प्रमाणीकरण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है. तो भी सोशल मीडिया को टेलीविजन के साथ जोड़ना समझदारी नहीं लगती.
दर्शकों के लिए टेलीविजन सिर्फ एकतरफा कम्युनिकेशन प्रदान करता है. 'बुद्धू बक्सा' रुका हुआ है, इसलिए अगर किसी को चलते-चलते अपडेट चाहिए, तो इसके लिए फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया हैं.
ये साइट्स दर्शकों को दोतरफा संचार प्रदान करती हैं. इनमें इस प्रचार सामग्री को शेयरिंग करके, रीट्वीट करके और फॉरवार्डिंग करके कई गुना बढ़ा देने की शक्ति है.
ऑनलाइन दुनिया दर्शकों को शेयर की गई सामग्री के साथ जोड़ने के लिए और ज्यादा लोकतांत्रिक स्थान मुहैया कराती है. सोशल मीडिया को लेकर आदर्श आचार संहिता अभी भी पार्टियों और उम्मीदवारों के अलावा बाकी आम लोगों के द्वारा पोस्ट की गई सामग्री के बारे में स्पष्ट नहीं है.
तो क्या इसका मतलब ये मान लें कि मनसे की महासचिव शालिनी ठाकरे का ये ट्वीट जांच के दायरे में नहीं आएगा जो कि मतदान के दिन ट्वीट किया गया था? ऐसा उनके पार्टी के एक ऊंची रैंकिंग वाले पदाधिकारी होने के बावजूद भी हो रहा है जैसा कि हमें पता है कि वे मतदाताओं पर प्रभाव डाल सकती हैं.
#तुमच्याराजालासाथदया #MNS #VoteForMNS #VoteForMumbai #Election #BMCelection #MNSAdhikrut pic.twitter.com/WTvxhHsXpU
— Shalini Thackeray (@ThakareShalini) February 21, 2017
ये मुद्दा उन पेजों के होने से और पेंचीदा हो जाता है जो सीधे मूल पार्टी से जुड़े नहीं हैं, लेकिन फिर भी उनके मुखपत्र के तौर पर काम करते हैं. ये पेज कानून के अस्पष्ट हिस्सों का फायदा उठा कर अपनी मूल पार्टियों का सन्देश फैला सकते हैं. इस तरह एक ऐसी हालत पैदा हो सकती है जहां मूल पार्टी प्रभावी तरीके से आचार संहिता का पालन कर सकती है, लेकिन इसके प्रशंसक पेज अस्पष्ट गतिविधियों में फिर भी लिप्त रह सकते हैं.
हालांकि, यहां एक पेंच भी नजर आता है. अगर चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता के नाम पर ऑनलाइन दुनिया पर जरूरत से ज्यादा प्रतिबंध लगाती है तो ये बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत के खिलाफ जाता है.
2016 में कुल जनसंख्या का लगभग 10.3 प्रतिशत सोशल मीडिया पर सक्रिय था. इसको लगभग 130 मिलियन से ज्यादा बढ़ती भारतीय जनसंख्या के नजरिए से देखना चाहिए.
इसको और नौजवान मतदाताओं के दिमाग को प्रभावित करने की इसकी क्षमता को ध्यान में रख कर चुनाव आयोग को अपनी रूपरेखा पर जरूर गौर करना चाहिए जो कि सोशल मीडिया द्वारा राजनीतिक दलों को उपलब्ध कराई जाने वाली मार्गदर्शिका का काम करती है और साथ-साथ इसे भविष्य में चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के किसी भी अंदेशे पर अंकुश लगाने की दिशा में भी सोचना चाहिए.
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