पिछले कई महीने से फैली अशांति के बाद कश्मीर से शांति की खबरें आ रही हैं. मंगलवार को घाटी के ज्यादातर अखबारों में स्कूली परीक्षाओं में भारी संख्या में उपस्थिति होने की खबर छपी है.
गौरतलब है आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से पूरी घाटी में हिंसा फैली है. जिसमें अब तक 94 लोगों की जान जा चुकी है. कई हजार लोग घायल हो चुके हैं.
हालांकि कश्मीर में कितनी शांति आई है इसका पता शुक्रवार के बाद चलेगा. घाटी में ज्यादातर हिंसा शुक्रवार शाम को ही शुरू होती है. फिलहाल अभी की खबर सुकून देने वाली है.
इस तात्कालिक शांति के पीछे भी अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं. सबसे पहले देश के रक्षा मंत्री का कारण जानते हैं. भाजपा नेता और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने बताया 500 और 1000 रुपए के उच्च मूल्य वाले नोट बंद करने के बाद आतंकवाद का वित्तपोषण खत्म हो गया है और सुरक्षाबलों पर पथराव नहीं हो रहा है.
प्रधानमंत्री को बधाई देता हूं: पर्रिकर
पर्रिकर ने कहा,'पहले दरें तय थीं- सुरक्षा बलों पर पथराव के लिए पांच सौ रुपए और किसी अन्य काम के लिए एक हजार रुपए. प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म कर दिया. पिछले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री के साहसिक कदम के बाद सुरक्षा बलों पर पथराव नहीं हो रहा है. इसके लिए मैं प्रधानमंत्री को बधाई देता हूं.’
फिलहाल रक्षा मंत्री का यह बयान एक तरह से इस हिंसा के पीछे के कारणों की सतही तरीके से व्याख्या करता है. यह एक तरह से हिंसा रोकने में असफल रहने वाली सरकार का खिसियाया हुआ बयान लगता है.
फिलहाल कश्मीर में शांति है. बड़ी संख्या में बच्चे बारहवीं और दसवीं की परीक्षा देने पहुंच रहे हैं. यह अच्छा संकेत है. वैसे भी घाटी में हर साल अक्टूबर-नवंबर तक एक सत्र की पढ़ाई चलती है और इस साल छात्रों ने मुश्किल से 90 दिन की क्लास अटेंड की होगी.
घाटी में 8 जुलाई को बुरहान वानी की मौत के बाद से ही यहां हिंसा फैल गई थी. इसके बाद यहां कर्फ्यू लगा दिया गया था. घाटी में इंटरनेट जैसी सेवाएं भी बंद कर दी गई थी. इसके अलावा स्कूलों को आग लगाए जाने की भी कई घटनाएं सामने आई हैं.
बड़ी तादाद में परीक्षा केंद्रों पर पहुंचे छात्र
अखबार ग्रेटर कश्मीर के अनुसार, अशांत चल रही घाटी में वार्षिक बोर्ड की परीक्षाओं के चलते हजारों छात्र-छात्राएं परीक्षा देने विभिन्न केंद्रों पर पहुंचे.12वीं कक्षा की परीक्षा में करीब 95 फीसदी विद्यार्थी शामिल हुए. 12वीं में पढ़ रहे 31,964 छात्रों में से 30,213 छात्र उपस्थित हुए. मात्र 1749 छात्र अनुपस्थित रहे.'
अखबार के अनुसार, आश्चर्यजनक रूप से बुरहान वानी के जिले अनंतनाग (इस्लामाबाद) में सबसे ज्यादा संख्या में छात्र स्कूली परीक्षा में शामिल हुए. यहां के 4,926 छात्रों में से 4,740 परीक्षा में शामिल हुए. यहां 96 फीसद अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी. श्रीनगर में विद्यार्थियों की संख्या 5861 थी, जबकि यहां 5617 ने परीक्षा दी. अनंतनाग की ही तरह कुलगाम भी हिंसा का शिकार रहा है. कुलगाम में परीक्षा मे कुल 92 प्रतिशत छात्र उपस्थित हुए.
गौरतलब है कि पूरे कश्मीर में करीब 48,000 परीक्षार्थियों के लिए लगभग 484 परीक्षा केंद्रों की व्यवस्था की गई है. इस दौरान छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर परीक्षा शांतिपूर्वक हुई. पहले दिन अरबी और केमिस्ट्री के पेपर हुए. सभी परीक्षा केंद्रों के बाहर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. 10वीं की परीक्षाएं मंगलवार से शुरू हो रही हैं. इसमें 55,000 अभ्यर्थी हिस्सा ले रहे हैं.
पुलिस ने बताया है कि कुछ जगहों पर शरारती तत्वों ने स्थिति बिगाड़ने की कोशिश की. हालांकि जल्द ही उन्हें काबू कर लिया गया. दक्षिणी कश्मीर के शोपियां जिले के पोहनू, केलर, नारवाव व बात्रीपोरा, पुलवामा के टहाब तथा कुलगाम जिले के चवलगाम में शरारती तत्वों ने परीक्षा केंद्रों के निकट तैनात सुरक्षाबलों पर पथराव कर स्थिति बिगाड़ने का प्रयास किया. हालांकि सुरक्षाबलों ने उन्हें खदेड़ दिया.
एक पहलू यह भी
ये आंकड़े उत्साहजनक हैं लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है. परीक्षा देने वालों में कई ऐसे भी छात्र हैं जो एक आंख से देख नहीं पा रहे. हिंसा और प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल किया था, जिसमें कई बच्चे भी घायल हुए थे.
इसी तरह एक घटना यारीपोरा इलाके में हुई. यहां विद्यार्थियों ने यह कहकर पेपर देने से मना कर दिया कि प्रश्नपत्र उनकी समझ से बाहर है. बाद में विद्यार्थियों को समझा-बुझाकर परीक्षा देने के लिए राजी किया गया. यह हालात वास्तविकता को दर्शाते हैं. सरकार ने यह बात मानी है. उनके मुताबिक स्कूलों में बंदी होने से पहले, सिलेबस के 50 प्रतिशत हिस्से की ही पढ़ाई हो पायी थी.
राज्य सरकार ने घोषणा की है कि छात्रों को परीक्षा में सिर्फ 50 प्रतिशत सवालों के ही जवाब देने हैं. वे पूरे प्रश्नपत्र से कोई भी सवाल चुन सकते हैं और जरूरी नहीं कि वो सिलेबस के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित बने भाग का हो.
सरकार का ये निर्णय भी असहज करने वाला है. इस फैसले से कश्मीर में एक बार फिर से ऐसी पीढ़ी तैयार होगी जो नकल करके या जरूरी पढ़ाई किए बगैर डिग्री हासिल करेगी. यह डिग्री बाद में उसके कितने काम आएगी, यह वक्त बताएगा क्योंकि कॉलेज में एडमिशन पाने और नौकरी ढूंढने का संघर्ष कमोबेश पहले की तरह ही बना हुआ है.
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