देश में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर केंद्र सरकार की नींद खुली. बीते पांच जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों से कहा कि भीड़ द्वारा हिंसा पर हर हाल में रोक लगाएं. जिला प्रशासन को निर्देश दें कि इस तरह के संभावित इलाकों को चिह्नित करें, जागरुकता फैलाए. सोशल मीडिया खासकर व्हाट्सएप पर फैलाए गए इस तरह के मैसेज पर निगरानी रखें.
ठीक दो दिन बाद यानी सात जुलाई को अपने ही सरकार की इस चिंता की खिल्ली उड़ाते हुए केंद्रीय उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने रामगढ़ मॉब लिंचिंग घटना के आरोपियों को गले लगा रहे थे. माला पहनाकर कह रहे थे कोर्ट ने अपना काम किया है, वह जनप्रतिनिधि होने के नाते उनसे (आरोपियों) से मिल रहे हैं. इन आरोपियों को हाईकोर्ट से जमानत मिली थी.
इस मामले में 11 लोगों को निचली आदलत ने दोषी ठहराया था. इसके बाद उनके पक्ष में जयंत सिन्हा ने ही वकील खड़ा किया था. यही वजह रहा कि आरोपियों के हजारीबाग जेल से रिहा होने के तुरंत बाद उनके आवास पर कार्यक्रम तय किया जाता है और वह उनका स्वागत करते हैं.
केंद्र और हजारीबाग में खुद को करना चाहते हैं मजबूत
गौर करें तो जयंत के पिता यशवंत सिन्हा केंद्र में बड़े मंत्री जरूर रहे, लेकिन राज्य की राजनीति में कभी उनको जगह नहीं मिली. वह मॉडर्न इंटेलेक्चुअलिटी पॉलिटिक्स वाले नेता माने जाते रहे हैं. बिहार में पूर्व सीएम स्व कर्पूरी ठाकुर के आप्त सचिव रहे. उस वक्त कहा जाता था कि यशवंत सिन्हा नौकरशाह कम, राजनेता अधिक हैं. यहीं से उनकी राजनीति की शुरूआत हुई. बीजेपी के तरफ से बिहार विधान परिषद के नेता से लेकर केंद्रीय मंत्री तक रहे, लेकिन हिंदुत्व की पॉलिटिक्स नहीं की.
जयंत सिन्हा को राजनीति विरासत में मिली है. वह पहली बार सांसद बने हैं. यही नहीं साल 2014 में बीजेपी का प्राथमिक सदस्य बनने से पहले उन्हें राज्य कार्यकारिणी का सदस्य बना दिया गया था. अब चूंकि उनके पिता बीजेपी के खिलाफ हो गए हैं. ऐसे में भला उनको खुद के बूते जमीन तैयार करनी थी. सो उन्होंने फूल माला पहना दिया. शायद उन्हें लग रहा हो कि इस पूरे मसले से संघ, वीएचपी और बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं का उन्हें भरपूर साथ मिल जाएगा. अपने हालिया फैसले (मॉब लिंचिंग के आरोपियों को घर बुलाकर सम्मानित करना) से केवल वह हजारीबाग की अपनी जीत और केंद्र में अहमियत पक्की करने की कोशिश कर रहे हैं.
रामगढ़ में दिख चुका है असर, हजारीबाग का रहेगा इंतजार
कुछ माह पहले रामगढ़ के पूर्व बीजेपी विधायक और अटल सेवा मंच के संयोजक शंकर चौधरी ने आरोपियों की रिहाई के लिए रामगढ़ बंद बुलाया था.
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इसे अभूतपूर्व तरीके से बड़ी संख्या में लोगों ने अपना समर्थन दिया था. उनके इस तर्क की पुष्टि एक और घटना से होती है- इसी साल अप्रैल माह में झारखंड में शहरी निकाय चुनाव हुए थे. रामगढ़ नगर परिषद सीट पर बीजेपी को मात खानी पड़ी थी. क्योंकि लोगों का मानना था कि मॉब लिंचिंग के आरोपियों को बीजेपी ने ही जेल भिजवाया है. ध्यान रहे घटना के बाद सीएम ने मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में करने की सिफारिश की थी. हालांकि रामगढ़ बीजेपी की सहयोगी आजसू का गढ़ माना जाता रहा है. सरकार में मंत्री चंद्रप्रकाश चौधरी यहां से विधायक हैं. वहीं हजारीबाग से 98, 99, 2009 में यशवंत सिन्हा यहां से बतौर सांसद चुने गए. 2014 में जयंत ने अपनी जीत यहां से पक्की की.
हजारीबाग के मतदाताओं का बदलता रहा है स्वभाव
आंकड़ों पर गौर किया जाए तो हजारीबाग लोकसभा सीट पर हमेशा से अलग-अलग पार्टी, प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं. कभी किसी पार्टी का का गढ़ नहीं बन पाया. 1951 में हजारीबाग के दो लोकसभा सीटों में से एक पर कांग्रेस के नागेश्वर प्रसाद सिन्हा ने जीत दर्ज की. उन्होंने छोटानागपुर संथाल परगना जनता पार्टी (राजा पार्टी) के तारा किशोर प्रसाद को हराया. वहीं दूसरी सीट पर सीएनएसपीजेपी के रामनारायण सिंह ने कांग्रेस के ज्ञानी राम को हराकर जीती. उसके बाद लगातार यहां के मतदाता जनप्रतिनिधि बदलते रहे.
सन् 1951 के बाद कांग्रेस का खाता सन् 1968 में यहां खुला. जब बाहर से उद्योगपति मोहन सिंह ओबराय टिकट लेकर आए और जीत कर संसद पहुंच गए. 1971 में कांग्रेस से दामोदर पांडेय ने चुनाव जीता. लेकिन उसके बाद से फिर कांग्रेस हजारीबाग लोकसभा सीट को अपने कब्जे में नहीं ले पाई. बीजेपी का खाता 1989 में खुला तो 1991 में सीट को बरकरार नहीं रख पाए. सीपीआइ के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता ने जीत दर्ज की. 1996 में बीजेपी के महावीर लाल विश्वकर्मा, 1998 और 1999 में बीजेपी के यशवंत सिन्हा, 2004 में भुवनेश्वर मेहता और 2009 में यशवंत सिन्हा और 2014 में जयंत सिन्हा सांसद बने.
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वहीं विधानसभा सीटों के तहत हजारीबाग में बरही, बरकागांव और हजारीबाग सीटें हैं. फिलवक्त बरही से कांग्रेस के मनोज यादव, बरकागांव से कांग्रेस की निर्मला देवी, हजारीबाग से बीजेपी के मनीष जायसवाल विधायक हैं.
ध्रुवीकरण और बीजेपी के पक्ष में आते फैसले
आंकड़ों पर गौर करें तो 2011 सेंसस रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में हिंदू आबादी 67.8 प्रतिशत, मुस्लिम आबादी 14.5, सरना 12.8 प्रतिशत और ईसाई 4.3 प्रतिशत हैं. वहीं हजारीबाग में हिंदू 80.56 प्रतिशत, मुस्लिम 16.21 प्रतिशत, अन्य 3.23 हैं. रामगढ़ में हिंदू 81.55 प्रतिशत और मुस्लिम 13.59 प्रतिशत, अन्य 4.86 प्रतिशत हैं.
इसके साथ ही हाल के दिनों में धार्मिक ध्रुवीकरण संबंधी घटनाएं भी लगातार घट रही है. सरना आदिवासियों का ईसाईयों के खिलाफ होना, धर्मांतरण बिल आने के बाद दुमका में 14 ईसाई धर्म के प्रचारकों का ग्रामीणों द्वारा बंधक बनाए जाना, फिर उनका जेल जाना. खूंटी रेप केस में कोचांग चर्च की भूमिका तय होना, बच्चा बेचने के आरोप में रांची स्थित मिशनरी संस्थाओं का नाम आना. इसका फायदा आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी को कितना मिलेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा.
सोशल मीडिया पर हुए ट्रोल, मगर झारखंड में असर नहीं
दूसरी बात कि जयंत सिन्हा को नेशनल लेवल पर भले ही ट्रोल कर दिया गया हो, उनकी आलोचना हुई हो, लेकिन झारखंड के विपक्षी दलों ने थोड़ी-बहुत बयानबाजी के बाद कुछ नहीं कहा. ऐसे में उनका ध्यान भी पीड़ित व्यक्ति, या उस मुद्दे पर नहीं है. प्रतिपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर रह गए, वहीं बाबूलाल मरांडी इसे अपराधिक कृत्य बताकर शांत हो गए. कांग्रेस, वाम पार्टियों ने भी तत्कालिक प्रतिक्रिया के आलावा कुछ खास नहीं कहा.
रामगढ़ मॉब लिंचिंग में मारा गया था अलीमुद्दीन
साल 2017 में 29 जून को रामगढ़ जिले के बाजारटांड़ स्थित सिद्धू-कान्हू जिला मैदान के पास प्रतिबंधित मांस ले जाने के आरोप में भीड़ ने वैन को आग के हवाले कर दिया था. मनुआ गांव निवासी चालक अलीमुद्दीन (42) की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. मामले में पुलिस ने 12 लोगों को आरोपी बनाया था. निचली अदालत ने 21 मार्च 2018 को मामले में आरोपी कपिल ठाकुर, रोहित ठाकुर, राजू कुमार, संतोष सिंह, उत्तम राम, छोटू वर्मा, दीपक मिश्र, विक्रम प्रसाद, सिकंदर राम, विक्की साव, नित्यानंद महतो को दोषी पाकर उम्र कैद की सजा सुनाई थी.
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आरोपियों ने इस फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी थी. मामले में उम्र कैद की सजा पाए 11 अभियुक्तों में से नौ को हाइकोर्ट ने छह जुलाई को जमानत दे दी. जस्टिस एचसी मिश्र व जस्टिस बीबी मंगलमूर्ति की खंडपीठ ने सजायाफ्ताओं की ओर से दायर क्रिमिनल अपील याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अनुसंधानकर्ता की दर्ज गवाही को देखते हुए रोहित ठाकुर, कपिल ठाकुर, राजू कुमार, संतोष सिंह, उत्तम राम, सिकंदर राम, विक्की साव और नित्यानंद महतो को जमानत दे दी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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