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बीजेपी-पीडीपी गठबंधन खत्म: ये कहानी शुरू कश्मीर में हुई...जाएगी कन्याकुमारी तक

बीजेपी को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कश्मीर के मुद्दे पर दिखाया गया कड़ा रुख और वहां की गतिविधि का असर देशभर में होगा

Updated On: Jun 19, 2018 11:15 PM IST

Amitesh Amitesh

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बीजेपी-पीडीपी गठबंधन खत्म: ये कहानी शुरू कश्मीर में हुई...जाएगी कन्याकुमारी तक

बीजेपी मुख्यालय में जम्मू-कश्मीर के मसले पर बुलाई गई बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल, जम्मू-कश्मीर सरकार के सूत्रधार रहे महासचिव राम माधव भी मौजूद थे. लेकिन, खास बात रही कि सरकार से अलग होने के ऐलान के पहले जम्मू-कश्मीर की महबूबा मुफ्ती सरकार में शामिल उपमुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता समेत बीजेपी कोटे के सभी मंत्रियों को भी बैठक में दिल्ली बुला लिया गया था.

बीजेपी के महबूबा सरकार से अलग होने को लेकर कयास लगने शुरू हो गए थे. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, इस बारे में पहले ही प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत सभी लोगों से सहमति भी ले ली गई थी. आखिरकार इस फैसले का औपचारिक ऐलान कर दिया गया. बीजेपी ने साफ कर दिया कि ‘शांति और विकास के जिस मकसद से सरकार का गठन हुआ था, वो मकसद पूरा नहीं हो पा रहा है’ लिहाजा सरकार से अब अलग होने का फैसला किया गया है.

राम माधव ने कहा, 'आज कश्मीर घाटी में आतंकवाद बढ़ा है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या होना परिस्थिति की विषमता का परिचायक है.’ राम माधव ने इसे प्रेस की आजादी और नागरिकों के मौलिक अधिकार पर हमला बताया.

आखिरकार बीजेपी ने क्यों तोड़ा पीडीपी से नाता ?

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

दरअसल, बीजेपी की तरफ से बार-बार यही दिखाने की कोशिश हो रही है कि कश्मीर में जिस मकसद से सरकार का गठन हुआ था और जिस ‘एजेंडा फॉर गवर्नेंस’ पर सरकार चलाने की सहमति हुई थी, उस पर ठीक से अमल नहीं हो पा रहा था. दो विपरीत विचारधारा के होने के बावजूद पीडीपी के साथ सरकार बनाने के फैसले को राम माधव उस वक्त स्थिर सरकार देने के लिए उठाया गया सही कदम बता रहे हैं.

अब बीजेपी की पूरी कोशिश है कि गठबंधन से अलग होने का पूरा दोष पीडीपी पर ही मढ़ा जाए. रमजान के पवित्र महीने में आतंकियों के खिलाफ भी एकतरफा सीजफायर करने की घोषणा के बाद भी वहां कानून-व्यवस्था के बिगड़ते हालात ने ऐसा माहौल बना दिया. पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या के बाद बाद बीजेपी को इस तरह का फैसला करने का मौका मिल गया.

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, कुछ दिनों से इस तरह के हालात बन रहे थे जिसको लेकर गठबंधन के भीतर रहना बीजेपी के लिए मुश्किल हो रहा था. मसलन, कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की घटना और उस पर सेना की कार्रवाई के मुद्दे पर भी दोनों पक्षों में मतभेद होता रहा.

महबूबा शुरू से ही सेना की कार्रवाई और सख्ती को लेकर असहज दिखती रही थी. कठुआ में रेप मामले के वक्त भी बीजेपी को पीडीपी के सामने झुकना पड़ा था. पीडीपी के दबाव में ही बीजेपी को अपने कोटे के दो मंत्रियों को हटाना भी पड़ा था. उस वक्त भी गठबंधन को लेकर कयास लग रहे थे, क्योंकि बीजेपी कैडर्स को यह सब रास नहीं आ रहा था.

सूत्रों के मुताबिक, अभी कुछ वक्त पहले मेजर लितुल गोगोई के मामले में भी जम्मू-कश्मीर पुलिस के रवैये को लेकर भी बीजेपी के भीतर रोष था. हालांकि अपनी तरफ से सरकार ने रमजान के महीने में सीजफायर का ऐलान कर महबूबा की बात को तरजीह दी थी, लेकिन, इसी दौरान कश्मीर के ही रहने वाले सेना के जवान औरंगजेब की हत्या और फिर पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या ने आग में घी का काम कर दिया.

महबूबा की बात को मान कर रमजान के बाद भी सरकार सीजफायर के लिए तैयार नहीं थी. केंद्र सरकार ने साफ कर दिया कि किसी भी कीमत पर अब सीजफायर नहीं होगा. रमजान के बाद ऑपरेशन ऑल आउट की शुरुआत फिर कर दी गई है.

बीजेपी को अपनी जमीन खिसकने का खतरा

दरअसल, बीजेपी को कश्मीर के हालात को लेकर अपनी सियासी जमीन की भी चिंता सता रही थी. बीजेपी को लग रहा था कि अब पीडीपी के साथ गठबंधन में बने रहने से उसका नुकसान सबसे ज्यादा हो रहा है.

दरअसल, सरकार की तरफ से आंतकियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट को लेकर अपनी सख्ती दिखाई जा रही थी. बीजेपी महासचिव राम माधव ने भी कहा कि ‘अबतक इस कार्रवाई में 600 से ज्यादा आतंकवादियों को मारा गया है, लेकिन, वहां कट्टरपंथी गतिविधियों को रोकने के लिए किया जाना चाहिए वो नहीं हो पा रहा है.’ बीजेपी महबूबा मुफ्ती को कट्टरपंथियों को नहीं रोक पाने के लिए जिम्मेदार बता रही है.

इसके अलावा जम्मू और लद्दाख में विकास के मामले में मुख्यमंत्री द्वारा उपेक्षा का आरोप भी लगा रही है. हालांकि सरकार में शामिल रहने के बावजूद इस तरह के आरोपों के सवाल पर बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने साफ किया कि ‘पूरी जिम्मेदारी महबूबा की ही थी, जिस तरह बिहार में जेडीयू के साथ गठबंधन रहने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्टेक राज्य सरकार में बड़ा है या फिर अकाली दल के साथ सरकार में जिस तरह बादल परिवार का स्टेक था, ठीक उसी तरह सबसे ज्यादा ताकत तो मुख्यमंत्री के ही हाथों में रहती है. ऐसे में कश्मीर घाटी की तुलना में जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में विकास काम में कमी रह जाने की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ही है.’

अब बीजेपी नेता जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच जाकर यह कह सकने की स्थिति में होंगे कि हमने उस सरकार से नाता तोड़ लिया जिस सरकार ने इस क्षेत्र का विकास नहीं किया.

अब आगे क्या हो सकता है ?

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अब आगे जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लग रहा है. राज्यपाल शासन में सेना को खुली छूट मिलेगी जिससे आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन को फिर से और तेज किया जा सके. हालांकि सरकार के सूत्रों के मुताबिक, अमरनाथ यात्रा तक मौजूदा राज्यपाल एन एन वोहरा ही अपने पद पर बने रहेंगे लेकिन, उसके बाद नए राज्यपाल की नियुक्ति भी संभव है.

सरकार के सूत्रों के मुताबिक, अभी 6 महीने तक गवर्नर का शासन ही रहेगा, फिर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाएगा. फिलहाल बीजेपी भी यही चाह रही है कि अगले लोकसभा चुनाव के पहले गवर्नर का शासन या राष्ट्रपति शासन भी बरकरार रहे, जिससे आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चलती रहे. इस दौरान बीजेपी जम्मू और लद्दाख क्षेत्र के अपने नाराज कैडर्स को भी मनाने में सफल रहेगी, जो कि पीडीपी गठबंधन के साथ जाने और सरकार में क्षेत्र की उपेक्षा से परेशान थे.

बीजेपी कश्मीर में की गई कार्रवाई का फायदा पूरे देश में भी उठना चाहती है. देश भर में राष्ट्रवाद के मुद्दे को उठाने वाली पार्टी अपने समर्थकों में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि उसके लिए ‘नेशन फर्स्ट’ है. अगर ऐसा नहीं होता तो वो अपनी ही सरकार की कुर्बानी इस तरह नहीं देती.

बीजेपी को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में कश्मीर के मुद्दे पर दिखाया गया कड़ा रुख और वहां की गतिविधि का असर देशभर में होगा और लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से वो राष्ट्रवाद के मुद्दे को जोर-शोर से उभारने में सफल हो पाएगी.

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