क्या हिंदी बेल्ट से बीजेपी की विदाई की बेला आ गई है? एग्जिट पोल ऐसा ही कह रहे हैं. एग्जिट पोल के नतीजों को गंभीरता से लेने में जरा भी जोखिम नहीं है. चुनाव विश्लेषण विज्ञान सही मायनों में विज्ञान नहीं है. यह वोटर के व्यवहार, वोटिंग पैटर्न, चुनाव के सांख्यिकीय विश्लेषण (statistical analyses), आंकड़ों का जोड़-घटाना इत्यादि से संबंधित है, और विज्ञान व राजनीति के बीच अस्पष्ट खाली स्थान को भरता है. यही वजह है कि एग्जिट पोल अक्सर डराने से ज्यादा मजे का विषय होते हैं. खासकर भारत जैसे विविधताओं और जटिलताओं से भरे देश में.
फिर भी, इसकी सभी वास्तविक और कथित गलतियों के बावजूद, एग्जिट पोल सामूहिक रूप से एक निश्चित प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हैं. इस प्रवृत्ति पर बीजेपी को चिंता करनी चाहिए. 2014 के बाद से कांग्रेस पहली बार, नए आशावाद के साथ मतगणना के दिन का इंतजार कर रही है.
लगभग सभी एग्जिट पोल संकेत दे रहे हैं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी राजस्थान में सत्ता में आ रही है और मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में बीजेपी के साथ तकरीबन बराबरी की लड़ाई में है. इन तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है, और तीनों ने 2014 में नरेंद्र मोदी की यशश्वी जीत में प्रमुखता से योगदान दिया था.
Exit polls in rest of the world: useful source of information. Exit polls in India: exciting new visual art form. pic.twitter.com/yJ6UihYyEk
— Sadanand Dhume (@dhume) December 7, 2018
तीन राज्यों में अपनी सत्ता बचाने की कोशिश में जुटी बीजेपी
तेलंगाना में, एग्जिट पोल से कुल मिलाकर संकेत मिलता है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव सत्ता में बने रहेंगे. जबकि मिजोरम में त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की जा रही है.
अपनी सत्ता को बचाने की कोशिश में जुटी बीजेपी को पता है कि इनमें से किसी भी राज्य में पराजय (जहां कांग्रेस के साथ सीधी लड़ाई है) न केवल इसके राष्ट्रीय उपस्थिति को खत्म कर देगी बल्कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को भी हवा देगी.
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में, कांग्रेस के साथ ही, भगवा संगठन मतदाताओं की 15 साल की थकान से जूझ रहा है और उम्मीद कर रहा है कि यह सत्ता विरोधी लहर में परिवर्तित नहीं होगी. राजस्थान में पार्टी सत्ता को बचाने की एक कठिन लड़ाई लड़ रही है, जहां पिछले 20 सालों में कभी भी सत्तारूढ़ दल ऐसा करने में सफल नहीं हुआ है.
एक को छोड़कर (रिपब्लिक-जन की बात द्वारा प्रायोजित) अन्य सभी सर्वेक्षण वसुंधरा राजे के सत्ता से बाहर होने का लिए इशारा दे रहे हैं. 200 सीटों वाली विधानसभा में जहां बहुमत के लिए 101 सीटें लाना जरूरी है, टाइम्स नाओ-सीएनएक्स ने कांग्रेस के लिए 105 सीटें और सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए 85 सीटों की भविष्यवाणी की है.
जबकि इंडिया टुडे-एक्सिस का आकलन है कि कांग्रेस 119-141 सीटें और बीजेपी 55 से 72 के बीच सीटें पाएगी. रिपब्लिक-जन की बात की राय सबसे जुदा है. यह बीजेपी को 83-103 सीटें, कांग्रेस को 81-101 और अन्य को पांच सीटें दे रही है.
मध्यप्रदेश में टाइम्स नाओ-सीएनएक्स ने बीजेपी को 230 सीटों में से 126 के साथ स्पष्ट बहुमत दिया है, जहां बहुमत 116 निर्धारित है. हालांकि, इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया ने बीजेपी को 102-120 के बीच रखते हुए कांग्रेस को 104-122 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है और 4-11 सीटें अन्य को दी हैं.
रिपब्लिक-सीवोटर भी बीजेपी के लिए कोई खुशखबरी नहीं लाता है. इसकी भविष्यवाणी के अनुसार भगवा खेमे को 90-106 सीटें जबकि कांग्रेस को 110-126 के आसपास सीटें मिलेंगी.
आखिरकार, टाइम्स नाओ-सीएनएक्स ने छत्तीसगढ़ के 90 सीटों के सदन में बीजेपी के लिए 46 सीटों (बहुमत हासिल करने के लिए बिलकुल सटीक संख्या) की भविष्यवाणी की है. जबकि कांग्रेस को 35 सीटें मिलने की उम्मीद जताई है. दूसरी ओर, इंडिया टुडे-एक्सिस, कांग्रेस को 55- 60 और बीजेपी को बहुत कम 21-31 और जेसीसी-बीएसपी गठबंधन को आठ सीटें मिलने का संकेत देता है. जिसका मतलब है कि रमन सिंह का कार्यकाल खत्म हो रहा है.
हालांकि, रिपब्लिक-सीवोटर सर्वेक्षण में कहा गया है कि बीजेपी को 35-43 सीटें और कांग्रेस को 40-50 के बीच सीटें मिलेंगी. अगर दिमाग को चकरा देने के लिए इतना ही काफी नहीं है, तो न्यूज नेशन के आंकड़े देखिए जो बीजेपी को 38-42 और कांग्रेस 40-44 सीटें मिलने का अनुमान जता रहा है. रिपब्लिक-सीवोटर ने कांग्रेस को 42-50 सीटें, बीजेपी को 35-43 और बीएसपी-जेसीसी को तीन से सात सीटें दी हैं.
राजस्थान में कांग्रेस राजतिलक के लिए तैयार, एमपी और छत्तीसगढ़ में टक्कर
लंबी कहानी को छोटा करके कहें तो जहां मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ किसी भी तरफ जा सकते हैं, वहीं राजस्थान में कांग्रेस को अनुभवी नेता अशोक गहलोत और युवा तुर्क सचिन पायलट के बीच मुख्यमंत्री चुनने के लिए तैयार रहना चाहिए.
हालांकि कहीं भी पूरी सहमति नहीं है. दिलचस्प बात यह है कि अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला, जिनका एग्जिट पोल वाले चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी का एक शानदार ट्रैक रिकॉर्ड है, पारंपरिक ज्ञान के एकदम खिलाफ जाकर भविष्यवाणी की है कि हिंदी बेल्ट के तीनों राज्य बीजेपी के पास रहेंगे.
इस व्यापक (और दिशाहीन?) कवायद में दो चीजें एकदम साफ हैं. एक, सभी सर्वे अपने दावों को सही ठहराने में व्यस्त हैं, और कुछ इतने ज्यादा स्विंग मार्जिन के साथ हैं कि भविष्यवाणी ही निरर्थक हो जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चुनावी विश्लेषक कड़े मुकाबले वाली सीटों के नतीजे को लेकर अनिश्चित हैं, जहां बड़े मुद्दों के बजाय स्थानीय मुद्दों और जातीय/सामुदायिक सोच के आधार पर फैसला हो सकता है.
यह हमें दूसरे बिंदु पर पहुंचा देता है. 2014 के उलट, जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास में अघटित घटना के रूप में वर्णित किया जाता है. भारत चुनावी अभ्यास में 'सामान्य स्थिति' पर लौट रहा है. जहां त्रिशंकु फैसले स्पष्ट जनादेशों की जगह लेंगे. इस बात को सच साबित होने के लिए सिर्फ चंद घंटे और इंतजार की जरूरत है. लेकिन अगर वास्तव में ऐसा होता है, तो बीजेपी के लिए अगले साल एक कठिन लड़ाई इंतजार कर रही है.
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