भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अभी से ही लोकसभा चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने में लग गई है. वैसे पार्टी ने काफी पहले ही चुनावी तैयारियों को शुरू कर दिया था लेकिन बुधवार को पार्टी ने राज्यों के चुनाव प्रभारियों के नाम का ऐलान कर बता दिया कि वह सत्ता में होने के बाद भी आने वाले चुनावों को काफी गंभीरता से ले रही है.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 17 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए चुनाव प्रभारियों के नाम का ऐलान कर दिया है. इनमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नाम है गुजरात के पूर्व गृह मंत्री गोवर्धन झड़ापिया का. झड़ापिया के नाम का ऐलान बीजेपी के अंदर भी कई लोगों के लिए हैरानी भरा रहा क्योंकि एक समय में वे नरेंद्र मोदी के प्रखर आलोचक रह चुके हैं.
झड़ापिया को पार्टी ने उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में यह जिम्मेदारी अमित शाह के पास थी. शाह के नेतृत्व में पार्टी ने 2014 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2014 के प्रदर्शन को राज्य में एक बार फिर दोहराने की चुनौती झड़ापिया के लिए काफी बड़ी है.
इन सबसे अलग, महत्वपूर्ण यह है कि झड़ापिया गुजरात के पहले ऐसे नेता हैं जिन्हें नरेंद्र मोदी की खिलाफत करने के बाद भी इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. कहा जाता है कि मोदी अपने विरोधियों को न भूलते हैं और न ही माफ करते हैं, लेकिन झड़ापिया के मामले में यह बात बिल्कुल उलट है.
कौन हैं गोवर्धन झड़ापिया
जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया तब झड़ापिया राज्य सरकार में मंत्री थे. 2002 के गुजरात दंगों के समय झड़ापिया ही राज्य के गृहमंत्री थे और दंगे में इनकी भूमिका पर सवाल भी उठे थे. बाद में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें पद से हटा दिया था.
गृह मंत्री का पद जाने के बाद झड़ापिया मोदी के आलोचन बन गए और 2007 में बीजेपी से इस्तीफा देकर अपनी नई पार्टी बना ली. झपाड़िया यही नहीं रुके और बीजेपी के खिलाफ चुनाव भी लड़ा. हालांकि कामयाबी हाथ नहीं लगी. बाद के समय में उन्होंने मोदी के आलोचक केशुभाई पटेल से भी हाथ मिलाया लेकिन फिर 2014 में उनकी बीजेपी में वापसी हो गई.
विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया से भी गोवर्धन झड़ापिया की काफी करीबी रही. तोगड़िया के वीएचपी से जाने के बाद ही झड़ापिया का बीजेपी में आने का रास्ता साफ हुआ. हालांकि 2014 में पार्टी में वापसी करने के बाद उनके पास कोई बड़ा पद या जिम्मेदारी नहीं थी. यहां तक कि 2017 गुजरात विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट तक नहीं दिया गया. कहा जाता है कि अगर 2017 चुनाव में उन्हें टिकट मिलता तो वे मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में उभर सकते थे.
संगठनात्मक कौशल में माहिर और पटेल नेता हैं झड़ापिया
झड़ापिया, पटेल समुदाय से आते हैं. यह समुदाय गुजरात में राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय है. कहा जाता है कि पटेल आंदोलन को संभालने में भी झड़ापिया की अहम भूमिका थी. आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाने में भी झड़ापिया ने अहम रोल अदा किया था.
पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि झड़ापिया काफी चतुर नेता हैं और संगठन पर काफी पकड़ रखते हैं. इसके साथ ही उनके संगठनात्मक कौशल का लोहा हर कोई मानता है. शायद इसी कारण से पार्टी ने उत्तर प्रदेश जैसे सबसे महत्वपूर्ण राज्य का प्रभारी बनाकर उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी है. कई लोगों को यह भी कहना है कि झड़ापिया को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाना उन्हें गुजरात से बाहर रखने की पार्टी की रणनीति भी हो सकती है.
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