उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी कुर्मी-कोईरी यानी लव-कुश वोटरों को साधने के अलावा इसमें पंचफोरना यानी अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की छोटी जातियों को अपने पाले में करने के फॉर्मूले पर जोरदार ढंग से काम कर रही है. लव-कुश के चैंपियन कहे जाने वाले नीतीश कुमार इससे परेशान हैं.
नीतीश कुमार ने जब नरेंद्र मोदी के नाम पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का 17 साल पुराना साथ छोड़ लालू यादव का दामन थाम लिया तब उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के साथ आए थे. पिछले साल जुलाई में नीतीश की एनडीए में नाटकीय वापसी के बाद कुशवाहा ने इसका स्वागत किया था, पर अंदरूनी सच्चाई कुछ और थी. नीतीश के साथ ही एनडीए में भीतरी घमासान तय था. नीतीश के अलावा कुशवाहा के साथ उनकी अदावत भी साथ ही एनडीए में आई.
अब जब सीट शेयरिंग का वक्त है तब कुशवाहा अपनी सोशल इंजीनियरिंग की 'खीर' पका रहे हैं. ये राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को भा रहा है. कुशवाहा बिहार की 40 में सिर्फ दो सीटों पर नहीं मानेंगे, ये तय है. साथ ही नीतीश कुमार को ये मालूम है कि कुशवाहा ने अपने पॉलिटिकल शेयर की कीमत उन्हीं की पार्टी जनता दल (यूनाईटेड) के वोट बैंक को हथिया कर बढ़ाई है.
हाल के घटनाक्रमों से इसकी तस्दीक होती है. आठ जुलाई को वैशाली के एक जेडीयू विधायक को कुशवाहा समाज के नेताओं को भोज पर निमंत्रित करने को कहा गया. ये परोक्ष तौर पर उपेंद्र कुशवाहा के बारे में उनकी राय जानने के मकसद से किया गया था. उसी समय सीएम नीतीश कुमार के सिपहसालार और पूर्व नौकरशाह रामचंद्र प्रसाद सिंह तपती गर्मी में राज्य के हर जिले में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन कर रहे थे. हाजीपुर की खाली कुर्सियां हेडलाइन बन रही थी.
नीतीश कुमार को है किस बात का डर?
आरसीपी सिंह भी नीतीश की तरह कुर्मी जाति से आते हैं लेकिन समसवार उपजाति से हैं. नीतीश अवधिया उपजाति से आते हैं. नीतीश कुमार को एहसास है कि बीजेपी के साथ आने के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ओबीसी वोट बैंक को जेडीयू के पक्ष में लाना एक चुनौती है. और ऐसे समय में अगर लव-कुश भी अपना न रहा तो मुसीबत बड़ी है.
वैशाली विधायक के रात्रि-भोज के बाद अगस्त के पहले पखवाड़े में नीतीश कुमार ने खुद ही कुशवाहा नेताओं से फीडबैक लेने का फैसला किया. इस आयोजन की जिम्मेदारी युवा जेडीयू अध्यक्ष अभय कुशवाहा को दी गई. लेकिन ऐन मौके पर ये बैठक रद्द हो गई. उपेंद्र कुशवाहा के करीबी नेताओं का दावा है कि पिछली बैठकों में कुशवाहा नेताओं ने जो कहा उसका हस्तलिखित नोट नीतीश को दिया गया था जिसमें उनके प्रति घोर नाराजगी का जिक्र था. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा की तारीफ की गई थी. इससे नीतीश बेहद नाराज हो गए.
3 साल से जारी है कुशावाहा की कोशिश
केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद नीतीश की एनडीए में वापसी के बाद से ही कुशावाहा की नज़र बिहार की जमीनी हकीकत पर टिकी रही. वो लव-कुश के अलावा अन्य पिछड़ी जातियों में से कुछ को अपने साथ लाना चाहते हैं और इसकी जमीनी कोशिश तीन वर्षों से जारी है.
नीतीश कुमार को ये कतई रास नहीं आ रहा है. कुशवाहा को पता है उन्होंने बीजेपी का साथ दिया था, नीतीश का नहीं. कुशवाहा एनडीए में नीतीश के आने की मुखालफत पहले भी कर रहे थे और वापसी के बाद भी उनकी नीतियों पर जम कर प्रहार जारी रखा. उन्होंने नीतीश पर बिहार की शिक्षा व्यवस्था चौपट करने का आरोप लगाया और हाल ही में सुशासन बाबू पर बिगड़ती कानून-व्यवस्था के लिए जम कर कटाक्ष किए.
एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट से हुए संशोधन को बहाल करने के नाम पर कुशवाहा और (एलजेपी) नेता राम विलास पासवान नीतीश के ईर्द-गिर्द नज़र आए लेकिन पुरानी तल्खी जस की तस थी. ये खुद को बीजेपी के रूख से अलग दिखाने का जरिया भर था.
इस दौरान कुशवाहा की पार्टी ने कुर्मी समाज को एकजुट करने के लिए जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को लगा दिया. कुशवाहा ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के मजूबत नेता जीतेंद्र नाथ को अपने साथ जोड़ा और उन्हें ये जिम्मेदारी दी. जीतेंद्र नाथ बताते हैं कि कुर्मी समाज - अवधिया, समसवार, जसवार जैसी कई उपाजतियों में विभाजित है. नीतीश कुमार अवधिया हैं जो संख्या में सबसे कम लेकिन नीतीश काल में सबसे ज्यादा फायदा पाने वाली उपजाति है. बांका-भागलपुर-खगड़िया बेल्ट में जसवार कुर्मी लगभग सभी लोकसभा सीटों पर नतीजे प्रभावित करने की स्थिति में हैं. वहीं समसवार बिहारशरीप-नालंदा क्षेत्र में मजबूत स्थिति में हैं.
जीतेंद्र नाथ ने न्यूज18 को बताया कि कुर्मी जाति के साथ धानुक को भी संगठित किया जा रहा है. धानुक के वंशज कुर्मी जाति के ही माने जाते हैं लेकिन ये समुदाय अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में शामिल है. रालोसपा ने मोकामा टाल इलाके के लखीसराय, शेखपुरा, बाढ़ जैसे क्षेत्रों में धानुकों और दलितों को इकट्ठा करने की योजना बनाई है. इस साल मार्च में पासवान समुदाय के भगवान कहे जाने वाले बाबा चौहरमल की जन्मशती पर टाल में बड़ा आयोजन हुआ था जिसमें राम विलास पासवान और सुशील मोदी को लोगों ने हूट कर दिया. इसे भांपते हुए कुशवाहा ने इन्हें साथ जोड़ने की कोशिश की है.
कुशवाहा की पंचफोरना पर राजनीति
इसके अलावा उपेंद्र कुशवाहा की नजर पंचफोरना पर है जिसका जिक्र उन्होंने अपनी खीर थ्योरी में किया था. पंचफोरना पारंपरिक तौर पर पांच मसालों का मिश्रण है जिससे कोई भी खाना स्वादिष्ट बनता है. बिहार की राजनीति में पंचफोरना में ये पांच जातियां शामिल हैं - धुनिया (रूई कारोबारी), कहार (डोली उठाने वाले), कुम्हार (मिट्टी का बर्तन बनाने वाले), मल्लाह और माली. ये जातियां संख्या के हिसाब से बहुत छोटी हैं लेकिन इकट्ठे पांच से दस फीसदी वोट बैंक मानी जाती हैं. हालांकि नीतीश ने बेहद चालाकी से हाल ही में मल्लाह को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की सिफारिश केंद्र सरकार से की है.
जीतेंद्र नाथ बताते हैं कि लव-कुश-धानुक ही लगभघ 20 फीसदी वोट शेयर किसी भी गठबंधन को दे सकते हैं और इस लिहाज से उपेंद्र कुशवाहा को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता.
कुशवाहा और नीतीश कुमार के बीच फंसी बीजेपी
खुद कुशवाहा ने न्यूज18 से कहा कि सीट शेयरिंग में दो लोकसभा सीटों पर वो कतई तैयार नहीं होंगे. उन्होंने ये भी कहा कि केंद्र की राजनीति के बदले उनकी नजर बिहार पर ज्यादा है. इस लिहाज से कुशवाहा ने भविष्य का गेमप्लान तैयार कर रखा है.
इसने बीजेपी की स्थिति विचित्र कर दी है. पार्टी के कुछ नेता मानते हैं कि कुशवाहा की सोशल इंजीनियरिंग से आखिरकार एनडीए को ही फायदा होगा. दिक्कत नीतीश कुमार को है. कुशवाहा के साथ उनका पॉलिटिकल मैरिज बीजेपी के कारण हुआ. अब वो तलाक दिलाने की मांग भी बीजेपी से ही कर रहे हैं.
(साभार: न्यूज 18 से आलोक कुमार की रिपोर्ट )
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