मौजूदा दौर में बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा नेता कौन है? क्या नीतीश कुमार से अलग किसी और का नाम भी लिया जा सकता है? चाहे कैसा भी दौर रहा हो, पिछले एक दशक से नीतीश कुमार निर्विवाद तौर पर बिहार के सबसे ताकतवर नेता रहे हैं. लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. ताकत के क्षीण होते देर नहीं लगती.
ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के बतौर पेश किया जा रहा था. इस बात का ऐलान किया जा रहा था कि हिंदुत्ववादी राजनीति के इस भीषण दौर में एक ही आदमी नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा हो सकता है... और वो है नीतीश कुमार.
बिहार में महागठबंधन के जरिए बीजेपी को धूल चटाकर नीतीश कुमार ने अपना कद काफी बड़ा कर लिया था. लेकिन उनका वो विशालकाय स्वरूप सिर्फ डेढ़ साल तक ही रहा. उस वक्त मौजूदा दौर के मशहूर इतिहासकार और राजीनीतिक विश्लेषक रामचंद्र गुहा ने बड़ी बारीक बात कही थी. उन्होंने कहा था कि आज के दौर में नीतीश कुमार बिना पार्टी के नेता हैं और कांग्रेस बिना नेता के पार्टी.
उन्होंने कल्पना की थी कि कांग्रेस जैसी पार्टी का नेतृत्व नीतीश जैसे नेता के हाथ में आ जाए तो पार्टी मौजूदा दौर में अजेय होगी. आज वही नीतीश कुमार एनडीए में हैं. सीएम की कुर्सी पर विराजमान हैं. लेकिन सीएम होते हुए भी उन्हें अपने ही सहयोगी पार्टी से ही चुनौती मिल रही है.
अब तक नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक साख बचाने का सौदा बीजेपी से कर रहे थे. 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर मजबूत दावेदारी के लिए कई सारे जतन किए जा रहे थे. अमित शाह की मुलाकात के बाद लगा कि शायद उन्होंने मामला सेट कर लिया है. लेकिन सीटों का पेंच अब तक नहीं सुलझा है.
क्या वजह है कि नई नवेली पार्टी ने भी रख दी डिमांड
सीटों के बंटवारे के पहले प्रेशर पॉलिटिक्स इतनी तेज है कि जेडीयू को आरएलएसपी जैसी नई नवेली पार्टी ने भारीभरकम चुनौती दे डाली है. एनडीए में शामिल उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी ने जेडीयू से अधिक सीटों की डिमांड रख दी है. इतना ही नहीं आरएलएसपी की तरफ से कहा गया है कि बिहार में एनडीए के चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार के बजाए उपेन्द्र कुशवाहा को सामने लाया जाए.
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की तरफ से कहा गया है कि पिछले चार वर्षों में आरएलएसपी का सपोर्ट बेस बढ़ा है, इसलिए 2019 के चुनाव में उन्हें जेडीयू से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए. आरएलएसपी के उपाध्यक्ष और पार्टी के प्रवक्ता जीतेन्द्र नाथ ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा है कि ‘एनडीए के भीतर जहां बीजेपी और जेडीयू के बीच सीट बंटवारे पर बहुत बातें हो रही हैं, वहीं एनडीए के सहयोगी दलों आरएलएसपी और एलजेपी की चर्चा भी नहीं हो रही है.
हम जेडीयू से ज्यादा सीटों पर लड़ना चाहते हैं क्योंकि पिछले चार वर्षों में बिहार में हमारा सपोर्ट बेस बढ़ा है. हमारे नेता उपेन्द्र कुशवाहा बिहार का भविष्य हैं. उनकी स्वीकार्यता हाल के दिनों में बढ़ी है. ये सही वक्त है कि उपेन्द्र कुशवाहा को एनडीए का चेहरा बनाया जाए.’
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जीतेन्द्र नाथ ने कहा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में हमने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. तीनों ही सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि पार्टी के एक सांसद अरुण कुमार ने साथ छोड़ दिया है लेकिन फिर भी आरएलएसपी के दो सांसद है. जबकि जेडीयू के सिर्फ दो सांसद जीतकर आए. उनका कहना है कि बिहार में नीतीश कुमार भले ही नॉन यादव ओबीसी नेता के तौर पर बड़े चेहरे हैं.
लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा ने हाल के दिनों में अपनी समर्थकों की संख्या में इजाफा किया है. वो कोयरी जाति से आते हैं. कोयरी कुर्मी और ईबीसी की धानुक जैसी जातियों का कुल 20 फीसदी वोट शेयर है. इसको ध्यान में रखते हुए अब नीतीश के बजाए उपेन्द्र कुशवाहा को एनडीए का चेहरा बनाया जाना चाहिए.
2019 के लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए में खींचतान की काफी दिनों से चर्चा है. आरएलएसपी ने अपनी नई डिमांड रखकर एनडीए के भीतर की खलबली को और तेज कर दिया है. दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और आरएलएसपी के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सुबोध कुमार कहते हैं कि ‘अमित शाह की नीतीश कुमार के साथ मुलाकात बहुत अच्छा कदम था. लेकिन वो पहला पड़ाव था. उसके आगे के पड़ाव में उपेन्द्र कुशवाहा और रामविलास पासवान जी के साथ फाइनल राउंड होना बाकी है.
अभी सिर्फ दो लोगों के बीच में बातें हुई हैं.’ यानी अमित शाह और नीतीश की मुलाकात के बाद भी सीटों का पेंच खत्म नहीं हुआ है. उपेन्द्र कुशवाहा और रामविलास पासवान की रजामंदी होने तक मामला उलझा रहेगा. उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएसपी एनडीए में जेडीयू से भी बड़ी भूमिका तलाश रही है. बिहार में बीजेपी भी मान रही है कि 2019 के चुनाव में एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार ही होंगे लेकिन आरएलएसपी नहीं मान रही.
जेडीयू की राह पर चलकर जेडीयू को ही दे रहे हैं चुनौती
जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से जेडीयू सीटों के बंटवारे का मुद्दा उठने से पहले बीजेपी के ऊपर दबाव की राजनीति बनाए हुए थी. उसी तरह से आरएलएसपी भी इसी राजनीति के जरिए लगातार नीतीश कुमार को निशाने पर लिए हुए है. कुछ दिनों पहले आरएलएसपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि ने भी इसी तरह का बयान दिया था. उन्होंने भी नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा मानने से इनकार करते हुए उपेन्द्र कुशवाहा को आगे किए जाने की बात कही थी.
आरएलएसपी की तरफ से कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार को एनडीए का चेहरा बनाए जाने का फैसला एकतरफा है. इस बारे में एनडीए में फैसला नहीं हुआ है. डॉ सुबोध कुमार कहते हैं, ‘पिछले 3-4 सालों से नीतीश कुमार का जनाधार कम हुआ है. पिछले 7-8 सालों में जेडीयू से 4 बड़े नेता निकले हैं. नागमणि, उपेन्द्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और शरद यादव जैसे बड़े नेताओं ने पार्टी से बाहर हुए हैं. चारों ने मिलकर नई पार्टी खड़ी की है. दूसरी बात है कि नीतीश कुमार की कंफ्यूजन की पॉलिटिक्स से जनता का मोह उनसे भंग हुआ है. इसी कंफ्यूजन में उनकी तरफ से बयान आया है कि वो एनडीए का चेहरा होंगे.
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आरएलएसपी अपने दावे को पुख्ता करने के लिए 2014 के लोकसभा नतीजों का हवाला देती है. 2014 में आरएलएसपी ने 3 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे. तीनों ही सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी. जबकि जेडीयू ने सिर्फ 2 सीटों पर कामयाबी पाई थी. हालांकी इसी चुनाव में आरएलएसपी ने 3 सीटें जीतकर 3 फीसदी वोट हासिल किए थे. जबकि 2 सीटें जीतने वाली जेडीयू का वोट शेयर 15.80 फीसदी था.
वहीं 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरएलएसपी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था, इसमें सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल की थी. पार्टी को 2.6 परसेंट वोट मिला. जबकि जेडीयू 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 71 सीटों पर जीत हासिल की थी. जेडीयू को 16.8 फीसदी वोट हासिल हुए थे. आरएलएसपी ने विधानसभा चुनाव में जो 2 सीटें हासिल की थीं. उनमें से एक उपेन्द्र कुशवाहा के साथ है जबकि दूसरा आरएलएसपी से बाहर हुए अरुण कुमार के साथ. आरएलएसपी की नई डिमांड पर जेडीयू नेता केसी त्यागी कहते हैं, ‘243 के हाउस में जिनका एक एमएलए हो, वो मधु कोड़ा की तरह मुख्यमंत्री बनने के ख्वाब देख रहे हैं. इस तरह के बयान हमारी प्रतिक्रिया के काबिल भी नहीं हैं.’
दरअसल सीटों के बंटवारे को लेकर बिहार में जबरदस्त प्रेशर पॉलिटिक्स चल रही है. इसी कड़ी में नीतीश कुमार ने पहले योग दिवस के सरकारी कार्यक्रम में शामिल न होकर बीजेपी को संदेश दिया. नोटबंदी पर अपने पुराने बयान से पलटकर बैंकों की आलोचना के जरिए केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाकर संदेश दिया. अब उसी तरह का प्रेशर पॉलिटिक्स आरएलएसपी कर रही है. सूत्रों के हवाले से ये भी खबर आ रही है कि सीटों पर रजामंदी न बनने की सूरत में आरएलएसपी विपक्ष के महागठबंधन में शामिल हो सकती है.
ओबीसी जातियों में यादव 14 फीसदी वोट शेयर के साथ सबसे बड़ी जाति है. बनिया जाति का वोट शेयर 11 फीसदी का है. इसके बाद 8 परसेंट के साथ कोयरी-कुर्मी और ईबीसी धानुक जातियों का स्थान आता है. नीतीश और उपेन्द्र कुशवाहा इसी वोट शेयर के सपोर्ट बेस पर राजनीति करते हैं. लेकिन नीतीश की विकासवादी छवि और सुशासन वाला चेहरा उन्हें बड़ा विस्तार देती है. 3 सांसदों वाले आरएलएसपी के दो धड़े पहले ही हो चुके हैं. अरुण कुमार अपना अलग गुट बना चुके हैं. नीतीश से आगे निकलने का दावा उपेन्द्र कुशवाहा की सिर्फ प्रेशर पॉलिटिक्स है ताकि वो बीजेपी से सीटों के मामले में मोलभाव कर सकें.
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