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चारा घोटाले के कई अभियुक्त अफसरों के जीवन में छा रहा अंधेरा

इस मामले में लगभग आधा दर्जन IAS अधिकारियों को सजा सुनाए जाने के बाद अन्य मामलों में बाद के वर्षों में अन्य IAS अफसर भी जेल जाते रहे हैं. यानी कई लोग कोई सबक लेने को तैयार ही नहीं हैं

Updated On: Sep 24, 2018 07:33 AM IST

Surendra Kishore Surendra Kishore
वरिष्ठ पत्रकार

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चारा घोटाले के कई अभियुक्त अफसरों के जीवन में छा रहा अंधेरा

‘मेरे जीवन में अंधेरा छा गया’, यही कहा था कि आयुक्त स्तर के आईएएस अफसर रहे के. अरुमुगम ने. करीब 10 साल पहले की बात है. वो बहुचर्चित चारा घोटाले से संबंधित मुकदमे की सुनवाई के सिलसिले में अपने गृह राज्य तमिलनाडु से रांची अदालत में पहुंचे थे.

बिहार सरकार के पशुपालन विभाग के सचिव रहे अरूमुगम को चारा घोटाले में 2013 में 3 साल की सजा हुई ढाई साल तक जेल में रहे और अर्थाभाव और उपेक्षा के बीच कुछ ही साल पहले चीफ सेक्रेटरी बनने का सपना लिए इस दुनिया से चले गए. अब भी इस घोटाले में जेल में बंद अनेक नेता, अफसर, आपूर्तिकर्ता खुद और उनके परिजन कष्ट, अर्थाभाव और उपेक्षा झेल रहे हैं. फिर भी आश्चर्य है कि बिहार में या यूं कहिए कि पूरे देश में भ्रष्टाचार कम ही नहीं हो रहा है.

कभी सृजन घोटाला सामने आ रहा है तो कभी मुजफ्फरपुर शेल्टर होम जैसा घिनौना कांड. ताजा खबर यह है कि बिहार के खगड़िया जिले के एक मजदूर बलराम साह के बैंक खाते में करीब 99 करोड़ रुपए पाए गए. किसी दलाल ने कुछ समय पहले बैंक लोन दिलाने के बहाने बलराम से पास बुक ले लिया था. तब उसके खाते में मात्र 59 रुपए थे.

K. Arumugam

सवाल है कि घोटालेबाजों को अपना धंधा जारी रखने की यह ताकत कहां से मिल रही है? नेताओं से, अफसरों से या फिर पूरा सिस्टम ही इसके लिए जिम्मेदार है?

ऐसे में बिहार के चारा घोटाले की एक बार फिर चर्चा मौजूं है. चारा घोटाले में अनेक बड़े नेताओं के साथ-साथ करीब आधा दर्जन आईएएस अफसरों को निचली अदालत से सजा हो चुकी है. इस संबंध में दायर अन्य मुकदमों की सुनवाई अभी हो ही रही है.

इसके बावजूद अन्य मामलों में बाद के वर्षों में अन्य आईएएस अफसर भी जेल जाते रहे हैं. यानी कई लोग कोई सबक लेने को तैयार ही नहीं हैं.

भ्रष्टाचार से मिल रहे आसान पैसों का आकर्षण तो देखिए!

चारा घोटाले के सिलसिले में जितने लोग अभी जेल में हैं, उनमें से कुछ लोग बीमार हैं. उनमें से कुछ लोग चारों तरफ से उपेक्षा के भी शिकार हैं. जबकि कुछ अन्य लोगों के परिवार बिखर गए. कुछ आरोपी असमय गुजर गए. कुछ ने आत्महत्या कर ली. घोटाले के मुख्य अभियुक्त के बेटे की असमय मृत्यु हो गई क्योंकि जांच एजेंसी की पूछताछ वो बर्दाश्त नहीं कर सका. बेटे के शोक में मुख्य अभियुक्त का भी असमय निधन हो गया. कई आरोपितों और सजायाफ्ताओं के परिवार की शादियां टूट गईं. परिवार बिखर गए. मित्र-दोस्त कन्नी काटने लगे.

नाजायज ढंग से कमाए धन अदालती चक्कर में समाप्त हो गए. इसमें अरूमुगम की कहानी दर्दनाक रही. निधन से पहले उन्होंने कहा था कि चारा घोटाले में नाम आते ही मेरी दुनिया बदल गई. अरूमुगम को 3 साल की सजा हुई थी. बाद में वो जमानत पर छूटे थे.

अरूगुगम ने बताया था कि लंबे कारावास के कारण मोतियाबिंद का समय पर ऑपरेशन नहीं हो सका. नतीजतन मेरी एक आंख जाती रही. रख रखाव के अभाव में मेरी निजी कार रखी-रखी सड़ गई. मेरे पास उसे रखने की कहीं जगह नहीं थी. कबाड़ी में बेचना पड़ा. जेल से बाहर आने के बावजूद मेरा निलंबन नहीं उठा. यह सब कतिपय बड़े अफसरों के द्वेषवश हुआ जो मुझे मुख्य सचिव नहीं बनने देना चाहते थे.

Bihar Muzaffarpur Shelter Home

बिहार में पिछले कुछ समय के दौरान समेत कई बहुचर्चित कांड और घोटाले सामने आए हैं

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रिटायर होने के बाद केस की सुनवाई के लिए मुझे अक्सर तमिलनाडु से रांची आना पड़ता था. रांची में एक छोटे से कमरे में रहता था जो मेरे एक मित्र से मिला था. ढाबे में खाना खाता था. कभी-कभी चूड़ा-दूध खाकर काम चला लेता था. मुकदमों ने धन और चैन दोनों छीन लिए. मेरे जीवन में अंधेरा छा गया.

बता दें कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू यादव और डॉ. जगन्नाथ मिश्र सहित कुछ अन्य आईएएस अफसरों को भी सजाएं हुई हैं. उनकी भी दुनिया बदल चुकी है. नेता लोग तो ऐसे भी राजनीतिक आंदोलनों के सिलसिले में जेल यात्राओं के अभ्यस्त होते हैं. पर किसी आईएएस के तो सपने ही कुछ और होते हैं. उनके ईर्दगिर्द एक अजीब प्रभामंडल रहता है. खुद अरूमुगम भी मुख्य सचिव बनने के सपना देख रहे थे.पर उनकी गलतियों ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा.

चारा घोटालेबाजों के कष्टों को देखकर भी नहीं सबक ले रहे भ्रष्टाचारी

चारा घोटालेबाजों के कष्टों को देखते हुए पहले यह माना जा रहा था कि अब गलत ढंग से सरकारी खजाने से पैसे निकालने से पहले कोई हजार बार सोचेगा. पर नहीं. पिछले वर्ष भागलपुर से यह खबर आई कि वहां के सरकारी खजाने से अरबों रुपए इधर से उधर कर दिए गए.

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आरोप है कि प्रभावशाली नेताओं के संरक्षण में ही वो घोटाला हुआ जो सृजन घोटाले के नाम से जाना जाता है. सीबीआई उसकी भी जांच कर रही है. ऐसी घटनाओं से एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है. सवाल यह कि नए घोटालेबाज उन सजाओं से भी नहीं डर रहे हैं जो पिछले घोटालों के आरोपितों को मिलती जा रही है?

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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