भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद रावण आजकल बहुजन समाज के पक्ष में माहौल बनाने में लगे हैं. जेल से बाहर आने के बाद से ही उनकी कोशिश लोकसभा चुनाव से पहले इस तरह का माहौल तैयार करने की है, जिससे चुनावों में बहुजन समाज का ही सिक्का चले. इसी कोशिश में उनकी तरफ से बीएसपी की सुप्रीमो यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के नाम को अब सबसे बड़े पद के दावेदार के तौर पर पेश किया जा रहा है. रावण ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए मायावती को विपक्षी कुनबे की कमान सौंपने की मांग की है.
इधर समर्थन तो उधर आरोप
लेकिन मजे की बात यह है कि चंद्रशेखर आजाद रावण जितनी ही मायावती की तरफदारी कर रहे हैं, मायावती उनसे उतनी ही तेजी से पीछा छुड़ाना चाहती हैं. मायावती ने तो रावण को बीजेपी का एजेंट तक करार दे दिया है. मायावती इस तरह के बयान पर वो सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं कि 'बीएसपी तो हमारा घर है और घर में इस तरह की गलतफहमियां तो होती ही रहती हैं.' लेकिन, उनकी तरफ से कोई भी ऐसा बयान नहीं दिया जा रहा जो मायावती या उनकी पार्टी को चुभने वाला हो.
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आखिर क्या कारण है कि चंद्रशेखर रावण इस तरह से मायावती से करीबी रिश्ता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं जबकि, मायावती उनसे दूरी बनाने में लगी हैं. दरअसल, यह पूरी लड़ाई यूपी में दलितों के नेता बनने को लेकर है. इस वक्त मायावती यूपी में दलितों की एकमात्र बड़ी नेता हैं. खासतौर से यूपी की राजनीति में दबदबा रखने वाला जाटव समुदाय तो बीएसपी के बुरे वक्त में भी मायावती के साथ खड़ा रहा है.
मायावती का कोर वोटर अब भी उनके साथ
लोकसभा चुनाव 2014 में बीएसपी का खाता तक नहीं खुल सका था, फिर तीन साल बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी महज 19 सीटों पर सिमटकर रह गई थी. फिर भी मायावती का कोर वोटर उनके साथ खड़ा रहा. यह अलग बात है कि गैर-जाटव दलित समुदाय के लोगों ने लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव में बीएसपी के बजाए बीजेपी का साथ दिया था. लेकिन गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा के उपचुनाव में परिणाम देखकर ऐसा लगा कि फिर से दलित समुदाय का रुझान बीएसपी की तरफ हो रहा है. ऐसे में लोकसभा के अगले चुनाव में बीएसपी फिर से मजबूत फैक्टर बनकर उभर सकती है.
अगर एसपी और बीएसपी का आपस में गठबंधन हो जाए तो फिर बीजेपी के लिए मुश्किलें हो सकती हैं. अखिलेश यादव की तरफ से लोकसभा चुनाव के लिए बीएसपी को ज्यादा सीटें दी जा सकती हैं. कांग्रेस और आरएलडी भी इस महागठबंधन बनाने को लेकर तैयार दिख रही हैं. लेकिन, यूपी के अलावा बाकी दूसरे राज्यों में भी विपक्षी दलों की आपसी सहमति और गठबंधन के सहारे बीजेपी को मात देने की पूरी कोशिश चल रही है.
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गठबंधन के मुखिया पर नहीं बन रही बात
मसलन, पश्चिम बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट के साथ कांग्रेस का गठबंधन तो आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी के साथ कांग्रेस का गठबंधन और कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है. इसी तरह बिहार में आरजेडी और लेफ्ट के साथ तो, महाराष्ट्र में एनसीपी और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन की तैयारी कांग्रेस कर रही है.
लेकिन, इस गठबंधन का मुखिया कौन होगा इस पर सबकी चुप्पी है. चंद्रबाबू नायडू से लेकर ममता बनर्जी तक सबकी तरफ से वकालत यही की जा रही है. लेकिन, विपक्षी कुनबे के चेहरे के सवाल को चुनाव परिणाम बाद के लिए टाला जा रहा है. ऐसे में चंद्रशेखर रावण की तरफ से मायावती के नाम को उछालकर दलित समुदाय के बीच मायावती के सहारे ही अपने कद को भी बड़ा करने की तैयारी हो रही है.
मायावती के सहारे पकड़ मजबूत करने में लगे हैं चंद्रशेखर?
चंद्रशेखर रावण और उनकी भीम आर्मी का नाम सहारनपुर की हिंसा के बाद सामने आया था. पश्चिमी यूपी में दलित समुदाय के भीतर उनकी पकड़ काफी मजबूत है. अब वो पूरे यूपी में दलित समुदाय के नेता के तौर पर अपने-आप को स्थापित करने में लगे हैं. लेकिन, उन्हें इस बात का एहसास है कि आज भी दलित समुदाय और खास तौर से जाटव समुदाय में मायावती की पकड़ सबके अधिक है, लिहाजा उनको समर्थन देने और अलग चुनाव लड़ने के बजाए उनके समर्थन में रहने के फैसले से समुदाय के भीतर उनकी भी लोकप्रियता और पकड़ काफी बढ़ेगी.
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अगर, वो सीधे मायावती को चुनौती देकर अपना स्थान बनाने की कोशिश करेंगे तो शायद यह फिलहाल संभव नहीं होगा और अपने सियासी करियर के आगाज से पहले ही उनको बड़ा झटका लग जाएगा. दूसरी तरफ, उन्हें लग रहा है कि मायावती के बाद उनका घोषित उत्तराधिकरी कोई नहीं है. ऐसे में अगर वो मायावती को समर्थन देंगे तो बहुजन समाज के भीतर उनकी स्वीकार्यता भी बढ़ेगी और अपने कद को बड़ा कर मायावती के नहीं चाहने के बावजूद भी उनके वोट बैंक पर दावा मजबूत हो जाएगा.
लेकिन, मायावती ने सितंबर में अपने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भी चंद्रशेखर रावण से दूरी बनाते हुए उनसे किसी भी तरह के रिश्ते की संभावना से इनकार कर दिया था. उस वक्त मायावती ने कहा था कि कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ में तो कुछ लोग अपने बचाव में मेरे साथ बुआ-भतीजे का नाता-रिश्ता जोड़ रहे हैं. मायावती उनकी इस कोशिश को समझ रही हैं, लिहाजा, उन्हें बीजेपी का एजेंट बताकर उनसे दूरी बना रही हैं.
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