प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुजरात में चुनाव प्रचार का पहला दिन कई संकेत दे गया है. इसने बीजेपी के खेमे के मौजूदा हालात की भी झलक दिखा दी है. प्रधानमंत्री मोदी की पहली चुनावी रैली भुज में थी. वहां दिए गए उनके भाषण पर गौर करें तो पता चलता है कि वो चुनाव की चर्चा अपनी शर्तों पर करना चाहते हैं. वो विपक्ष के मुद्दों पर जवाब देकर उन्हें हमलावर होने का मौका देने को तैयार नहीं.
अब इस बात का यह मतलब भी है कि इस बार गुजरात के मोर्चे पर बीजेपी को अपनी राह उतनी आसान नहीं दिखती. पार्टी को लग रहा है कि जीएसटी की वजह से उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. हालांकि बीजेपी की यह फिक्र ऊपरी तौर पर नहीं दिखती. गुजरात चुनाव में बड़ा सवाल यह नहीं है कि बीजेपी जीतेगी या नहीं. सवाल यह है कि क्या पार्टी 150 सीटें जीतने का टारगेट पूरा कर सकेगी?
राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी पर लगातार हमले कर रहे हैं. कांग्रेस ने बीजेपी से नाराज लोगों से समझौता कर के जातीय गणित साधने की कोशिश भी कर ली है. पाटीदार आंदोलन को भी कांग्रेस हवा दे रही है. राहुल गांधी इस बार प्रचार में आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं. प्रचार के दौरान राहुल गांधी को सुनने के लिए भारी तादाद में लोग जुट रहे हैं. मीडिया भी उनकी बातों को तवज्जो दे रहा है. फिर भी ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि जीत बीजेपी की ही होगी. तमाम न्यूज चैनल और अखबार इसी तरफ इशारा करते मालूम होते हैं.
गुजरात चुनाव को लेकर भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं
लेकिन सियासी जानकार गुजरात चुनाव को लेकर कोई भी भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं. वो खुलकर यह नहीं कह रहे हैं कि जीएसटी की वजह से मोदी का विजय रथ लड़खड़ा रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं कि देश के सबसे बड़े टैक्स सुधार जीएसटी की वजह से अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है. कारोबारी इससे नाखुश हैं. कई ऐसी खबरें आई हैं कि बीजेपी कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. खास तौर से उन लोगों की जो लंबे वक्त से बीजेपी के साथ थे.
गुजरात के चुनाव में तमाम कारोबारी समुदायों का रोल अहम रहता आया है. ऐसे में बीजेपी का 150 सीटें जीतने का लक्ष्य ज्यादा बड़ा लगता है. इसका इस साल हुए यूपी चुनाव से कोई ताल्लुक नहीं है.
उत्तर प्रदेश के चुनाव ने देश के चुनावों को लेकर लोगों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया था. विपक्ष और मीडिया को यह यकीन था कि मोदी और बीजेपी को नोटबंदी से हुई नाराजगी झेलनी पड़ेगी. उन्हें बहुत नुकसान होगा. लेकिन जब नतीजे आए, तो उसने सारे अनुमान ध्वस्त कर दिए थे. मीडिया के सामने तो अपनी इमेज का संकट खड़ा हो गया था. मीडिया का खुद पर भरोसा यूपी के नतीजों ने डिगा दिया था. नतीजों ने बता दिया था कि जाति और समुदायों के समीकरण देखने के चक्कर में मीडिया और जानकारों ने मतदाता के असल मूड की अनदेखी की थी. खुद को तजुर्बेकार बताने वाले लोग मोदी के प्रति लोगों के लगाव को समझ ही नहीं पाए.
यही वजह है कि इस बार गुजरात के नतीजों को लेकर मीडिया और चुनावी जानकार कोई भी भविष्यवाणी करने से बच रहे हैं.
इन बातों की रोशनी में सोमवार को मोदी का भाषण देखें तो कुछ दिलचस्प बातें सामने आती हैं.
विकास, गुजराती अस्मिता और अपने गुजरात के बेटे होने पर जोर देते रहे
भुज और राजकोट में अपनी रैलियों में मोदी ने जीएसटी को अपने भाषण में सबसे आखिर में रखा. वो विकास, गुजराती अस्मिता और अपने गुजरात के बेटे होने की बातों पर जोर देते रहे. वो पुरानी बातों से नया माहौल बनाने में जुटे रहे. वो कांग्रेस के प्रति गुजरातियों की नाखुशी को एक बार फिर भुनाने में जुट गए हैं. ताकि जीएसटी को लेकर लोगों की नाराजगी भुनाने की राहुल गांधी की कोशिश को नाकाम कर सकें.
मोदी ने अपने भाषण में आरोप लगाया कि कांग्रेस ने सरदार वल्लभभाई पटेल से सौतेला बर्ताव किया. मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस गुजरात से नाइंसाफी करती आई है. वरना नर्मदा का पानी कच्छ के सूखे इलाकों में 30 साल पहले ही पहुंच जाता. मोदी ने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने तीन कार्यकालों की उपलब्धियां गिनाईं. उन्होंने बताया कि 2001 के भूकंप के बाद उन्होंने किस तरह कच्छ का पुनर्निर्माण किया. लोगों की जिंदगी पटरी पर वापस लाने में मदद की. अपने भाषणों में मोदी ने खुद को आधुनिक गुजरात के निर्माता के तौर पर पेश किया.
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मोदी ने पुराने किस्से भी सुनाए. उन्होंने बताया कि कैसे उनका राज आने से पहले सरकारी कर्मचारी कच्छ में तबादले के नाम से ही कांपने लगते थे. किस तरह लोग सूखे इलाकों से दूसरे जिलों में जाने को मजबूर थे. कैसे पुराने वक्त में चरवाहे खाना और पानी की तलाश में भटकने को मजबूर थे. फिर मोदी ने याद दिलाया कि उनकी कोशिशों से कच्छ में सिंचाई के लिए पानी पहुंचा. ड्रिप इरिगेशन सिस्टम की मदद से उन्होंने इंकलाब ला दिया. रेतीले कच्छ को हरा-भरा बना दिया.
इसके बाद मोदी ने लोगों को याद दिलाया कि किस तरह 1956 में महागुजरात का आंदोलन करने वालों पर कांग्रेस ने गोली चलवाई थी. मोदी ने अपने भाषणों में बार-बार लोगों को कांग्रेस की गलतियों और गुजरात से उसके बर्ताव की याद दिलाई.
चुनाव को गुजरात बनाम कांग्रेस बनाने की कोशिश की
राहुल गांधी अपनी रैलियों में नोटबंदी और जीएसटी को लेकर मोदी पर लगातार हमले करते रहे हैं. मोदी ने अपने भाषण में इस लड़ाई को निजी बनाने की कोशिश की. उन्होंने चुनाव को गुजरात बनाम कांग्रेस बनाने की कोशिश की. खुद को गुजरात का बेटा बताकर उन्होंने खुद को गुजरात का प्रतीक बताया. फिर मोदी ने कहा कि उनका अपमान मानो गुजरात का अपमान है. मोदी ने कहा कि कांग्रेस अगर गुजरात का अपमान करेगी तो गुजराती उसे सबक सिखाएंगे.
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राजकोट में मोदी ने अपने बचपन की गरीबी, छोटे परिवार से आने का जिक्र किया. इसके बहाने उन्होंने कांग्रेस के मोदी के चाय वाले होने का मजाक बनाने को भुनाने की कोशिश की. मोदी ने कहा कि वो देश बेचने के बजाय चाय बेचना पसंद करेंगे. इस एक लाइन से मोदी ने एहसास करा दिया कि कांग्रेस ने कितनी बड़ी गलती की है.
मोदी ने अपने भाषण में कांग्रेस को देशविरोधी बताने की कोशिश भी की. उन्होंने याद दिलाया कि किस तरह राहुल गांधी ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाए थे. मोदी ने बताया कि डोकालाम में सीमा विवाद के दौरान राहुल गांधी चीन के राजदूत से चुपके-चुपके मिले थे.
कांग्रेस को भी इस नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़े
मोदी ने अपने भाषण के आखिर में जिस तरह जीएसटी का जिक्र किया, वो भी बेहद दिलचस्प था. मीडिया भले ही जीएसटी का असर बीजेपी की चुनावी फसल पर पड़ने की बात कर रही हो, मोदी इस मोर्चे पर बहुत सावधानी से काम ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि कांग्रेस के नेता जीएसटी काउंसिल की बैठकों में कैसा बर्ताव करते हैं. और फिर बाहर आकर कैसे बयान देते हैं. यानी अगर जीएसटी से जनता नाराज है, तो मोदी की कोशिश यह है कि कांग्रेस को भी इस नाराजगी का खामियाजा उठाना पड़े.
मोदी ने जनता को यह भी याद दिलाया कि वो लोगों की नाराजगी समझते हैं. लोगों की मांग के मुताबिक बदलाव भी करने को राजी हैं. आखिर में उनका जोर इसी बात पर रहा कि कांग्रेस उनका नहीं गुजराती अस्मिता का अपमान कर रही है.
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मोदी के भाषणों से एक बात तो एकदम साफ है. गुजरात के चुनाव का खेल अभी पूरी तरह से खुला हुआ है.
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