भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे का विकल्प क्यों विफल रहा है इसको मुलायम सिंह के एक हालिया बयान के जरिए आसानी से समझा जा सकता है. मुलायम सिंह ने कहा है कि जब बिहार विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो नीतीश कुमार ने उनसे मिन्नतें की थीं. मिन्नतें भी कैसी? यही कि चुनाव नीतीश को चेहरा बनाकर लड़ा जाए.
मुलायम सिंह ने कहा है कि लालू यादव इस बात के लिए तैयार नहीं थे. लालू चाहते थे कि चुनाव हो जाने के बाद जिस पार्टी की सीटें ज्यादा होंगी, सीएम उसी का होगा. मुलायम सिंह का इशारा था कि नीतीश कुमार उस चुनाव में सीएम का चेहरा इसलिए बन पाए क्योंकि मुलायम सिंह ने इस पर हस्तक्षेप किया था.
मुलायम सिंह ने हाल में यह भी कहा कि नीतीश कुमार तो धोखाधड़ी के उस्ताद बन गए हैं. 2013 तक वह बीजेपी की मदद से बिहार के सीएम रहे. फिर 2015 में यूटर्न लेकर बीजेपी के खिलाफ हो गए. अब जब उन्हें लगा कि वह अपनी कुर्सी नहीं बचा पाएंगे तो 'भ्रष्टाचार बर्दाश्त न करने' के नाम पर फिर बीजेपी की गोद में चले गए. नेता को यह समझना चाहिए कि अपनी बात से पलटना भी भ्रष्टाचार होता है. आरजेडी से नाता तोड़कर उन्होंने लालू प्रसाद ही नहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मुझे भी धोखा दिया है.
लेकिन अगर लोगों को याद होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी भी महागठबंधन का हिस्सा बनी थी. मुलायम सिंह यादव की बड़ी तमन्ना थी बिहार में कुछ सीटें हासिल कर अपनी पार्टी का कुछ बेस वहां भी तैयार किया जाए. लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा.
महागठबंधन की सीटों की घोषणा हुई और समाजवादी पार्टी के हाथ कुछ भी नहीं आया. एक झटके से समाजवादी पार्टी ने खुद को महागठबंधन से अलग कर लिया. पार्टी ने कहा, हम अपने उम्मीदवार उतारेंगे. तब मुलायम सिंह यादव पर महागठबंधन की तरफ से ये आरोप भी लगा था कि प्रत्याशी खड़े कर वो बीजेपी की मदद कर रहे हैं. उस समय मुलायम सिंह यादव ने इन सब बातों पर ध्यान नहीं दिया. तब मुलायम सिंह यादव ने लालू यादव के साथ अपनी रिश्तेदारी की चिंता भी नहीं की.
अब आते हैं मुलायम सिंह के उस बयान की तरफ जिसमें उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने उनसे सीएम कैंडिडेट बनाने के लिए मिन्नतें की थीं. मुलायम सिंह को ये बयान देते हुए ये भी साफ करना चाहिए कि जब नीतीश कुमार गठबंधन में इतनी कमजोर हालत में थे तो आखिर समाजवादी पार्टी को सीटों के बंटवारे में सीटें किसने नहीं दीं? अगर मुलायम सिंह की बात मानें तो फिर लगता है कि उस समय ये निर्णय लालू यादव का ही रहा होगा, क्योंकि गठबंधन में अक्सर उसी की बात मानी जाती है जो ज्यादा मजबूत होता है. मतलब अगर समाजवादी पार्टी उस चुनाव में बिहार में पैर पसार पाने में नाकामयाब रही तो उसकी वजह लालू प्रसाद यादव हैं न कि नीतीश कुमार! अगर मुलायम सिंह की बातों पर भरोसा करें तो यही बात सामने आती है.
मुलायम सिंह ने नीतीश पर और भी कई आरोप लगाए हैं इनमें ‘बातों से पलटने को भ्रष्टाचार’ की संज्ञा दी है. मुलायम सिंह की राजनीति को समझने वाले ये बेहतर तरीके से जानते हैं कि वो कब किस तरफ पलट जाएंगे किसी को नहीं मालूम होता है. जब भी बात विपक्षी एकता की होती है तो मुलायम सिंह यादव दूसरी तरफ नजर आते हैं. अभी हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान जब विपक्ष मीरा कुमार का समर्थन कर रहा था तो उन्होंने रामनाथ कोविंद का समर्थन किया.
हालांकि यह भारतीय राजनीति का आम चलन है कि नेता खुद के राजनीतिक कदमों को सही मानते हैं और दूसरे पर उसी बात के लिए कई आरोप मढ़ देते हैं.
इस लेख की शुरुआत तीसरे मोर्चे की कमजोरी से शुरू हुई थी. दरअसल तीसरे मोर्चे का विकल्प तलाशने वाली राजनीतिक पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस का विकल्प तलाशना चाहती हैं. लेकिन मुश्किल ये है कि जिन छोटी पार्टियों से इस तीसरे मोर्चे के गठन की बात की जाती है उन पार्टियों के अध्यक्ष नहीं सुप्रीमो होते हैं. मतलब ऑल इन ऑल.
इन पार्टियाें में एका नहीं हो पाने का प्रमुख कारण यही है कि अगर विचारों में थोड़ी भी भिन्नता आई तो आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो जाते हैं. एकजुट विपक्ष चाहने वाले मुलायम सिंह भी यही कर रहे हैं.
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