मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए अपना मंत्रिमंडल बनाना बड़ी चुनौती के तौर पर सामने आया है. मंत्रिमंडल के शपथ के लिए 25 दिसंबर की तारीख दो दिन पहले ही तय की जा चुकी है, लेकिन नामों को लेकर खींचतान अंतिम समय तक चलने वाली है. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों की संख्या सीमित कर उन्हें अलग-थलग करने की कोशिश जरूर की है.
मंत्रिमंडल में दिखेगी लोकसभा चुनाव की तैयारी
कमलनाथ ने मुख्यमंत्री के तौर पर 17 दिसंबर को शपथ ली थी. संभावना यह प्रकट की जा रही थी कि कमलनाथ अपने मंत्रिमंडल का गठन बीस तारीख तक कर लेंगे. लेकिन, हालात ऐसे बन नहीं पाए कि वे अपने मंत्रियों का चुनाव भोपाल में बैठकर कर सकते. कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी जिम्मेदारी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सीटों की संख्या बढ़ाने की है. हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत भी नहीं मिल पाया.
कांग्रेस को कुल 114 सीटें मिलीं हैं. जबकि बहुमत के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है. बहुजन समाज पार्टी के दो विधायक चुनकर आए हैं. बीएसपी प्रमुख मायावती ने विचारधारा के आधार पर मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के समर्थन का एलान किया है. चार निर्दलीयों का समर्थन भी कांग्रेस को मिला हुआ है. इसी आधार पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने बहुमत साबित करने की शर्त भी कमलनाथ के सामने नहीं रखी. अपनी सरकार का बहुमत बनाए रखने के लिए कमलनाथ को कुछ निर्दलीय विधायकों को भी मजबूरन मंत्रिमंडल में शामिल करना पड़ेगा.
समाजवादी पार्टी का एक विधायक चुनकर आया है. समाजवादी पार्टी विधायक राजेश शुक्ला कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लड़े थे. पहली बार के विधायक हैं, इस आधार पर कमलनाथ उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर रहने के लिए राजी भी कर सकते हैं. राजेश शुक्ला छतरपुर जिले की बीजाबर सीट से चुनकर आए हैं.
कमलनाथ के मंत्रिमंडल में बीएसपी विधायकों के शामिल होने का फैसला भी मायावती को ही करना है. लोकसभा चुनाव की दृष्टि से कमलनाथ संतुलन बनाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं. राज्य में कांग्रेस के पास अभी सिर्फ लोकसभा की तीन सीटें ही हैं. एक सीट छिंदवाड़ा से कमलनाथ खुद सांसद हैं.
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गुना-शिवपुरी से ज्योतिरादित्य सिंधिया और झाबुआ से कांतिलाल भूरिया सांसद हैं. सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र ग्वालियर-चंबल संभाग में लोकसभा की कुल चार सीटें हैं. भिंड, मुरैना, ग्वालियर और गुना. इस अंचल की 34 विधानसभा सीटों में से 26 सीटें कांग्रेस के खाते में आईं हैं. इस बड़ी जीत को कांग्रेस लोकसभा चुनाव तक कायम रखना चाहती है. इस अंचल में मंत्री पद के दावेदार भी अनेक हैं.
डॉ. गोविंद सिंह और केपी सिंह जैसे पुराने चेहरे हैं. ये परंपरागत तौर पर सिंधिया के विरोधी माने जाते हैं. सिंधिया समर्थक इमरती देवी और प्रद्युम्न तोमर हैं. लाखन सिंह यादव भी तीन बार के विधायक हैं. सिंधिया समर्थक राज्य के अन्य हिस्सों में भी हैं. इंदौर में प्रभुराम चौधरी, सागर में गोविंद राजपूत और रायसेन में प्रभुराम चौधरी प्रमुख हैं.
विंध्य में विकल्प की कमी और महाकोशल को तव्वजो
मुख्यमंत्री कमलनाथ का संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा महकोशल का हिस्सा है. इस अंचल में भी कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिली हैं. इस अंचल में आदिवासी सीटें भी हैं. कांग्रेस इन आदिवासी सीटों के हिसाब से भी मंत्रिमंडल में चेहरे तैयार किए जाएंगे. विंध्य के कद्दावर नेता अजय सिंह की हार से पूरी कांगे्रस पार्टी हतप्रभ है. विंध्य में कांग्रेस को अपेक्षित सफलता भी नहीं मिली है.
कमलनाथ के सामने एक विचार अजय सिंह को मंत्री बनाने का भी रहा है. इस विचार को अमलीजामा पहनाने की स्थिति में अजय सिंह को छह माह में विधायक भी निर्वाचित होना होगा. यह विकल्प भी सामने है कि उन्हें लोकसभा चुनाव के लिहाज से मंत्रिमंडल में रखा जाए और बाद में सतना लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया जाए.
गैर विधायकों को मंत्री बनाने में भी कई समस्याएं सामने हैं. सिंधिया खेमे के रामनिवास रावत की भी स्थिति अजय सिंह जैसी ही है. वे भी विजयपुर से विधानसभा चुनाव हारे हैं. प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. एक अन्य कार्यकारी अध्यक्ष सुरेन्द्र चौधरी भी चुनाव हार गए हैं. चौधरी कमलनाथ के करीबी हैं. पेंच इतने ज्यादा थे कि कमलनाथ के लिए इन्हें सुलझाना किसी चुनौती से कम नहीं रहा.
अजय सिंह को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाए जाने पर भी विचार किया गया. इस पर सिंधिया का एतराज है. वे खुद प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं. मालवा-निमाड में भी कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली है. इस अंचल में भी जातियों का समीकरण साधना चुनौती भरा काम है.
कमलनाथ मंत्रिमंडल में महिलाओं को मिल सकती है प्राथमिकता
सिंधिया खेमे की इमरती देवी मंत्रिमंडल में बीस प्रतिशत स्थान महिलाओं को देने की मांग कर रहीं है. विधानसभा अध्यक्ष बनने के लिए कोई वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक तैयार नहीं हो रहा. पंद्रह साल बाद सत्ता मिलने के कारण हर वरिष्ठ विधायक की दिलचस्पी मंत्री बनने में देखी गई. सुरेश पचौरी खेमे की डॉ. विजयलक्ष्मी साधो का नाम विधानसभा अध्यक्ष के लिए तेजी से उभरा.
वे अनुसूचित जाति वर्ग से हैं. पचौरी भी अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को मंत्री पद दिलाने की कोशिश करते नजर आए. आदिवासी संगठन जयस को छोड़कर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े हीरालाल अलावा भी मंत्रिमंडल में भागीदारी की मांग कर रहे हैं.
कमलनाथ पहली बार के विधायक मंत्री न बनाने का निर्णय पहले ही कर चुके हैं. इस कारण अलावा का दावा कमजोर पड़ता दिखा. अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग को भी इस मंत्रिमंडल के जरिए साधना है. सामान्य वर्ग की विभिन्न जातियों के भी समीकरण भी हैं.
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मंत्रिमंडल में अधिकतम 35 लोगों को ही जगह दी जा सकती है. कमलनाथ सिर्फ 22 लोगों को ही मंत्री बनाने का इरादा किए हुए हैं. वे लोकसभा चुनाव के बाद की भी राजनीति को ध्यान में रखे हुए हैं. विभागों का वितरण भी शपथ के साथ ही हो सकता है. राज्यपाल आनंदी बेन शपथ ग्रहण के तत्काली बाद अवकाश पर चली जाएंगीं.
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