पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हालत बेहद गंभीर बनी हुई है और उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया है. बीजेपी के 93 साल के दिग्गज नेता को किडनी, मूत्र नली में इनफेक्शन, पेशाब की मात्रा कम और सीने में जकड़न की शिकायत के बाद 11 जून को दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था.
एम्स की ओर से गुरुवार को जारी स्वास्थ्य बुलेटिन के मुताबिक, ‘पूर्व प्रधानमंत्री की हालत वैसी ही बनी हुई है. उनकी हालत नाजुक है और वह जीवन रक्षक प्रणाली पर हैं.’
अस्पताल ने बुधवार रात एक बयान में कहा, ‘दुर्भाग्यवश, उनकी हालत बिगड़ गई है. उनकी हालत गंभीर है और उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है.’
वाजयेपी की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि सियासी जिंदगी में वे जितने बड़े राजनेता हैं, उससे कहीं और बड़े वक्ता हैं. सड़क से लेकर संसद तक उनके भाषणों की मिसाल दी जाती है. क्या पक्ष और क्या विपक्ष, आज भी सभी दल राजनीति की सधी भाषा के लिए वाजपेयी का नाम इज्जत से लेते हैं. अब जब वे जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर हैं और लोग उनके लिए दुआएं मांग रहे हैं, ऐसे में जरूरी है उनके कुछ चुनिंदा भाषण सुने जाएं और तब और अब की राजनीतिक भाषा का मर्म समझा जाए.
1. साल 1996 में संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान दिया उनका भाषण नजराने के रूप में पेश किया जाता है. वाजपेयी ने कहा था, आप (विपक्ष) कुछ भी कर लें लेकिन हम उस जनादेश का सम्मान करेंगे और तब तक राष्ट्रहित में काम करते रहेंगे, जब तक उसे पूरा न कर लें.
2. 11 मई 1998 का पोकरण टेस्ट सबको याद होगा. एटमी टेस्ट होने के बाद कितनी शंकाएं जताई गईं कि भारत को अब विश्व बिरादरी का कोप झेलना पड़ेगा लेकिन वाजपेयी ने अपने बेबाक अंदाज में वक्तव्य जारी कर लगभग सभी शंकाओं को निर्मूल साबित कर दिया.
3. पोकरण टेस्ट को लेकर कांग्रेस ने तत्कालीन वाजपेयी सरकार पर जमकर हमला बोला. तब वाजपेयी ने कांग्रेस को याद दिलाया कि 1974 में भी ऐसा ही एटमी टेस्ट हुआ था, जिसका श्रेय इंदिरा गांधी को जाता है. वाजपेयी ने कहा, कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि तब वे जनसंघ के नेता थे और उन्होंने टेस्ट के लिए इंदिरा गांधी की काफी तारीफ की थी.
4. वाजपेयी का महज संसद में दिया भाषण ही यादगार नहीं है, बल्कि संसद के बाहर भी उनके कई भाषण हैं जिसकी अक्सर मिसाल दी जाती है. इनमें एक है 6 अप्रैल 1980 को मुंबई में आयोजित बीजेपी अधिवेशन में उनका संबोधन. तब वाजपेयी ने ताल ठोंक कर बताया था कि समाज में समस्या किसी और चीज की नहीं, बल्कि व्यवस्था की है.
5. भाषणों में वाजपेयी की सधी और शांत बात तो कई बार सुनी गई लेकिन एक मौका ऐसा भी आया जब संसद में वाजपेयी थोड़ा तिलमिला गए और तत्कालीन पीएम इंद्र कुमार गुजराल के समक्ष ऐसा संबोधन दिया कि सब बगलें झांकते रह गए. मामला बिहार का था और उस वक्त मुख्यमंत्री लालू यादव थे. विपक्ष की ओर से अपनी बात रखते हुए वाजपेयी ने बिहार में लालू यादव के 'कुशासन' की बखिया उधेड़ दी थी.
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