तीन राज्यों की जीत से उत्साहित कांग्रेसियों ने बिहार में लोकसभा के लिए 17 सीट पर दावा ठोंक दिया है. उनकी मांग राजद नेतृत्व को परेशान तो करेगी ही, दूसरी तरफ ‘महागठबंधन’ के गठन में बाधा बनने का काम भी कर सकती है. वैसे, राजद के एक वरिष्ठ नेता को विश्वास है कि कांग्रेसियों के दिमाग से जीत का नशा जल्द उतर जाएगा. अगर हैंगओवर नहीं उतरा तो 2009 चुनाव की तरह गठबंधन से आउट भी कर देंगे.’
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के पहले तक राजद नेतृत्व ये मान कर चल रहा था कि महागठबंधन में सीट को लेकर कोई चिकचिक की संभावना नहीं है. एक नेता ने बताया कि लगभग सब फाइनल हो गया था. तय फार्मूले के अनुसार राजद 20, कांग्रेस 8, रालोसपा 5, बसपा 2, मुकेश सहनी 2, माले, सीपीआई तथा शरद यादव क्रमशः एक एक सीट पर चुनाव लड़ना था. लेकिन जीत ने कांग्रेस को प्राण वायु देने के साथ ज्यादा महात्वाकांक्षी भी बना दिया है. सीट बंटवारे का मसला उलझता जा रहा है.
कांग्रेस पार्टी के पूर्व एआईसीसी सदस्य एवं विधायक भरत सिंह कहते हैं, ‘मैं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पत्र लिख रहा हूं कि जिस प्रकार एनडीए में नीतीश कुमार और बीजेपी ने लोकसभा की 17-17 सीट आपस में बांट ली हैं, उसी तर्ज पर बिहार में राजद और कांग्रेस को भी सीट का बंटवारा करना चाहिए. हिन्दी भाषी तीन राज्यों के चुनाव परिणाम ये साबित कर दिया है कि कांग्रेस आज भी नंबर वन राजनीतिक पार्टी है.’
सिंह की भावना का सपोर्ट करते हुए बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष मंजीत साहू ने कहा, ‘भारतीय युवा कांग्रेस कार्य समिति की तीन दिवसीय बैठक आज से दिल्ली में शुरू हो रही है. अंतिम दिन हमारे नेता राहुल गांधी भाग लेंगे. हमलोग इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएंगे कि बिहार में हम छोटे भाई की भूमिका में अपने को न रखें. आने वाले लोकसभा चुनाव में हम भी बराबर के साझीदार रहें.’ लेकिन कांग्रेस एमएलसी प्रेमचन्द्र मिश्रा का कहना है, 'इस प्रकार की कोई मांग मेरी जानकारी में पार्टी के फोरम पर नहीं उठ रही है.'
लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने वाले घटक दल के नेताओं का भी आंकलन हैं कि कांग्रेस की जीत बिहार में उनलोगों के बीच मिलन में संकट पैदा करेगी. वो मानते हैं कि ‘आठ सीट पर तो कदापि नहीं मानेंगे. कांग्रेसी नेताओं का दिमाग तबतक सातवें आसमान में रहेगा जबतक वो 2019 का महाभारत हार न जाएं.’
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बिहार की भूमि पर पिछले कुछ महीने से राजग के खिलाफ एक मजबूत महागठबंधन बिल्ड अप करने की मुहिम में कुल 14 राजनीतिक दलों के नेतागण लगे हैं. उपेन्द्र कुशवाहा का भी इस महागठबंधन से जुड़ना करीब करीब तय है. ऐसी स्थिति में महागठबंधन में घटक दलों की संख्या 15 होगी.
पंद्रह दलों के बीच आपस में तालमेल रखने के लिए एक समन्वय समिति का गठन किया गया था. ये समन्वय समिति महागठबंधन से अटैच्ड घटक दलों की जमीनी ताकत का पता करने के बाद तय करने वाली थी कि लोकसभा चुनाव में किसकी कितनी हिस्सेदारी बनती है. उसी हिसाब से टिकट का बंटवारा किया जाना था. बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में क्या पहले से बनी समन्वय समिति को कांग्रेस मानेगी? यह बड़ा अहम सवाल है.
समन्वय समिति के गठन के समय भी ये आशंका जाहिर की गई थी कि क्या ‘महागठबंधन’ में ‘नामांकन’ करा चुके विभिन्न दल के नेताओं को नियम के अंदर बांध कर रखा जा सकता है?
बिहार में ‘महागठबंधन’ की बुनियाद राजद की जमीन पर टिकी है. क्योंकि उसी के पास जनाधार है. राजद के राजकुमार तेजस्वी यादव ने साफ संकेत दिया था कि वो लोकसभा की 20 सीटों से कम पर लड़ने को तैयार नहीं हैं. तर्क है कि राजद 2014 चुनाव में कुल 27 सीटों पर चुनाव लड़ा था. 4 सीटों पर राजद की जीत हुई थी, 21 सीटों पर रनर अप थे और 2 सीटों पर पार्टी तीसरे नंबर पर थी जबकि कांग्रेस 12 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. दो जीती तथा एक सीट पर दूसरे नंबर पर रही. राजद नेता तंज कसते हैं, ‘17 सीट लड़ने की उनकी स्थिति ही नहीं है. कांग्रेस के नेता व्याकुल भारत न बनें. बिहार के धरातल पर रहकर बात करें नहीं तो तीन राज्यों की जीत चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात सााबित हो जाएगी.’
कांग्रेस के एक नेता ने बताया, ‘राजद को लोकसभा में कम तथा विधानसभा में ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ना चाहिए. तेजस्वी यादव को इस फार्मूले को मान लेना चाहिए क्योंकि हमलोग उनको बतौर सीएम प्रोजेक्ट करने वाले हैं. किसी भी कीमत पर हमलोग 17 से कम सीट पर नहीं मानेंगे.’
बहरहाल, महागठबंधन का अंग बनने के लिए कतार में खड़ी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने बाकायदा बयान जारी करके कहा है, ‘1962 से लेकर 1996 तक हमारी पार्टी बिहार में 4 से 8 सीटें जीतती रही है. 1991 में चार तथा 1996 में आठ सीटों पर भाकपा चुनाव जीती थी. पार्टी फिलहाल बेगूसराय, मधुबनी, खगड़िया, बांका, मोतीहारी, गया और जमुई लोकसभा सीटों पर तैयारी कर रही है.'
सीपीएम ने उजियारपुर लोकसभा सीट पर अपनी दावेदारी को पुख्ता बनाने के लिए अजय कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. सीपीएम पोलित ब्यूरो के एक नेता बताते हैं, ‘हमलोगों ने प्रचार भी करना शुरू कर दिया है. किसी भी कीमत पर पीछे हटने का सवाल नहीं हैं.' मजेदार बात यह है कि सीपीएम ने बेतिया लोकसभा सीट पर भी अपना दावा ठोंका है.
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सीपीआई लिबरेशन उर्फ माले लोकसभा की कुल 6 सीटों पर लड़ने की जोर शोर से तैयारी कर रही है. ये सीट हैं जहानाबाद, सीवान, आरा, पाटलीपुत्र, काराकाट और वाल्मीकि नगर. एकबार 1989 में माले आरा सीट जीती थी. माले के एक असरदार लीडर बताते हैं, ‘इस बार हमलोग आरा, सीवान तथा काराकाट से चुनाव लड़ेंगे’. बहुजन समाज पार्टी गोपालगंज, सासाराम तथा वाल्मीकि नगर मे उम्मीदवार खड़ा करने की चाहत रखती है तो वहीं जीतनराम मांझी की हम गया और सीवान सीट पर आंख गड़ाए हुए है.
शरद यादव के नेतृत्व में चल रही लोकतांत्रिक जनता दल ने मधेपुरा, गया, सीतामढ़ी, जमुई तथा हाजीपुर लोकसभा सीट के लिए अपना दावा पेश किया है तो वहीं नई नवेली वीआईपी मतलब विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष तथा सन आॅफ मल्लाह मुकेश सहनी ने तेजस्वी से मिलकर मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, दरभंगा तथा खगड़िया सीट की मांग की है.
समाजवादी पार्टी के राज्य चीफ तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेन्द्र प्रसाद यादव ने झुझारपुर सीट पर दावा ठोंका है.
हाल के दिनों पूर्व विधायक सतीश कुमार ने जनतांत्रिक लोकहित पार्टी का गठन किया है. वे मुंगेर तथा नालंदा सीट पर दावेदारी पेश कर रहे हैं. खबर है कि कांग्रेस सांसद रंजीता रंजन अपने पति राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के लिए भी महागठबंधन में जगह तलाश रही हैं.
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अगर ऐसा होता है तो पप्पू यादव भी दो-तीन सीट अपना दावा पेश कर सकते हैं. तारिक अनवर के कांग्रेस में जाने बाद भी एनसीपी कहती है कि उसे अपनी पहचान कायम रखने के लिए एक सीट दान स्वरूप दी जाए.रालोसपा चीफ उपेन्द्र कुशवाहा भी महागठबंधन का हिस्सा बनेंगे. रालेसपा की तरफ से बिहार में 5 तथा झारखंड में एक सीट की मांग की गई है. आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी ने भी एक सीट की मांग की है.
बकौल एक राजद नेता ‘हमे किसी से परेशानी नहीं है. सारे घटक दल के नेताओं को मना लेंगे. लेकिन जीत से बौराई कांग्रेस के नेताओं को मनाना आसमान से तारे तोड़ कर लाने के बराबर है. अगर जीत का हैंगओवर इसी तरह बरकरार रहा तो हमलोग कांग्रेस को महागठबंधन से ड्रॉप भी कर सकते हैं जैसा हमने 2009 लोकसभा चुनाव में किया था.’
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