हार पर हार देख रही कांग्रेस को आखिर वो जीत मिल ही गई जिसका लंबे वक्त से इंतजार था. कांग्रेस दफ्तर के बाहर दिल्ली से लेकर भोपाल तक, जयपुर से लेकर रायपुर तक ढोल-नगाड़े के साथ जश्न का सिलसिला चल रहा है, लेकिन, बीजेपी के दफ्तर के बाहर लंबे वक्त बाद सूनापन और शांति हार की कहानी बयां कर रही है. इस चुप्पी में हार को लेकर वो निराशा है जो बीजेपी के दिल्ली में दीनदयाल उपाध्याय मार्ग के नए दफ्तर पर दिख रही है.
तीन से चार महीने बाद लोकसभा की लड़ाई की तैयारी हो रही है. पांच साल के कार्यकाल का हिसाब देने के लिए मोदी सरकार तैयारी में है, इस उम्मीद में कि ‘ईमानदारी’ और ‘पारदर्शिता’ का हवाला देकर जनता के बीच में जाएंगे तो फिर से ‘ईमानदार’ और ‘कामदार’ सरकार के नाम पर जनादेश मिलेगा, लेकिन, बड़ी लड़ाई के पहले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस से तीन राज्यों में मिली हार ने बीजेपी के ‘अतिउत्साह’ पर विराम लगा दिया है.
बीजेपी प्रवक्ता संभलकर बोल रहे हैं, उनकी तरफ से इस हार को राज्यों में लंबे वक्त से आ रही एंटीइंकंबेंसी फैक्टर को जिम्मेदार ठहाराया जा रहा है, लेकिन, उन्हें भी पता है यह हार पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर विपरीत असर डालने वाली हो सकती है.
राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार और मध्यप्रदेश में भी हार के करीब खड़ी बीजेपी के हाथों से सत्ता सरक गई है, लेकिन, बीजेपी उस हार को पचा नहीं पा रही है क्योंकि यह हार उस कांग्रेस के हाथों हुई है, जिस कांग्रेस का सफाया करने के लिए बीजेपी ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था. मोदी सरकार के सत्ता में आते ही बीजेपी की तरफ से यह नारा दिया जाने लगा, क्योंकि दस साल से केंद्र की सत्ता में रहने के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.
इसके बाद महाराष्ट्र से लेकर हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, गोवा, गुजरात समेत कई राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच आमने-सामने की लड़ाई में बीजेपी जीतकर सरकार बनाती रही और कांग्रेस मुंह ताकती रह गई. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो पहले से ही बीजेपी सरकारें थीं, जिसमें राजस्थान में बीजेपी ने 2013 में कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी. ये सभी बातें बीजेपी की तरफ से कांग्रेस पर हमला करने और कांग्रेस मुक्त भारत के नारे की चर्चा करने के लिए काफी थीं.
हालांकि, इस दौरान बीजेपी को कई जगहों पर हार भी मिली थी, लेकिन, उन जगहों में सीधी लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस की नहीं रही. मसलन, बिहार में जब जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन ने बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए को हराया था, तब भी कांग्रेस का रोल इसमें काफी छोटा था. पंजाब में भी कांग्रेस ने अकाली-बीजेपी गठबंधन को हराया था, उस वक्त भी यह हार अकाली दल की हार मानी गई. दिल्ली में भी बीजेपी की हार हुई, लेकिन, इस दौरान आप ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों का सुपड़ा साफ कर दिया था. इसी साल मई में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कर्नाटक में बीजेपी सरकार नहीं बना पाई थी, लेकिन, जेडीएस-कांग्रेस के गठबंधन ने सरकार बना ली थी.
लेकिन, पिछले पांच सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है,जब बीजेपी और कांग्रेस की आमने-सामने की लड़ाई में कांग्रेस ने बाजी मार ली है. बीजेपी को राजस्थान में हार मिली है,छत्तीसगढ़ में एकतरफा हार मिली है, जबकि मध्यप्रदेश में कांटे की टक्कर में भी उसे हार का सामना करना पड़ा है.
अब नए उत्साह के साथ कांग्रेस और बाकी विपक्षी दल अगले लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरेंगे, क्योंकि अब हिंदी भाषी राज्य में कांग्रेस ने बीजेपी को मात दी है, जो बीजेपी का लंबे वक्त से गढ़ रहा है. कांग्रेस की हिंदी भाषी क्षेत्र में जीत को जानकार बीजेपी की नाकामियों के चलते जीत बता रहे हैं. उनका मानना है कि सत्ता में रहकर इन राज्यों में कांग्रेस के अलावा जनता के पास बेहतर कोई विकल्प नहीं है.
वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडे फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में कहते हैं, ‘इस वक्त मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जनता के सामने बीजेपी के सामने विकल्प के तौर पर सिर्फ कांग्रेस ही है, लिहाजा राज्य की जनता के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा. जनता को मजबूरी में कांग्रेस को वोट देना पड़ा है.’ संजीव पांडे का मानना है, ‘जिस तरह से कांग्रेस की यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान एंटी हिंदू की छवि बन गई थी या बना दी गई थी, उसी तरह बीजेपी की छवि एंटी फार्मर की हो गई है. किसानों के भीतर सरकार के प्रति नाराजगी और गुस्सा था जो वोटिंग के दौरान निकलकर सामने आया है.’
हालांकि, बीजेपी मध्यप्रदेश और राजस्थान में हार के अंतर को लेकर थोड़ी राहत जरूर महसूस कर रही है. हार के बावजूद बीजेपी के रणनीतिकारों को लग रहा है कि राजस्थान में पूरी तरह से सफाए की बात कही जा रही थी. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ गुस्सा इस कदर था कि लोगों की तरफ से नारा लगाया जा रहा था, ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं.’ लेकिन, आखिरी हफ्ते में संघ और संगठन की सक्रियता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी बढ़ाकर एकतरफा हार को बीजेपी ने टाल दिया. मध्यप्रदेश में भी पंद्रह सालों की एंटीइंबेंसी के बाद भी बीजेपी एकतरफा नहीं हारी है, लिहाजा पार्टी को उम्मीद है कि हार के बावजूद एकतरफा हार न होना लोकसभा चुनाव में उसकी संभावनाओं को जिंदा रखने वाला है.
अब बीजेपी को लोकसभा चुनाव के लिए नई रणनीति के तहत मैदान में जाना है, क्योंकि इन तीनों राज्यों में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया कर दिया था. इस बार ऐसा कर पाना मुश्किल होगा. लेकिन, बीजेपी की रणनीति में विधानसभा चुनाव को प्रदेश सरकार की हार के तौर पर पेश किया जा रहा है. बीजेपी का तर्क है कि जब लोकसभा चुनाव में पार्टी मैदान में होगी, तो तस्वीर दूसरी होगी, क्योंकि, उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और उनका काम सामने होगा.
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