पांच राज्यों, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलंगाना और राजस्थान के परिणाम आने वाले हैं. राजनीतिक दलों के नेता अभी से तैयारी में लग गए हैं. कांग्रेस और उसके समर्थक बहुत मुश्किल से उत्साह पर नियंत्रण रख पा रहे हैं. इसके लिए उनके पास वजह है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ मंदिरों में जाने के बाद उनकी प्रार्थना का फल नजर आने लगा है. हालांकि इसी दौरान वह अहंकार छिपाने में अक्षम हैं. वह ऐसा करने की कोशिश भी नहीं कर रहे हैं.
यह कांग्रेस नेता की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट हो गया जब एक वह आगामी संभावित बदलाव का हवाला देते हुए अधिकारियों को चेतावनी दे रहे थे. इससे यह संदेश प्रतीत हो रहा है कि - 'कई प्रधानमंत्री आएंगे, कई प्रधानमंत्री जाएंगे लेकिन कांग्रेस हमेशा मौजूद रहेगी.'
कांग्रेस का यह आत्मविश्वास उन पार्टी नेताओं और प्रवक्ताओं की ओर से भी दिख रहा है जो सरकार और बीजेपी की हर कार्रवाई और बयान को राज्य के चुनावों में संभावित हार से जोड़ रहे हैं. टीवी पर भी कांग्रेस के प्रवक्ताओं का हावभाव बदल गया है. प्रधानमंत्री पर राहुल गांधी का ट्वीट भी ज्यादा मुखर दिखा.
मध्य प्रदेश में पहले ही जीत का ऐलान
इतना ही नहीं कमलनाथ तो नतीजे पर भी पहुंच गए और जीत का ऐलान कर दिया. उनका नाम कांग्रेस की सरकार आने पर संभावित मंत्रियों के नाम से जुड़े शुभकामनाओं वाले एक पोस्टर पर भी दिखा. दूसरी ओर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा ने भी एनडीए छोड़ दिया. यह परिदृश्य साल 1977 के जैसा दिख रहा है जब राजनीतिक नेता और दल कांग्रेस और इंदिरा के खिलाफ जा रहे थे.
ऐसा माना जा रहा है कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी के पास कोई प्लान बी नहीं है. बीजेपी के समर्थकों को उम्मीद है कि मोदी मैजिक काम करेगा और पार्टी की नैया पार हो जाएगी. गुजरात और कर्नाटक के चुनाव के बाद मोदी और शाह यह निश्चित तौर पर जान गए होंगे कि मोदी के करिश्मा पर आधारित चुनाव की रणनीति अब काम नहीं कर रही है.
पीएम मोदी और शाह के लिए बहुत कुछ दांव पर
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मोदी ब्रांड के खिलाफ एंटी-इंकम्बेन्सी थी. मोदी और शाह ने चाहा होगा कि इन राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ हो जाएंगे. हालांकि तकनीकी समस्याओं के साथ-साथ राजनीतिक परिस्थितियों ने मोदी और शाह को समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने से रोक दिया होगा.
संभावित परिदृश्यों को ध्यान में रखें तो ऐसा नहीं लगता कि मोदी और शाह बिना किसी रणनीति के मैदान में गए होंगे. मोदी और शाह के लिए बहुत कुछ दांव पर है. यही बात विपक्ष के लिए भी लागू होती है. ऐसे में मंगलवार को आने वाले परिणाम किसी ओर जाएंगे यह कोई मुद्दा नहीं है बल्कि लोकसभा चुनाव 2019 के पहले के चार महीनों में हर मोड़ पर कोई न कोई चौंकाने वाली चीज होगी.
(न्यूज 18 के लिए संदीप घोष की रिपोर्ट)
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