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एनआरसी ड्राफ्ट: विकीलीक्स के खुलासे से क्या कांग्रेस बैकफुट पर आएगी?

16 फरवरी 2006 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने असम के मई में होनेवाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रचार के दौरान मुसलमानों से पार्टी को चुनाव में वोट देने की अपील करते हुए कहा कि उनकी सरकार असम में रहने वाले अवैध अप्रवासियों को वापस बांग्लादेश भेजने वाले कानून को बदल सकती है.

Updated On: Aug 03, 2018 07:31 AM IST

Yatish Yadav

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एनआरसी ड्राफ्ट: विकीलीक्स के खुलासे से क्या कांग्रेस बैकफुट पर आएगी?

16 फरवरी 2006 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने असम के मई में होनेवाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के प्रचार के दौरान मुसलमानों से पार्टी को चुनाव में वोट देने की अपील करते हुए कहा कि उनकी सरकार असम में रहने वाले अवैध अप्रवासियों को वापस बांग्लादेश भेजने वाले कानून को बदल सकती है. इसके लिए सोनिया ने फॉरेनर्स एक्ट में बदलाव की बात कही थी. इस बात का दावा उस समय कोलकाता में रहे यूएस कौंसुलेट के एक अधिकारी ने किया था. अधिकारी के इस केबल का खुलासा विकीलीक्स ने किया था.

केबल में कहा गया था कि कांग्रेस पार्टी और उसके परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक के बीच 2005 से दरार पड़नी शुरू हो गयी थी. दरअसल उस समय सुप्रीम कोर्ट ने अवैध अप्रवासियों से जुड़े आईएमडीटी कानून को असंवैधानिक करार दिया था. इस केबल में कहा गया था कि इस कानून को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था. इस कानून के मुताबिक अवैध अप्रवासियों की पहचान करना, उनको खोजना और उन्हें वापस उनके देश डिपोर्ट करना एक जटिल प्रक्रिया थी. इसके अलावा ये कानून 1971 के पहले आए अप्रवासियों को भी सुरक्षा प्रदान करता था.

केबल में लिखा था, 'कांग्रेस ने मुसलमानों को लुभाने के लिए फॉरेनर्स एक्ट को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी और अपने हालिया दौरे में सोनिया गांधी ने तो इस कानून में बदलाव का भी प्रस्ताव दे दिया था. राज्य में मुसलमानों का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि राज्य में बांग्लादेशी अप्रवासियों के आने से मुसलमानों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है और अभी कांग्रेस की 13 सीटों पर मुसलमानों का काफी प्रभाव है. परंपरागत रुप से कांग्रेस मुसलमानों के पसंद की पार्टी रही है क्योंकि उसने बांग्लादेश के अवैध अप्रवासियों को वापस भेजे जाने में कोई रुचि नहीं दिखाई है.'

अब जबकि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) की ड्राफ्ट में लगभग चालीस लाख लोगों के अवैध अप्रवासी होने की बात सामने आई है तो कांग्रेस को इस पर कोई स्पष्ट जवाब देते नहीं बन रहा. असम से सांसद रहे किरिप चालिहा ने कहा कि उन्हें याद नहीं है कि 2006 में सोनिया गांधी ने इस तरह का कुछ कहा था, हां उन्होंने एनआरसी का समर्थन जरूर किया था. चालिहा का कहना था कि राज्य में अवैध अप्रवासियों के लगातार बढ़ने से राज्य की डेमोग्राफी ही बदल गयी है.

उनका कहना था, 'सवाल मुस्लिम और गैर मुस्लिम का नहीं बल्कि घुसपैठ से देश की आंतरिक सुरक्षा को भी खतरा है. ममता बनर्जी जैसी नेता मौके का फायदा उठा कर अपने वोट बैंक को बचाने की जुगाड़ में जुट गयी हैं. लेकिन असम कांग्रेस ने अप्रवासियों वाले मुद्दे को सही तरीके से हैंडल नहीं किया, ऐसे में राज्य से कांग्रेस के सफाये की ये महत्वपूर्ण वजह बन गयी. एनआरसी इस बात को साबित करता है कि अवैध अप्रवासियों ने राज्य में जबरदस्त तरीके से घुसपैठ की थी ऐसे में उनके खिलाफ कानून के हिसाब से सही कार्रवाई करनी चाहिए.'

WikiLeaks founder Julian Assange is seen on the balcony of the Ecuadorian Embassy in London

वैसे चालिहा का नाम खुद विकीलीक्स के 2005 के एक केबल में है. 2005 में जब सुप्रीम कोर्ट ने आईएमडीटी एक्ट को असंवैधानिक बताया था तो उस समय चालिहा ने अपने विचार व्यक्त किए थे. केबल के मुताबिक उस समय भी चालिहा ने अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया था. हालांकि यूएस के अधिकारियों का मानना था कि कांग्रेस सरकार, जिसने की 1983 में आईएमडीटी एक्ट को पास किया था वो मुसलमान बांग्लादेशी शरणार्थियों को अपना वोटबैंक मानते हुए उनके खिलाफ नरमी बरतते हुए राज्य की डेमोग्राफी में हो रहे बदलाव के बावजूद चुप्पी साध कर बैठी थी.

हालांकि कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से आईएमडीटी कानून का समर्थन किया था लेकिन उस समय असम से पार्टी के सांसद रहे चालिहा ने कोर्ट के द्वारा उस कानून को रद्द करने को अधिकतर लोगों को राहत देने वाला बताया था. इस बात को मानते हुए कि सरकार और उससे जुड़ी हर मशीनरी अप्रवासियों के पक्ष में बने आईएमडीटी कानून के पक्ष में थी, चालिहा का कहना था कि देश के शीर्ष कोर्ट का इस कानून के खिलाफ निर्णय देना असम के लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण था. इससे यहां के लोगों में ये संदेश जा रहा था कि सरकार राज्य में रह रहे अवैध अप्रवासियों को वैध घोषित नहीं करेगी.

नई दिल्ली के गोपनीय विकीलीक्स के केबल में लिखा हुआ था कि हालांकि कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से आईएमडीटी कानून को रद्द घोषित किए जाने का विरोध किया था लेकिन चालिहा ने अकेले में व्यक्तिगत रूप से स्वीकार किया था कि ये कानून देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है और सरकार घुसपैठ को देखने के बावजूद आंखें बंद करके नहीं रह सकती.

घुसपैठियों की पहचान करना और उसे देश से बाहर करने वाली विशाल कार्रवाई अभी चल ही रही है और इसके जल्द समाप्त होने की कोई गुंजाईश भी नहीं है, लेकिन इस प्रक्रिया को लेकर कुछ मूलभूत सवाल हैं जिसका जवाब फिलहाल न तो सरकारी अधिकारियों के पास है और न ही राज्य के चलिहा जैसे नेताओं के पास. अभी एनआरसी के पहले चरण के जो आंकड़े सामने आए हैं उसके मुताबिक अवैध अप्रवासियों की संख्या 40 लाख है, ऐसे में केंद्र और राज्य सरकार इनका क्या करेगी क्योंकि बांग्लादेश तो इन्हें अपनाने से रहा.

क्या सरकार की ये योजना है कि इन 40 लाख लोगों का नाम नागरिकता के रजिस्टर से हटाने के बाद इनको खाना और कानूनी सुविधाएं जैसी निहायत जरुरत की चीजों से भी महरूम कर दिया जाएगा? क्या उन्हें राशन कार्ड मिलेगा? क्या उन्हें रोजगार प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा? उन संपत्तियों का क्या होगा जो अभी उनके अधिकार में है? अवैध अप्रवासी अचानक से आकर यहां बस नहीं गए, उन्हें बसने दिया गया, लेकिन उन्हें बसने की अनुमति किसने दी?

सरकारी अधिकारी डिपोर्टेशन के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं और कह रहे हैं कि अभी केवल एनआरसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी हुई है और इससे संबंधित कार्रवाई अभी चल ही रही है, ऐसे में किसी भी तरह की प्रक्रिया अपनाने की बात तभी की जा सकती है जब अंतिम रिपोर्ट का प्रकाशन हो जाए. चालिहा भी डिपोर्टेशन को लेकर निश्चित रुप से कुछ कहने कि स्थिति में नहीं हैं लेकिन वो कहते हैं कि रिकार्ड से नाम हटाना एक व्यवहारिक विकल्प हो सकता है.

किरिप चालिहा

किरिप चालिहा

चालिहा भी पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकारों को दोष देते हुए कहते हैं कि पार्टी को मुसलमानों की हितैषी के तौर पर देखे जाने से पार्टी को राज्य में काफी नुकसान हुआ क्योंकि पार्टी का जमीनी सच्चाई से नाता टूट चुका था. चालिहा का कहना है कि यहां तक असमिया मुसलमान भी अवैध अप्रवासी बांग्लादेशी मुसलमानों से तंग आ गए थे और वो उनका विरोध कर रहे थे. लेकिन पार्टी नेतृत्व इस गुस्से को भांपने में असफल रहा.

चालिहा ने कहा, 'असमिया मुसलमान एनआरसी की कवायद से खुश हैं और अवैध अप्रवासियों को राज्य से भगाने के लिए वो बीजेपी को वोट देना भी पसंद कर सकते हैं. राज्य में इस बात की अफवाहें भी फैलाई जा रही है कि अवैध अप्रवासियों की पहचान में बीजेपी-आरएसएस विभाजनकारी राजनीति को अंजाम दे रही है, लेकिन इस तरह की अफवाहें उल्टे उनका आधार मजबूत कर रही हैं. ममता बनर्जी जैसे नेताओं को अपना ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा की ओर भी लगाना चाहिए और उन्हें तुष्टीकरण की राजनीति से बाज आना चाहिए.'

बंगाल की समस्या

हालांकि ममता बनर्जी इस मुद्दे को तूल देने में जीजान से जुटी हुई हैं उनके खुद के राज्य पश्चिम बंगाल का हाल भी कुछ इसी तरह का है. विकीलिक्स के दिसंबर 2005 के एक केबल से वहां का हाल पता चलता है. उस समय वहां पर सीपीएम की सरकार थी और ममता की पार्टी उस समय विपक्ष में थी. केबल में भारतीय गुप्तचर और सुरक्षा ऐजेंसियों के हवाले से बताया गया था कि राज्य सरकार अवैध अप्रवासियों को बचाने का काम कर रही है.

केबल के अनुसार. देश की सुरक्षा एजेंसियां बांग्लादेश की बिगड़ती स्थिति से और उसके पश्चिम बंगाल पर पड़ते दुष्प्रभाव से परेशान थी. लेकिन इस मुद्दे पर वहां के नेता सार्वजनिक रुप से कुछ भी बोलने से कतरा रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं इससे उनका मुस्लिम वोटबैंक नाराज नहीं हो जाए. हालांकि विकीलीक्स की केबल में विपक्षी दलों के नाम का जिक्र नहीं है लेकिन इतना जरुर बताया गया है कि वो लोग राज्य में कम्युनिस्ट सरकार की इससे जुड़ी नीतियों का विरोध कर रहे हैं. विकीलिक्स की केबल में दर्ज है, 'विपक्षी दलों ने राज्य की लेफ्ट फ्रंट सरकार पर आरोप लगाया है कि वो अप्रवासियों को तुरंत नागरिकता देकर वोटिंग का अधिकार दे रही है जिससे कि उन्हें मुस्लिम समुदाय से समर्थन और मुस्लिम वोटों की बढ़त मिल जाए.'

Mamata Banerjee meets Sonia Gandhi

13 साल के बाद परिस्थितियां बदल गयी हैं और अब ममता विपक्ष की जगह सत्ता में हैं, लेकिन उनका अब स्टैंड बदल गया है. सरकार में बैठे एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार ममता बनर्जी का ये स्टैंड खुद उनके लिए उनके ही राज्य में घातक साबित होगा. असम के एनआरसी पर दिए गए ममता के हालिया बयानों को देखते हुए उस अधिकारी का कहना था कि राजनीतिक दल लोगों के अंदर डर पैदा करने में मास्टर होते हैं और ममता बनर्जी भी अपने वोटबैंक को लुभाने और तुष्टीकरण करने के लिए कुछ इसी तरह का काम कर रही है. उनके अनुसार, 'डर फैला कर हो सकता है कि वोटबैंक मजूबत हो जाता हो या इससे चुनाव जीतने में भी मदद मिल जाती हो लेकिन इससे नुकसान देश का होता है और खास करके उस राज्य का जो इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होता है.'

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