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मजीठिया से माफी केजरीवाल की सियासी मुकदमेबाजी से बचने की एक रणनीति है

मानहानि के मुकदमों का मकसद ये होता है कि ताकतवर लोगों के खिलाफ बोलने वालों को तंग किया जा सके क्योंकि मुकदमे की वजह से उन्हें बार-बार अलग-अलग शहरों के सफर पर जाना पड़ेगा

Updated On: Mar 17, 2018 09:34 PM IST

Atishi Marlena

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मजीठिया से माफी केजरीवाल की सियासी मुकदमेबाजी से बचने की एक रणनीति है

जब द वायर ने अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी के बारे में खबर छापी कि कैसे उनकी कंपनी का टर्नओवर अचानक ही 16 हजार प्रतिशत हो गया, तो इसके कुछ दिनों के भीतर ही उन्हें अहमदाबाद की अदालत के सामने हाजिर होना पड़ा. 100 करोड़ रुपए के मानहानि के इस मुकदमे के लिए उन्हें अहमदाबाद के अब तक कई चक्कर काटने पड़ चुके होंगे. वकीलों के साथ काफी वक्त लगाना पड़ा होगा. मुकदमा लड़ने के लिए सीनियर वकीलों को मोटी फीस देनी पड़ी होगी.

यानी इस मुकदमे से तीन मकसद पूरे हुए होंगे (ये बात और है कि ये मुकदमा कितना लंबा चलेगा, कोई कह नहीं सकता). पहला तो ये कि इस मुकदमे को लड़ने के लिए 'द वायर' को मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है. दूसरा ये कि कई सीनियर पत्रकारों और संपादकों को अपना कीमती वक्त वकीलों के साथ गुजारना पड़ा होगा. और चूंकि 'द वायर' को इन दोनों चीजों पर अपनी ताकत लगानी पड़ी, इसलिए भविष्य में वो ताकतवर और पहुंच वाले लोगों के खिलाफ खबरें करने से परहेज करेंगे.

क्या है मानहानि के मुकदमों का असली मकसद

कुल मिलाकर ये कहें कि मानहानि के मुकदमे किसी को धमकाने का वैधानिक-न्यायिक जरिया हैं, तो गलत नहीं होगा. जब भी किसी ताकतवर शख्स के खिलाफ कोई बात कही जाती है, जिससे वो परेशानी में पड़ें, तो ऐसे लोग अपने खिलाफ बोलने वालों पर आपराधिक मानहानि का केस कर देते हैं. अक्सर ये केस देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित अदालतों में दायर किए जाते हैं.

इसका मकसद ये होता है कि ताकतवर लोगों के खिलाफ बोलने वालों को तंग किया जा सके क्योंकि मुकदमे की वजह से उन्हें बार-बार अलग-अलग शहरों के सफर पर जाना पड़ेगा. अब इन मुकदमों का आखिरी फैसला जो भी हो, मगर इन्हें लड़ना बहुत बड़ी चुनौती है. खास तौर से आम लोगों और छोटे संस्थानों के लिए तो ऐसे मुकदमे बड़ी मुसीबत होते हैं, क्योंकि उनके पास संसाधनों की भारी कमी होती है.

arvind kejriwal

ठीक इसी तरह की डराने-धमकाने वाली मुहिम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उस वक्त से छेड़ दी गई थी, जब उन्होंने इस देश पर राज करने वाले खुदगर्ज लोगों के खिलाफ बोलना शुरू किया. ये बात खुली किताब की तरह है कि जब अरविंद केजरीवाल ने 2012 में रॉबर्ट वाड्रा का पर्दाफाश करने के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, तो दिल्ली में बहुत से नेताओं और पत्रकारों के पास वाड्रा से जुड़े दस्तावेज थे. लेकिन किसी ने भी मुंह खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई थी. जब जनवरी 2013 में अरविंद केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक स्विस बैंक के अकाउंट नंबर का जिक्र करते हुए बताया कि ये अंबानी का है, तो उन सभी टीवी चैनलों पर आपराधिक मानहानि का केस कर दिया गया, जिन्होंने ये प्रेस कॉन्फ्रेंस दिखाई थी. शायद ये कानूनी चेतावनी ही बड़ी वजह थी कि टीवी चैनलों से इस खबर पर आगे रिपोर्टिंग नहीं की.

20 से अधिक मुकदमों में फंसे हैं केजरीवाल

आज की तारीख में अरविंद केजरीवाल मानहानि के 20 से ज्यादा मुकदमों का सामना कर रहे हैं. ये मुकदमे दिल्ली से लेकर बैंगलोर तक और मुंबई से लेकर गुवाहाटी तक चल रहे हैं. मुश्किल सवाल पूछने वालों को मानहानि के मुकदमों के जरिए किस तरह परेशान किया जाता है, इसकी सबसे अच्छी मिसाल असम के बीजेपी नेता ने सूर्य रोंघपुर का दायर किया हुआ मुकदमा है. उन्होंने अरविंद केजरीवाल पर इसलिए मानहानि का केस कर दिया क्योंकि अरविंद ने नरेंद्र मोदी की डिग्री पर सवाल उठाया था. अब इस मुकदमे के लिए हर बार गुवाहाटी जाने का मतलब ये है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के 24 घंटे बर्बाद होते हैं.

Arvind_Kejriwal

तो, बिक्रमजीत मजीठिया से माफी मांगकर और ये संकेत देकर कि वो मानहानि के बाकी मामलों में यही करेंगे, आखिर अरविंद केजरीवाल ने क्या संकेत दिया है? यही कि अब वो भी विरोध के सुर नहीं निकालेंगे. क्या ये कदम उठाकर केजरीवाल भी मौजूदा सियासत का हिस्सा बन गए हैं? या फिर ये फैसला लेकर केजरीवाल ये संदेश देना चाहते हैं कि वो अब मुकदमेबाजी की दादागीरी के आगे नहीं झुकेंगे. और न ही वो ऐसी सियासी मुकदमेबाजी में अपना वक्त, पैसा और ध्यान लगाएंगे.

हालांकि इस बात का फैसला हर राजनीतिक समीक्षक को खुद ही करना है. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने मन बना लिया है कि वो फिलहाल मानहानि की थकाऊ मुकदमेबाजी के झांसे में नहीं आएंगे. वो ये लड़ाई फिर कभी लड़ लेंगे. अरविंद केजरीवाल के इस फैसले से सबसे ज्यादा वही लोग परेशान होंगे, जो केजरीवाल से सियासी मुकाबला करने के बजाए उन्हें मुकदमेबाजी में फंसाए रखना चाहते हैं.

(लेखिका आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं और दिल्ली सरकार की सलाहकार हैं. लेख में लेखिका की निजी राय है)

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