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केजरीवाल को केंद्र के साथ तालमेल बिठाकर काम करना होगा: शीला दीक्षित

दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने फ़र्स्टपोस्ट को दिए इंटरव्यू में उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री केजरीवाल अब केंद्र के साथ तालमेल बिठाकर जनहित के कार्यों पर ध्यान देंगे.

Updated On: Jul 05, 2018 07:22 AM IST

Aparna Dwivedi

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केजरीवाल को केंद्र के साथ तालमेल बिठाकर काम करना होगा: शीला दीक्षित

साल 1998 में सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण को लेकर मामला अदालत में था. सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में साफ हवा लाने के लिए डीजल की जगह सार्वजनिक वाहनों में सिर्फ सीएनजी गाड़ियों को चलाने का निर्देश दिया था, यानी दिल्ली की बस, टैक्सी और ऑटो सबको सीएनजी में बदलने की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार पर थी. 1998 में दिल्ली में चुनाव हुए और कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने तीन दिसंबर 1998 को कार्यभार संभाला.

चूंकि दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन का जिम्मा दिल्ली सरकार का था ये उसकी जिम्मेदारी थी दिल्ली के लोगों को साफ हवा देते हुए बिना किसी परेशानी के डीजल वाहनों की जगह सीएनजी वाहन लेकर आए. चूंकि इसमें आधे मामले केन्द्र के तहत आते थे उस समय की कांग्रेस सरकार की मुख्यमंत्री शीला को लगातार केन्द्र में बीजेपी की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से बातचीत करनी होती थी.

दिल्ली की सरकार पर तिहरा दबाव था, एक तरफ सुप्रीम कोर्ट इसे जल्द से जल्द लागू करने पर जोर दे रहा था, दूसरा ऐसे वाहनों का उत्पादन ही कम था तो सरकार पर ये दबाव था कि ऐसे वाहनों का जल्द से जल्द इंतजाम करे और साथ ही दिल्ली के लोगों का दबाव था कि उन्हें पूरी सुविधा मिले. इस फैसले को पूरी तरह से लागू करने में तीन साल से ज्यादा का समय लगा लेकिन उस दौरान किसी ने भी उस समय के राज्यपाल विजय कपूर और शीला दीक्षित के बीच में किसी तरह का विवाद उत्पन्न नहीं हुआ.

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ऐसा नहीं था कि इस दौरान मतभेद नहीं हुए लेकिन शीला दीक्षित का कहना था, 'मतभेद होना तो सामान्य है, हमारे काम करने का तरीका और केन्द्र के काम करने के तरीका अलग होता था लेकिन हमने हमेशा दिल्ली के हितों का ध्यान रखा , और अपने मतभेदों को बातचीत के द्वारा हल करते थे. हम पहले उपराज्यपाल को जानकारी देते थे और उनकी राय को ध्यान में रखकर आपसी बातचीत कर समस्या का हल करते थे.'

Sheila Dixit

शीला दीक्षित (फोटो: रॉयटर्स)

दिल्ली में सरकार और उपराज्यपाल के बीच काम करने का एक तरीका शीला दीक्षित की तरह था लेकिन जब से दिल्ली की सरकार में आम आदमी पार्टी की सरकार आई तब से दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और दिल्ली के उप राज्यपाल के बीच में रिश्ते तल्ख रहे. दिल्ली की आप सरकार ने आरोप लगाया कि उपराज्यपाल उनके काम में दखल देते हैं. और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए. सुप्रीम कोर्ट ने जहां एक तरफ दिल्ली की चुनी हुई सरकार को तरजीह देते हुए कहा कि उपराज्यपाल का काम अड़ंगा लगाना नहीं है. दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और उस सरकार की कैबिनेट के फैसले को पूरा सम्मान दें.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार को जनता ने चुना है और चुनी हुई सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है, उपराज्यपाल को दिल्ली कैबिनेट की सलाह माननी चाहिए और रोजमर्रा के कामों में अड़ंगा ना डालें. उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार मिलकर जनता की भलाई के लिए काम करें.

हालांकि पूर्ण राज्य के दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मामला टाला और कहा कि दिल्ली की स्थिति बाकी राज्यों से बिलकुल अलग है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के संवाधानिके ढांचे में भी परिवर्तन नहीं किया और जमीन, पुलिस और कानून व्यवस्था के मामले उपराज्यपाल के तहत ही छोड़े.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं, इसलिए उन्हें सभी फैसलों की जानकारी दी जानी चाहिए. उपराज्यपाल असामान्य परिस्थितियों में या मतभिन्नता की स्थिति में मुद्दा राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं लेकिन फैसलों को रोके नहीं रह सकते हैं.

हालांकि कानूनविदों का कहना है कि दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है. अतिरिक्त एटॉर्नी जनरल मनिंदर सिंह का मानना है कि संविधान की धारा 239 (एए) के मुताबिक दिल्ली में उपराज्यपाल के पास ये अधिकार है कि वो चुनी हुई सरकार के फैसले से असहमत हो सकते हैं. इसलिए चुनी हुई सरकार को अपने फैसले और उसके कार्यान्वन से पहले उपराज्यपाल को सूचित करना जरूरी हैं. अगर उपराज्यपाल असहमत हैं तो वो उसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई बदलाव नहीं किया है. बस उसने उपराज्यपाल को निर्देश दिया है कि वो सरकार के काम को रोकें नहीं. साथ ही सरकार को भी कहा है कि वो उपराज्यपाल के साथ मिल कर काम करे.

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का मानना है कि उनके कार्यकाल के दौरान वो उपराज्यपाल को कैबिनेट के सारे फैसले की जानकारी देती थीं. और अगर कहीं पर उपराज्यपाल का मत अलग होता था तो उस पर चर्चा कर बीच का रास्ता निकाला जाता था. उन्होंने कहा कि चूंकि दिल्ली की संवैधानिक स्थिति एक केन्द्र शासित प्रदेश की है इसलिए कामकाज की जानकारी उन्हें दिया जाना संवैधानिक मांग थी.

उन्होने कहा कि काम करने के लिए आपसी सद्भाव जरूरी है. 1998 में जब उनकी सरकार का पहला टर्म था तब केन्द्र में बीजेपी की सरकार थी लेकिन उसके बावजूद उन्होंने मतभेद को कभी सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं आने दिया. उसी दौरान उन्होने मेट्रो , बिजली वितरण का निजीकरण जैसे मुख्य काम करवाए थे.

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उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इस दौरान आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी रहता था. लेकिन इसका असर काम काज पर कभी नहीं पड़ा. अगर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल अगर साथ मिलकर काम नहीं करेंगे तो दिल्ली में परेशानियां आएंगी. हमने 15 साल तक दिल्ली में सरकार चलाई तब तो को परेशानी नहीं हुई. आज तक ऐसा नहीं हुआ कि उपराज्यपाल ने हमारे कैबिनेट के फैसले के खिलाफ काम किया हो या उस पर साइन नहीं किया हो. हमारा सिस्टम था कि हम पहले बात कर लेते थे.

उन्होंने कहा कि देखिए हमेशा से ऐसा होता था कि महत्वपूर्ण निर्णय में कैबिनेट काम करती थी और फिर चीफ सेक्रेटरी उसकी फाइल उपराज्यपाल के पास ले जाते थे. उपराज्यपाल के मन में प्रश्न उठते थे तो वो पूछते थे और हम जवाब दे देते थे.

शीला दीक्षित ने कहा काम चाहे उपराज्यपाल के नियंत्रण में आए या फिर मुख्यमंत्री के नियंत्रण में, दोनों को हर हालत में मिलकर ही काम करना होगा और इसी से दिल्ली का भला होगा, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में दिए गए प्रावधानों को ही दोहराया है. उन्होंने कहा कि हम अपने कार्यकाल के दौरान कभी हम झुक जाते थे तो कभी राज्यपाल झुक जाते थे.

हालांकि उन्होंने वर्तमान मुख्मंत्री अरविन्द केजरीवाल पर भी निशाना साधते हुए कहा कि आप सरकार को बने तीन साल से ज्यादा हो गए पर कोई काम नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देखते हैं कि क्या काम करते हैं. साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री केजरीवाल अब केंद्र के साथ तालमेल बिठाकर जनहित के कार्यों पर ध्यान देंगे.

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