मनोहर पर्रिकर की बतौर मुख्यमंत्री गोवा वापसी से वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने फिर से दो मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभालने की स्थिति पैदा हो गई है. जेटली अब रक्षा मंत्रालय का भी अतिरिक्त भार संभालेंगे.
नई दिल्ली के रायसीना हिल पर पांचों कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी अफेयर्स मंत्रालय मौजूद हैं. साउथ ब्लॉक में रक्षा, विदेश और पीएमओ है तो सड़क की दूसरी ओर नार्थ ब्लॉक में वित्त और गृह मंत्रालय.
वित्त मंत्रालय में बनी खिड़की से जेटली अपने दूसरे दफ्तर यानी रक्षा मंत्रालय को आसानी से देख सकते हैं. तो यही हाल रक्षा मंत्रालय की खिड़की से वित्त मंत्रालय को देखने का भी है. लेकिन कामकाज की बात की जाए दोनों ही मंत्रालयों के काम ऐसे हैं कि, संबंधित मंत्री को उसमें पूरी तल्लीनता की जरूरत होती है.
दरअसल ये सुपर हैवीवेट मंत्रालय हैं. और जेटली को भी इसका अनुभव तब हुआ होगा जब 24 मई 2014 से लेकर 9 नवंबर 2014 तक उन्होंने इसका पदभार संभाला था.
दोनों मंत्रालयों का काम जिम्मेदारी भरा है
दोनों मंत्रालयों के कामकाज को लेकर काफी यात्राएं करनी पड़ती हैं. कई बार तो रक्षा मंत्री को बॉर्डर आउटपोस्ट पर भी जाना पड़ता है. ऐसा न सिर्फ सुरक्षा जवानों का मनोबल बढ़ाने के लिए बल्कि सरहद की मौजूदा परिस्थितियों की जानकारी लेने के लिए भी करना जरूरी होता है.
गोवा में खंडित जनादेश ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पर्रिकर से रक्षा मंत्रालय छोड़कर वापस गोवा भेजना पड़ा. तो प्रधानमंत्री के पास इतना भी वक्त नहीं था कि वो पर्रिकर का रिपलेसमेंट ढूंढ पाएं. हालांकि ये दीगर बात है कि पर्रिकर का दिल गोवा में ही रमता है.
जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त भार ऐसे वक्त में मिला है जब संसद का बजट सत्र जारी है. उन्हें फाइनेंस (वित्त) बिल और एपरोप्रिएशन (विनियोजन)बिल को पास कराना है. इसके साथ ही उनके सामने नोटबंदी से पैदा हुए नाकारात्मक असर को जल्द से जल्द खत्म करने की भी जिम्मेदारी है. तो अर्थव्यवस्था में तेजी लाने की भी चुनौती है.
इतना ही नहीं जीएसटी बिल को संसद से पास कराने के लिए भी जेटली को राजनीतिक समरसता तैयार कराने की बड़ी चनौती है. ताकि जुलाई 2017 की डेडलाइन के तहत इसे लागू करवाया जा सके.
इसके अलावा जेटली, पार्टी के खास सियासी रणनीतिकारों में से एक हैं. गोवा और मणिपुर के जैसे हालात हैं उसमें जेटली की सियासी और कानूनी राय पार्टी के लिए खास अहमियत रखती है.
हालांकि पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से सीमा पर कुछ हद तक शांति का माहौल तो है. लेकिन उड़ी और पठानकोट में हुए आतंकवादी हमले इस बात की याद दिलाने को काफी हैं कि रक्षा मंत्रालय में रक्षा मंत्री का पूरा ध्यान होना चाहिए.
इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार ने बेहतर सुरक्षा तैयारियों पर ध्यान दिया है. इसके साथ ही तीनों सेना को ज्यादा से ज्यादा अधिग्रहण करना है, जिसके लिए ग्लोबल बिड्स की सावधानीपूर्वक समीक्षा करने की जरूरत होगी.
जेटली ने पहले भी दूसरे मंत्रालयों का भार संभाला है
मोदी सरकार के तीन साल के दौरान ज्यादातर समय जेटली ने दो से तीन मंत्रालयों का भार संभाला है.
नवंबर 2014 में मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री पद संभालने के बाद जेटली को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का जिम्मा दिया गया था. इसके अलावा तब उनके जिम्मे कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय का भी अतिरिक्त भार था. हालांकि पिछले वर्ष सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का भार पूरी तरह एम वैंकेया नायडू को दे दिया गया.
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान जसवंत सिंह को विदेश मंत्रालय के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त जिम्मा सौंपा गया था. तब तहलका खुलासे के चलते मचे सियासी तूफान के बीच जार्ज फर्नानडीज को मार्च 2001 में पद छोड़ना पड़ा था. इसी दौरान जसवंत सिंह को रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था.
हालांकि नवंबर में फिर से जार्ज फर्नानडीज रक्षा मंत्री बने और जसवंत सिंह विदेश मंत्रालय का जिम्मा संभालने लगे.
रक्षा मंत्रालय संभालने के लिए जिम्मेदार मंत्री ढूंढना जरूरी है
ये बेहद जरूरी है कि रक्षा मंत्रालय के लिए एक फुल टाइम मंत्री हों. यह कुछ ही समय की बात है कि नरेंद्र मोदी पर्रिकर का उपयुक्त रिप्लेसमेंट ढूंढ लेंगे. और जेटली को अतिरिक्त भार से मुक्त कर देंगे.
हालांकि असल समस्या रक्षा मंत्रालय के लिए सुटेबल कैंडिडेट ढूंढने की है. साफ है कि बीजेपी की मौजूदा टीम में टैलेंट की किल्लत है. यही वजह थी कि मोदी को पर्रिकर का चुनाव करना पड़ा था. यहां तक कि उन्हें गोवा छोड़ने के लिए तब मजबूर किया गया था.
हालांकि जेटली को रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त भार सौंप कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह तो जाहिर कर दिया है कि, वो इस पद को भरने की जल्दबाजी में नहीं हैं. लोगों को इस बात का तब तक इंतजार करना होगा जब तक कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं कर लिया जाता है.
अगर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह या फिर संचार मंत्री मनोज सिन्हा को सौंपी जाती है तो भविष्य में कैबिनेट बदलाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
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