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यूपी की हर सीट कुछ कहती है: लखनऊ कैंट में बहू-बेटी की जंग में कौन भारी?

लखनऊ कैंट की सीट पर कब्जे को लेकर दो दिग्गज दांव पर हैं. रीता बहुगुणा के सामने हैं अपर्णा यादव.

Updated On: Feb 07, 2017 10:13 AM IST

Kinshuk Praval Kinshuk Praval

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यूपी की हर सीट कुछ कहती है: लखनऊ कैंट में बहू-बेटी की जंग में कौन भारी?

यूपी में लखनऊ कैंट की सीट पर सबकी नजर रहेगी. खास बात ये है कि इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है और ये कब्जा रीता बहुगुणा ने अपनी शानदार जीत से दिलाया था.

लेकिन इस बार खुद रीता बहुगुणा कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं और अपनी जीती हुई सीट से बीजेपी की उम्मीदवार हैं. रीता बहुगुणा के सामने समाजवादी पार्टी ने अपर्णा यादव को खड़ा किया है. बहुजन समाज पार्टी ने लखनऊ कैंट से योगेश दीक्षित को खड़ा किया है.

पॉलिटिक्स में मास्टर्स हैं अपर्णा यादव

मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं अपर्णा यादव . अपर्णा यादव पहली बार राजनीति में अपनी किस्मत आजमा रही हैं. अपर्णा यादव खुद भी पॉलिटिकल साइंस की स्टूडेंट रही हैं.

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से उन्होंने इंटरनेशनल रिलेशंस एंड पॉलिटिक्स में मास्टर्स किया है. अपर्णा यादव का शास्त्रीय संगीत में भी रुझान हैं. लेकिन सामाजिक कार्यों में उनकी रुचि राजनीति में खींच लाई. उनके पिता अरविंद सिंह बिष्ट पत्रकार होने के साथ सूचना आयुक्त भी हैं. लेकिन अपर्णा के सामने राजनीति की धुरंधर रीता बहुगुणा हैं.

बीजेपी का ट्रंप कार्ड हैं रीता बहुगुणा

रीता बहुगुणा ने लखनऊ कैंट की सीट से कांग्रेस के टिकट पर साल 2012 मे बीजेपी के उम्मीदवार सुरेश तिवारी को हराया था. सुरेश तिवारी 3 बार से लखनऊ कैंट की सीट लगातार जीत रहे थे.

लखनऊ कैंट की सीट समाजवादी पार्टी के लिये कभी लकी नहीं रही है. सपा कभी भी इस सीट को नहीं जीत पाई है.

कांग्रेस के गढ़ पर बीजेपी ने किया कब्जा

एक समय था जबकि लखनऊ कैंट की सीट कांग्रेस के गढ़ के नाम से मशहूर थी. 1957 में पहली बार कांग्रेस के श्याम मनोहर मिश्रा यहां से विधायक बने थे. साल 1974 में चौधरी चरण सिंह इसी सीट से कांग्रेस के विधायक बने थे. 1991 में पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा किया था और सतीश भाटिया यहां से चुनाव जीते थे. जिसके बाद वो दूसरा चुनाव भी 1993 में जीते थे.

साल 1996 से बीजेपी के सुरेश चंद्र तिवारी लगातार लखनऊ कैंट की सीट से जीतते आए. लेकिन बीजेपी के विजय रथ को ब्रेक लगाया रीता बहुगुणा ने. साल 2012 में रीता बहुगुणा चुनाव जीतीं जो कांग्रेस के लिये बड़ी कामयाबी थी.

लखनऊ कैंट की सीट 5 बार जीती बीजेपी

माना जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लखनऊ से सांसद बनने के बाद धीरे धीरे कांग्रेस के गढ़ में बीजेपी की सेंध गहराती चली गई.यही वजह रही कि 1991 से 2007 तक लगातार 5 बार बीजेपी लखनऊ कैंट की सीट से जीतती आई.

लखनऊ कैंट की सीट का इतिहास गवाही देता है कि यहां सीधी टक्कर बीजेपी और कांग्रेस के बीच रही है. यहां ब्राह्मण वोटर हार जीत का फैसला तय करते आए हैं.

सवर्ण उम्मीदवारों पर पार्टियों का दांव

यही वजह है कि पार्टियां यहां से सवर्ण उम्मीदवार पर दांव चलती हैं. कैंट सीट में कुल मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख पन्द्रह हजार है.

यहां सबसे ज्यादा एक लाख से अधिक ब्राह्मण, 50 हजार दलित, 40 हजार वैश्य, 30 हजार पिछड़े, 25 हजार क्षत्रिय और 25 हजार मुस्लिम हैं.

चुनाव में ब्राह्मणों के अलावा पहाड़ी, सिंधी, पंजाबी और दलित समुदाय के वोटर भी निर्णायक साबित होते हैं.

बहू-बनाम बेटी की चुनावी जंग

बहरहाल बहू बनाम बेटी के इस मुकाबले में अपर्णा मुलायम की बहू हैं तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी हैं रीता बहुगुणा.

लेकिन इस मुकाबले में सपा का एक फैसला परिवार के उस अंतर्कलह को भी उजागर करता है जिसमें अपर्णा यादव को लखनऊ कैंट की सीट दी जाती है. बड़ा सवाल ये है कि यूपी की 403 विधानसभा सीट में एक भी सुरक्षित सीट अपर्णा यादव के लिये अखिलेश नहीं निकाल सके ? अगर अपर्णा यादव चुनाव हार गईं तो इसका जिम्मेदार कौन होगा ?

 

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